- हरीश फतेह चंदानी

बड़े साहब का शिक्षा प्रेम
अपने यहां कहावत है- खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इस कहावत को चरितार्थ करने वाले हैं 1988 बैच के एक आईएएस अधिकारी। दरअसल, अपने पूरे कार्यकाल में सख्त तासीर के लिए पहचाने जाने वाले इन साहब पर उनके वर्तमान विभाग का ऐसा असर पड़ा है कि वे अब शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी उड़ान भरने की तैयारी कर रहे हैं। बताया जाता है कि साहब कुछ ही दिनों में रिटायर होने वाले हैं। रिटायरमेंट के बाद साहब कुछ ऐसा करना चाहते हैं ताकि नाम भी हो और दाम भी आए। इसके लिए उनके शुभचिंतकों ने उन्हें प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी में एक कॉलेज खोलने की सलाह दे डाली है। सूत्रों का कहना है कि साहब ने अपने सिपाहसालारों को व्यावसायिक राजधानी में जमीन तलाशने के काम पर भी लगा दिया है। अब देखना यह है कि साहब का शिक्षा प्रेम क्या गुल खिलाता है। बता दें कि साहब वर्तमान में अपर मुख्य सचिव हैं।
महिला निरीक्षक सब पर भारी
बुंदेलखंड क्षेत्र के एक जिले में एक महिला निरीक्षक सब पर भारी पड़ रही है। दरअसल, यह महिला निरीक्षक जिले के एसपी की सबसे खास बनी हुई हैं। आलम यह है कि एसपी साहब भी इस महिला निरीक्षक के सामने पस्त पड़े हुए हैं। गौरतलब है कि पूर्व में आईजी की शिकायतों के बाद उक्त महिला को उसकी पसंदीदा जगह से हटा दिया गया। इसके बाद भी उक्त महिला अधिकारी पूरे जिले की प्रभारी बनी हुई हैं। जिले की पुलिस व्यवस्था में हस्तक्षेप के साथ ही इस महिला का साहब के घर में भी हस्तक्षेप बढ़ गया है। इस कारण साहब के घर में गृहयुद्ध की नौबत बन गई है। बताया जाता है कि अपने सेवाभाव से उक्त महिला अधिकारी ने साहब को इस कदर अपने वश में कर लिया है कि एसपी साहब का उससे मोह भंग नहीं हो पा रहा है। साहब की इस कमजोरी का उक्त महिला अधिकारी जमकर फायदा उठा रही है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जिले में वे जो चाहती हैं वह करवा लेती हैं। यहां बता दें कि साहब भी कोई ऐरे-गैरे नहीं हैं, बल्कि वे देश के एक बड़े मीडिया घराने के दामाद भी हैं।
प्रमुख सचिव पर भारी अपर सचिव
प्रदेश के एक सबसे बड़े विभाग में प्रमुख सचिव की कुर्सी संभाल रहे एक आईएएस अधिकारी पर उन्हीं के विभाग के एक अवर सचिव भारी पड़ रहे हैं। गौरतलब है कि 1996 बैच के उक्त आईएएस अधिकारी अभी तक किसी को कुछ नहीं समझ रहे थे। आलम यह है कि वे विभागीय मंत्री को भी घास नहीं डालते हैं। लेकिन अब साहब के सामने जैसे को तैसे वाली स्थिति आन खड़ी हुई है। यानी अभी तक दूसरों को परेशान करने वाले साहब अब अपने मातहत से ही परेशान हैं। दरअसल, अवर सचिव भी कोई ऐरे-गैरे नहीं हैं। उनका राजनीतिक रसूख काफी बड़ा है। उनकी पत्नी विधायक रह चुकी हैं। ऐसे में उनकी राजनीतिक पहुंच काफी ऊपर तक है। इसलिए साहब अपने रसूख की छाया में प्रमुख सचिव को रत्तीभर भी भाव नहीं देते हैं। आलम यह है कि बड़े साहब पूरब चलने को कहते हैं तो छोटे साहब पश्चिम की ओर चलने लगते हैं। अब बड़े साहब की समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें भी तो क्या करें। क्योंकि उन्हें मालूम है कि वे छोटे साहब का बाल बांका भी नहीं कर सकते हैं। अब देखना यह है कि दोनों अफसरों की दिशाएं आपस में मिलती हैं कि नहीं।
वे तीन अफसर कौन हैं?
प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों जमकर पर्चेबाजी हो रही है। दो-तीन तरह के पर्चे अफसरों, मीडिया कर्मियों और नेताओं के बीच बांटे गए हैं। इन पर्चों में से एक में प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया की छवि को धूमिल करने की कोशिश की गई है। पर्चे में बड़े साहब के साथ ही उनके करीबी कुछ अफसरों की तथाकथित काली करतूतों को गिनाया गया है। इस पर्चे की हकीकत क्या है, यह तो कोई नहीं जानता लेकिन उसमें की गई आंकड़ेबाजी देख और पढ़कर लोग अचंभित हो रहे हैं। पर्चे को लेकर तरह-तरह की कयासबाजी भी चल रही है। कोई कुछ कह रहा है तो कोई कुछ कोई इसे सही ठहरा रहा है तो कोई आधी हकीकत, आधा फंसाना बता रहा है। दरअसल, बड़े साहब जल्द ही रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में यह पर्चेबाजी किसी सुनियोजित रणनीति के तहत की जा रही है। इस पर्चेबाजी के पीछे असली चेहरा कौन है, यह किसी को नहीं पता है, लेकिन सेवानिवृत्त हो चुके तीन एसीएस को मास्टरमाइंड बताया जा रहा है। वैसे देखा जाए तो प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में अफसरों की कमाई और निजी संबंधों को लेकर अक्सर पर्चेबाजी होती रहती है।
बड़ों की लड़ाई, छोटे परेशान
यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि गेंहू के साथ घुन भी पिसता है। ऐसी ही स्थिति से इन दिनों करीब एक सैकड़ा निरीक्षक गुजर रहे हैं। दरअसल, इन दिनों पुलिस विभाग के मुखिया और एडीजी स्तर के कुछ अफसरों में शीत युद्ध चल रहा है। बड़ों के बीच चल रहे शीत युद्ध ने 103 निरीक्षकों की मुसीबत बढ़ा दी है। दरअसल इन सभी का निरीक्षक से डीएसपी बनने का रास्ता दो महीने पहले साफ हो गया, लेकिन अहम की लड़ाई के चलत फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी। 68 निरीक्षकों की पहली सूची दो महीने पहले जारी होनी थी। एडीजी और आईजी स्तर के अफसर फाइल ले गए, लेकिन पुलिस मुखिया ने बाद में चर्चा करते हैं बोलकर लौटा दी। ऐसा दो बार हुआ। सेवानिवृत्ति के मुहाने पर बैठे एक एडीजी को बात चुभ गई और फाइल एक तरफ पटक दी। इस नाराजगी का पुलिस विभाग के मुखिया पर तो असर नहीं हुआ, लेकिन निरीक्षकों की सेहत बिगड़ गई। कुछ निरीक्षकों को पुराने प्रकरणों में आरोप पत्र मिल गए और डीएसपी का रास्ता बंद हो गया। कुछ निरीक्षकों के विरुद्ध जांचें बैठ गई।