बा खबर असरदार/यहीं रहूंगा…या फिर घर जाऊंगा

आईएएस
  • हरीश फतेहचंदानी

यहीं रहूंगा…या फिर घर जाऊंगा
चुनावी साल में एक ही जगह पर जमे अफसरों का फेरबदल हो रहा है। इसी कड़ी में मालवा क्षेत्र में पदस्थ 1999 बैच के एक आईएएस अधिकारी को प्रशासनिक मुख्यालय भेजने की तैयारी हो रही है। लेकिन साहब अपनी मनपसंद जगह पर ही रहना चाहते हैं। मप्र के औद्योगिक संभाग की कमान संभालने वाले इन साहब ने कमर कस ली है कि अब वो या तो वहीं रहेंगे, या फिर अपने घर यानी देश की राजधानी में चले जाएंगे। साहब वैसे भी देश की राजधानी से आए थे। वैसे तो वह मप्र कैडर के आईएएस अफसर हैं, परंतु उनकी आधी नौकरी दिल्ली में ही बीती है। क्योंकि साहब दिल्ली में ही पढ़े-लिखे हैं और सत्तारूढ़ दल से ही दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यक्ष भी रहे हैं। उनका तबादला चुनाव के मद्देनजर प्रदेश की राजधानी में होने जा रहा है। ऐसे में साहब अपनी मर्जी की नौकरी करना चाहते हैं और उनका मन फिर दिल्ली की तरफ हो सकता है।

नहीं गली साहब की दाल
पिछले कुछ वर्षों के दौरान मप्र कैडर के आईएएस अधिकारियों को कोल इंडिया की नौकरी लुभा रही है। इसी कड़ी में 1991 बैच के एक आईएएस अधिकारी ने कोल इंडिया में ज्वाइनिंग के लिए खूब हाथ-पांव मारे लेकिन, साहब की बात नहीं बन पाई। जबकि साहब को उम्मीद थी कि यह विभाग उन्हें जरूर मिल जाएगा। गौरतलब है कि पूर्ववर्ती सरकार में साहब मुखिया के दाएं हाथ माने जाते थे। उन्हें सरकार के सबसे पसंदीदा और करीबी अफसरों में गिना जाता था। साहब का जुगाड़ ऐसा था कि पूर्ववर्ती सरकार में भी उनकी खूब धाक थी। लेकिन वर्तमान में उन्हें साइडलाइन कर दिया गया है। हालांकि साहब के पास वर्तमान में भी प्रमुख सचिव का पद है, लेकिन पहले वाली दमदारी नहीं बची है। साहब को उम्मीद थी कि अभी भी उनकी पुरानी वाली साख बरकरार होगी, इसलिए उन्होंने केंद्र सरकार के अंडर में आने वाले एक इस विभाग में महत्वपूर्ण कुर्सी पाने के लिए अप्लाई किया था। लेकिन साहब की दाल नहीं गल पाई।  

फिर विवादों में कलेक्टर
उच्च पद पर बैठे अधिकारियों की मनमानी की खबरें तो अक्सर सुर्खियों में आती रहती हैं, लेकिन जब कोई अधिकारी वह भी जिले का कलेक्टर अपनी दबंगई दिखाने के लिए पद की गरिमा भूल अभद्रता पर उतर जाए तो क्या ही कहिए…ऐसी ही खबर आयी है ग्वालियर-चंबल अंचल के एक जिले में कलेक्टर के पद पर पदस्थ 2013 बैच के एक आईएएस अधिकारी अपने पद की गरिमा भूल कर बार-बार अभद्रता पर उतारू हैं। कभी कर्मचारियों को धमकी देते हैं, तो कभी सरेआम आपा खोते दिखाई दिये। इस बार तो हद तब हो गई जब एक जूनियर एडवोकेट को उन्होंने अपने कोर्ट चेंबर में बंद करा दिया और अभद्रता की। बताया जाता है कि साहब के इस व्यवहार से वकीलों में रोष है। वकील कलेक्टर साहब के खिलाफ अदालत में परिवाद दायर करने की तैयारी कर रहे हैं।

मैडम का कमाल
मालवा के बड़े जिले को स्वच्छता में नंबर-1 बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली 2012 बैच की  महिला आईएएस अधिकारी प्रतिभा पाल जब से विंध्य क्षेत्र के सबसे बड़े जिले रीवा की कलेक्टर बनी हैं, जिले का ग्राफ तेजी से ऊपर आ रहा है। इस कारण सरकार का भी पूरा फोकस इस जिले पर है। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान के तहत आम जनता से प्राप्त आवेदन पत्रों का निराकरण किया गया। जिले में जनसेवा अभियान के दौरान सीमांकन, अविवादित नामांतरण तथा अविवादित बंटवारे के निराकरण के विशेष अभियान चलाए गए। जिले में अविवादित नामांतरण के कुल 17156 प्रकरण दर्ज किए गए। इनमें से 12281 में आदेश पारित करके इनका निराकरण किया गया। संख्या की दृष्टि से यह प्रदेश का सर्वाधिक निराकरण है। फिर क्या था जिले को अविवादित नामांतरण प्रकरणों के निराकरण में प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। जिसकी सीएम ने भी प्रशंसा की।

क्लीन चिट में फंसे साहब
प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों 2013 बैच के आईएएस अधिकारी मयंक अग्रवाल की खूब किरकिरी हो रही है। इसकी वजह यह है कि बुंदेलखंड के दमोह जिले में कलेक्टर के पद पर पदस्थ साहब ने एक विवादित मामले में क्लीन चिट दे दी। जब मामला विवादों में आया तो साहब के पांव तले की जमीन खिसक गई। उधर, सरकार ने साहब को नोटिस देकर जवाब तलब किया है। दरअसल, बुंदेलखंड के दमोह  जिले में सभी जाति-धर्म की छात्राओं को यूनिफॉर्म में हिजाब पहनाने का मामला सामने आया तो साहब ने बिना जांच परख के स्कूल को फटाफट क्लीनचिट दे दी। अब जब मामला विवादों में पड़ा तो साहब भी इसमें उलझ गए हैं। सूत्रों का कहना है कि साहब ने जिले में कई ऐसे और काम बिना सोचे-समझे और जांचे परखे किए हैं, जो कभी भी सरकार की किरकिरी करवा सकते हैं।

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