प्रदेश में पचास फीसदी जल स्रोतों का नही हो रहा उपयोग

जल स्रोतों
  • अतिक्रमण की वजह से 23 सौ वॉटर बॉडी हुईं बेकार  

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक तरफ प्रदेश में पानी का संकट बना हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर पचास फीसदी ऐसे जल स्रोत हैं, जिनका प्रदेश में उपयोग ही नहीं किया जा रहा है। अगर इन सभी स्रोतों का उपयोग किया जाए तो प्रदेश में जल संकट बहुत कुछ हद तक समाप्त हो सकता है। प्रदेश में इसको लेकर क्या स्थिति है इससे ही समझी जा सकती है कि गैर उपयोग में आने वाले जल स्रोतों के देश के औसत में मप्र का तीन गुना अधिक है। यह खुलासा हुआ है हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा देशभर मे मौजूद जल स्रोतों की कराई गई गणना में । यह आंकड़ें परेशान करने वाले हैं। प्रदेश में जल स्रोतों को बारहमासी बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा तमाम योजनाएं बनाकर उन पर किया गया क्रियान्वयन भी जुटाए गए आंकड़ों से सच को उजागर करता है। हद तो यह है कि इसमें करीब तेइस सौ से अधिक जल स्रोत तो ऐसे मिले हैं, जिन पर या तो पूरी तरह से अतिक्रमण कर लिया गया है या फिर इतना अधिक निर्माण कर उन्हें बर्बाद कर दया है  कि अब उनका उपयोग किया जाना ही संभव नही है। इस मामले में इनके संरक्षण का काम करने वाले विभागों से लेकर उन संस्थाओं की भी पोल खुल जाती है जो इनकी देखरेख या फिर अतिक्रमण हटाने या उस पर कार्रवाई करने का काम करती हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो मप्र में आठ हजार जलस्त्रोत पूरी तरह से सूख चुके हैं। इसकी वजह है इनके रिचार्ज के लिए सरकारी स्तर पर पूरी तरह से लापरवाही बरती जाना है। गणना के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 82 हजार से अधिक जलस्त्रोत पाए गए हैं , जिनमें से 45 हजार बेकार हो चुके हैं। इन आंकड़ों के लिए प्रदेश के सभी 52 जिलों के 24 हजार से अधिक गांवों को गणना में शामिल किया गया था। इसमें 78,298 तालाब, 71 टैंक, 30 झील, 75 जलाशय, 337 जल संरक्षण योजना के डेम व अन्य प्रकार के करीब 2201 जल स्रोत मिले हैं। इस प्रकार से प्रदेश में जल स्रोतोंं की कुल संख्या 81012 है। अगर शहरों की बात की जाए तो प्रदेश में 1520 तालाब, 110 अन्य तरह के स्रोत और एक वॉटर कंजर्वेशन स्कीम का जल स्रोत मिला है। इनमें से 36628 तालाब, 41 टैंको , 17 झीलों , 48 जलाशयों 220 चेकडेमों व 303 अन्य तरह के ही जल स्रातों का उपयोग किया जा रहा है। खास बात यह है जल जल स्रोतों का उपयोग नहीं हो रहा है उसमें सर्वाधिक 43190 तालाब शामिल हैं।
    आठ हजार जल स्रोत सूखे
    प्रदेश की गणना में पता चला है कि 8036 वॉटर बॉडीज तो ऐसी हैं, जिनमें पानी सूख जाने की वजह से उनका उपयोग कियाजाना संभव नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा 1366 पर निर्माण कल लिया गया है , जबकि 917 जलस्त्रोत इतने जीर्ण-शीर्ण हालात में पहुंच चुके हैं कि वे मरम्मत तक की स्थिति में नहीं रह गए हैं। इसके अलावा 594 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनका रखरखाव नहीं होने से उनमें में गाद भर गई है , जबकि उद्योगों की गंदगी की वजह से 168 जल स्रोतों का पानी इस्तेमाल करने लायक ही नहीं बचा है। इसके बाद भी महज 1421 जल स्त्रोतों की मरम्मत या रिनोवेशन के काम को ही हाथ में लिया गया है।
    देश में 55% जल स्रोत निजी
    अगर देशभर के आंकड़ों को देख जाए तो मौजूद जल स्रोतों में से 55.2 प्रतिशत यानी की आधे से अधिक निजी स्वामित्व के हैं, जबकि शेष पंचायत, नगरीय निकाय राज्य के जल संसाधन विभाग के अधीन हैं। इसी तरह से मप्र में 47,153 जल स्रोत पंचायतों के अधीन आते हैं , जबकि  सरकारी एजेंसियों के हवाले 22,780 और 859 सिंचाई विभाग के तहत आते हैं। इसी तरह से निजी मालिकाना हक वालों के पास 11,700 से अधिक जल स्रोत हैं। इसमें भी जो सबसे खराब स्थिति मिली है वह है  तालाब, झीलों, टैंक, जलाशयों, चेक डेम और जल संरक्षण की योजनाओं के मामलों में मप्र का स्थान देश के टॉप 5 राज्यों में भी नही है।

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