
निजी हाथों में देखकर कराया जाएगा संचालन , स्व सहायता समूहों को दी जाएगी प्राथमिकता
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश की अफसरशाही को खरीददारी का इतना शौक है कि खरीदी गई वस्तुओं का मशीनों का उपयोग भले ही नहीं हो लेकिन वे इनकी खरीदी में पीछे नहीं रहते हैं। इसका उदाहरण सूबे की आठ मंडियों में एक दशक से अपने शुरू होने की बाट जोहने वाली आठ वे ग्रेडिंग मशीने हैं,जो अब भी शुरू नहीं की गई है। इसके बाद भी विभाग आधा सैकड़ा नई गे्रडिंग मशीनें खरीदने की लगभग पूरी तैयारी कर चुका है। खास बात यह है कि जिन बड़ी मंडियों में यह अनाज ग्रेडिंग मशीनें धूल खा रही हैं। उनमें भोपाल मंडी भी शामिल है, जहां पर सरकार से लेकर प्रशासन तक के मुखिया बैठते हैं। मंडियां इनके संचालन की हिम्मत तक करती नहीं दिख रही हैं। इसकी वजह से इसका फायदा किसानों को नहीं मिल पारहा है। अब सरकार द्वारा आधा सैकड़ा नई मंडियों में ग्रेडिंग मशीन लगाने जा रही हैं, जिनके संचालन के लिए ग्रेडिंग आॅपरेटरों की तलाश की जा रही है। गौरतलब है कि प्रदेश में 250 से ज्यादा मंडियों में हर साल लगभग 300 लाख मीट्रिक टन अनाज की खरीदी की जाती है।
निजी आपरेटर के जिम्मे होगा पूरा काम
ग्रेडिंग मशीन लगाने के लिए प्रत्येक मंडी को 40 लाख रुपए तक का फंड दिया जाएगा। इनका संचालन का जिम्मा निजी ऑपरेटर को दिया जा रहा है। इसके संचालन के लिए उपयोग में आने वाली बिजली, श्रमिकों और मशीनों का रखरखाव से लेकर उसके संचालन का जिम्मा भी आपरेटर का ही होगा। ग्रेंडिग और प्रोसेसिंग की दर सरकार द्वारा तय की जाएगी। इन्हें मंडी प्रांगण में मशीन लगाने के लिए जगह भी दी जाएगी। यह बात अलग है कि अभी इसके लिए जो फीस तय की गई है वह इतनी कम है कि बीते साल जारी की गई निविदा में किसी भी आॅपरेटर ने रुचि तक नहीं ली। नतीजतन प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डालना पड़ गया था। अब फिर 50 मंडियों में मशीनें लगाने निविदा जारी करने की तैयारी की जा रही है। इसके साथ ही आपरेटरों को लुभाने के लिए ग्रेडिंग की दरें बढ़ाने के साथ ही उन्हें बिजली बिलों में भी सब्सिडी देने पर विचार किया जा रहा है।
स्व सहायता समूहों को भी मिलेगा मौका
मंडी में ग्रेडिंग मशीन चलाने के लिए स्व सहायता समूहों को संचालन के लिए शर्तों में भी छूट दी जाएगी। मशीन चलाने के लिए उन्हें प्रारंभिक तौर पर बैंकों से ऋण सरकार दिलाएगी। तकनीकी सहयोग और प्रशिक्षण देने के अलावा उन्हें खरीदी केंद्रों पर भी छोटी ग्रेडिंग यूनिट लगाने की सुविधा दी जाएगी। यही नहीं कस्टम हायरिंग सेंटर (कृषि संबंधी उपकरण उपलब्ध कराने वाले केंद्र) या प्रोसेसिंग सेंटर के माध्यम से मशीनें किराए पर मिलेंगी। अप्रैल से योजना लागू करने की तैयारी है। उपज की ग्रेडिंग होने का लाभ यह होगा कि किसान मंडी में व्यापारी से मोलभाव कर सकेगा। अभी व्यापारी उपज की गुणवत्ता में कमी बताकर उचित भाव नहीं देते हैं। वहीं, ग्रेडिंग मशीनों के संचालन से रोजगार के अवसर भी बनेंगे। ग्रेडिंग मशीन सहित अन्य उपकरणों के लिए 40 प्रतिशत तक अनुदान भी दिलाया जाएगा।
गुणवत्ता को लेकर नहीं रहेगी झंझट
नीलामी में व्यापारी उपज की गुणवत्ता में कमी निकालकर उसके भाव कम लगाते हैं। उपज वापस ले जाने के झंझट से बचने के लिए किसान कम कीमत पर भी इसे बेचना ठीक समझता है और इससे उसे नुकसान होता है। हर किसान तक ग्रेडिंग की सुविधा उपलब्ध कराने से उपज की दो-तीन श्रेणियां तैयार हो जाएंगी और वह हर श्रेणी की गुणवत्ता के आधार पर व्यापारी से मोलभाव कर सकेगा। प्रदेश में 3000 से ज्यादा कस्टम हायरिंग सेंटर हैं। एक कस्टम हायरिंग सेंटर से पांच से लेकर दस गांवों के किसानों को कृषि उपकरण किराए पर दिए जाते हैं। इनका विस्तार किया जाएगा। किसान उपज को सीधे ट्राली में भरकर मंडी में लाने के बजाय सफाई और ग्रेडिंग करवाकर उपज लाएं तो अधिक मूल्य मिल सकता है। ग्रेडिंग करके उपज बेचने से किसानों की आय तो बढ़ेगी ही, इन मशीनों के संचालन से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। योजना के दिशा-निर्देश को अंतिम रूप दिया जा रहा है। प्राथमिक प्रसंस्करण (ग्रेडिंग) को प्रोत्साहन देने के लिए योजना में अभी प्रतीक स्वरूप आर्थिक लाभ के कई प्रविधान किए जा रहे हैं।
कचरा और दाने हो जाएंगे अलग-अलग
ग्रेडिंग मशीन में छन्ने लगे होते हैं, जिससे आकार के अनुसार दाने दो से तीन श्रेणी में अलग हो जाएंगे। कचरा भी अलग हो जाता है। ग्रेडिंग मशीन ट्रैक्टर के साथ जोड़ी जा सकती है इसलिए आसानी से उसे एक से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।