टीबी खत्म करने की मुहिम को लग रहा पलीता

टीबी

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रधानमंत्री मोदी 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन मप्र में केंद्र सरकार के अभियान को पलीता लगाया जा रहा है।  प्रदेश में टीबी मरीजों के इलाज में काम आने वाली दो महत्वपूर्ण दवाएं तीन महीने से खत्म हैं। इसलिए गरीब मरीजों को दूसरे लेवल में काम आने वाली दवा देकर जुगाड़ वाली चिकित्सा की जा रही है।  इससे 1.64 लाख से ज्यादा टीबी मरीजों के सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है। हालात यह है कि मरीजों को आधे-अधूरे डोज या सब्सटीट्यूट दवाओं से काम चलाना पड़ रहा है।
जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार के अधीन टीबी नियंत्रण प्रोग्राम है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2025 का लक्ष्य तय किया है। इस दौरान उन्होंने सभी चिकित्सकों और हेल्थ वर्करों से अपील की है कि वे अपने राज्य को टीबी फ्री मुहिम में मदद पहुंचाए। इसके लिए भाजपा सांसदों को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्ष्य दिया हुआ है। उनके इस सपने को मप्र में सरकार कितनी गंभीरता से लेती है यह उसका जीता जागता उदाहरण है। दरअसल, टीबी मरीजों के काम आने वाले रिफामपसिन और पायराजिनामाइट नाम की दवा का स्टॉक खत्म हो गया है। ऐसा लगभग 3 महीने से चल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में प्रति एक लाख पर 235 टीबी मरीज हैं। इस तरह प्रदेश की करीब 7 करोड़ की आबादी पर 1,64,500 सक्रीय मरीज हो सकते हैं। मप्र में छतरपुर के बाद टीबी के सबसे ज्यादा मरीज भोपाल में मिल रहे हैं। भोपाल में टीबी मरीजों की संख्या 10,600 है। वहीं छतरपुर में 16,000 से ज्यादा मरीज हैं।
दवा का सेवन करने पर मिलती है राशि
हमीदिया अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर लोकेंद्र दवे ने बताया कि दो तरह की दवा की कमी है, लेकिन दवाओं का कॉम्बीनेशन दिया जा रहा है। आधी दवा या अधूरे इलाज से कई तरह की समस्या हो सकती है। मरीजों को इलाज आगे बढ़ाना पड़ सकता है। इसके साथ ही संक्रमण बढ़ने या टीबी के दोबारा लौटने की आशंका बनी रहती है। कॉम्बीनेशन में दवा देने से भी कई बार मरीजों को दिक्कत होती है। वहीं भोपाल जिला क्षय अधिकारी डॉक्टर मनोज वर्मा ने बताया कि, दवाओं की शॉर्टेज चल रही है। हालांकि, अब बजट मिल गया है। जल्द ही दवाओं की कमी दूर हो जाएगी। मरीजों को कॉम्बिनेशन वाली दवाएं दी जा रही हैं, जिससे मरीजों को नुकसान नहीं होता। जबकि स्वास्थ्य विभाग की माने तो यह खरीदी का काम केंद्र स्तर पर किया जाता है।  जिसका निर्णय अब तक नहीं हो सका है। उसकी वजह यह बताई जा रही है कि केंद्र सरकार इन दवा खरीदी के अधिकारी जिला स्तर पर अधिकारियों को देने की योजना बना रही है। इस देरी की वजह से पिछले 3 महीनों में मरीज सरकारी दवा से मोहताज चल रहे हैं। इन दवाओं के सेवन करने पर केंद्र सरकार पांच सौ रुपए भी मुहैया कराती है।

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