लुभावनी योजनाएं बना रही हैं प्रदेश को कर्जदार

मप्र सरकार

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से हुआ खुलासा…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सियासी फायदे के लिए प्रदेश सरकारों द्वारा जिस तरह से कई लोक लुभावन योजनाओं की घोषणा दर घोषणाएं कर उन पर अमल किया जा रहा है , उससे सरकारी खजानों की हालत बेहद दयनीय होती जा रही है। हालत यह है कि कई राज्यों पर तो उसके एक साल के बजट से अधिक तक का कर्ज हो चुका है। इस मामले में मप्र की स्थिति भी दयनीय बनती जा रही है। मप्र सरकार के खजाने पर हर माह कर्ज को बोझ बढ़ता ही जा रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा स्टेट फाइनेंसेज
 ए स्टडी ऑफ बजट्स ऑफ 2022-23 शीर्षक से हाल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि मप्र पर करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका है। इसमें बताया गया है कि बीते पांच सालों में औसत प्रति व्यक्ति कर्ज में तेजी से वृद्धि हुई है। कर्ज के आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य के हर नागरिक पर 41 हजार रुपए का कर्ज हो चुका है। अगर सात साल पहले के आंकड़ों पर नजर डालें तो, उस समय मार्च 2016 के अंत तक प्रति व्यक्ति कर्ज की राशि 13853 रुपए होने का अनुमान लगाया गया था, जबकि वित्त वर्ष 2013-14 में यह 10896 रुपए दर्ज किया गया था। विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि इन दिनों  मध्य प्रदेश सरकार गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रही है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति को इस बात से समझा जा सकता है कि पिछले वर्ष 2022 -23 में राज्य ने 2.79 लाख करोड़ रुपए का वार्षिक बजट पेश किया था, जबकि सरकार पर 3.31 लाख करोड़ रुपए का बढ़ता कर्ज था। आरबीआई की रिपोर्ट में सभी राज्यों के सम्मिलित जीडीपी के अनुपात में राज्यों के ऋण में गिरावट का अनुमान जताया है। 2022-23 में राज्यों पर कर्ज का कुल दबाव 2021-22 के जीडीपी के 31.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में जीडीपी का 29.5 प्रतिशत रह गया है। अगर अन्य राज्यों की तुलना करें तो गुजरात पर 3.40 लाख करोड़ रुपए का ऋण है जो अब बढ़ते सार्वजनिक ऋण के खतरे का सामना कर रहा है। बीते साल ज मार्च में उस पर  3.20 लाख करोड़ का कर्ज था जो अब बढक़र 3.40 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
इसी तरह से हिमाचल प्रदेश पर 75 हजार करोड़ का कर्ज है। इसी तरह से भारतीय रिजर्व बैंक ने दावा किया है कि वित्त वर्ष 2023-24 में उत्तर प्रदेश का कर्ज बोझ 7.84 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है, जो लगभग 40 प्रतिशत अधिक है। जबकि पंजाब दिवालियापन की ओर बढ़ रहा है।
कर्नाटक में भी हालात चिंताजनक
कर्नाटक चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने बिजली की दरों में वृद्धि वापस लेने के लिए कांग्रेस सरकार को एक सप्ताह का अल्टीमेटम दिया है। कर्नाटक में मुफ्त की राजनीति के एक नए युग की शुरुआत कर रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कहा है कि चुनावी वादे के अनुरूप पांच गारंटियों को लागू करने के लिए सरकार को सालाना 59000 करोड़ रुपए की आवश्यकता बताई जा रही है। चालू वर्ष के शेष महीनों के लिए वित्तीय आवश्यकता 41000 करोड़ रुपए है। मुफ्त की राजनीति से कर्नाटक की वित्तीय स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की गई है।

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