यस एमएलए: भाजपा के गढ़ में सेंध लगा पाएगी कांग्रेस?

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। जबलपुर जिले में आने वाली सिहोरा विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है और इस सीट पर पिछले कुछ चुनावों से भाजपा अजेय रही है। सिहोरा वैसे तो मप्र के सबसे पुराने विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। बावजूद इलाके में आज भी उच्च शिक्षण संस्थान, बुनियादी नागरिक सुविधाएं और समावेशी विकास की कमी नजर आती हैं।  हालांकि, एक वर्ग का यह भी मानना हैं की क्षेत्र में संभावनाओं के अनुरूप विकास कार्य हुए हैं और विधायकों ने सरकारों के सामने क्षेत्र की समस्याओं को लेकर आवाजें भी उठाई हैं। हालांकि इस बार के चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो जनता के ही मन में हैं। वहीं सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या भाजपा के गढ़ में इस बार कांग्रेस सेंध लगा पाएगी?
पिछले तीन बार से नंदनी मरावी यहां से विधायक चुनी जा रही हैं। बहरहाल नंदनी मरावी भाजपा में एक बार फिर टिकट के लिए दावेदार हैं। जबकि सरिता सिंह, सुशीला परस्ते के साथ नीलेश प्रताप सिंह भी दावेदारों में शामिल हैं। विधायक मरावी का सरल, सहज और आम लोगों तक  पहुंच उनकी सबसे बड़ी ताकत है। सिहोरा को जिला बनाने के लिए भी मांग वर्षों से लंबित है। इसलिए इस बार यह चुनावी मुद्दा हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की कोशिश है कि भाजपा को पंजा लगाने से रोका जाए। हालांकि टिकट के लिए एक से ज्यादा दावेदार कांग्रेस की रणनीति को कमजोर भी कर रहे हैं।
विकास के अपने-अपने दावे
बता दें कि सिहोरा में विकास की रफ्तार काफी सुस्त है। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई उल्लेखनीय काम धरातल पर नहीं दिखता। जाहिर है तमाम दावों के बावजूद सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में दुश्वारियों की कोई कमी नहीं है। कांग्रेस नेत्री और जिपं सदस्य एकता ठाकुर का कहना है कि क्षेत्र में आज युवाओं, महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हमारी पार्टी इन्हीं मुद्दों को लेकर मैदान में उतरेगी। फिलहाल सिहोरा को जिला बनाने का मुद्दा प्रमुख है, जिसको लेकर हमारे वरिष्ठ नेता ने घोषणा भी की है कि हमारी सरकार बनती है तो सिहोरा को जिला बनाया जाएगा। वहीं विधायक नंदनी मरावी का कहना है कि सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में लगातार विकास कार्य किए जा रहे हैं। हाल ही में कुंडम ब्लॉक में तीन जलाशयों का निर्माण कराया गया है। जिससे उस क्षेत्र में पानी की समस्या दूर होगी। दो सीएम राइज स्कूल ओवर ब्रिज के निर्माण का काम भी प्रगति पर चल रहा है। हम लोगों को योजनाओं का लाभ भी दिला रहे हैं ।
जातिगत समीकरण
सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में सिहोरा, मझगवां और गोसलपुर ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है। वहीं कुंडम क्षेत्र में गोंड और कोल जातियों का समीकरण चुनाव में जीत हार का फैसला तय करता है। जनजाति समाज को कांग्रेस पहले अपने वोट बैंक माना करती थी, लेकिन पेसा एक्ट और अन्य घोषणाएं भाजपा के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं। मरावी की टक्कर का प्रत्याशी कांग्रेस तलाश रही है। इस सीट को जीतने के लिए कांग्रेस बीते 20 सालों से जोर लगा रही है, लेकिन विधायक नंदनी मरावी की टक्कर का प्रत्याशी अभी तक ढूंढ नहीं पाई है। पिछले दो चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशियों को बड़े अंतर से हार झेलनी पड़ी। बिना दमदार प्रत्याशी के भाजपा के इस गढ़ को भेद पाना कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती होगी। लोगों का कहना है कि पुरानी पेंशन की बहाली मुद्दा केवल एक नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की समस्त विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करेगा। सिहोरा जिला इस बार के विधानसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा होगा। यहां के रहवासी इस बार सिहोरा के सम्मान के लिए वोट करेगा। खितौला रेलवे फाटक का लंबित ओवरब्रिज संपूर्ण सिहोराको विखंडित कर रहा है। यह मामला इस चुनाव प्रमुख मुद्दा बनेगा। तुलनात्मक दृष्टि से सिहोरा आज बहुत पिछड़ा है। इसकी उपेक्षा चुनाव का मुद्दा होगा।
भाजपा ने  कांग्रेस का कब्जा तोड़ा
सिहोरा विधानसभा सीट पर कभी कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था, लेकिन 2003 के चुनाव में भाजपा के दिलीप दुबे ने जीत का परचम लहराया। अब सिहोरा भाजपा का गढ़ बन गया है। 2008, 2013 और 2018 के चुनाव में भी इस विधानसभा सीट पर कमल खिला था। ऐसे में कांग्रेस, भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी में जुट गई है, तो वहीं भगवा पार्टी चौथी बार भी जीत का परचम लहराने की रणनीतियां बना रही है।

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