एक ही तरह के पत्थरों से भव्यता ले रहा है अयोध्या में राम मंदिर और उज्जैन का महाकाल लोक

पत्थरों
  • राजस्थान के वंशी पहाड़ में पाया जाता है यह पत्थर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भगवान महाकाल के नाम से विश्व प्रसिद्व उज्जैन में जिस महाकाल लोक को संजया संवारा जा रहा है उसमें भी उन्हीं पत्थरों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे अयोध्या का राम मंदिर बनाया जा रहा है। इस पत्थर की खास बात यह है कि यह बेहद मजबूत तो होता ही है साथ ही बारिश के पानी से खराब नहीं होता बल्कि उसकी चमक और बढ़ती जाती है।
इस का लोकार्पण 11 अक्टूबर को पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाना प्रस्तावित है। इसके बाद इसे आमजन के लिए खोल दिया जाएगा। इस पत्थर को बंशी पहाड़पुर पत्थर के नाम से जाना जाता है। दरअसल यह पत्थर राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित बंशी पहाड़पुर नामक पहाड़ से निकाला जाता है  ैै, जिसकी वजह से उसका नाम भी पहाड़ के नाम पर ही रखा गया है। इसी पत्थर का उपयोग राम मंदिर के अलावा दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में भी किया गया है। इस पत्थर को नक्काशी के लिए भी बहुत अधिक उपयुक्त माना जाता है। यही वजह है कि उज्जैन के निमार्णाधीन महाकाल लोक में दीवारों पर 132 फीट लंबे म्यूरल (भित्ति चित्र) इसी पत्थर पर बनाए गए हैं। इस मामले में दावा किया जा रहा है कि उज्जैन में किसी एक विषय पर बनाए गए ये देश में सबसे लंबे म्यूरल हैं। इन पर शिव विवाह को नक्काशी के रूप में उकेरा गया है। इन्हें उकोरने में आधा सैकड़ा कारीगरों को करीब नौ माह का समय लगा है। दरअसल इस पत्थर का चयन करने के पीछे की वजह है इसकी मजबूती और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध होना। इस पत्थर की चमक लंबे समय तक बनी रहती है तथा इसकी उम्र करीब पांच हजार सालों तक मानी जाती है।
इन प्रसिद्व भवनों में हुआ इसका उपयोग
बंशी पहाड़पुर पत्थर का उपयोग देश की अधिकांश ऐतिहासिक और प्रसिद्व इमारतों में किया गया है। इसमें अब अयोध्या का राम मंदिर व महाकाल धाम तो शामिल होने ही जा रहा है, जबकि इसके पहले इससे ही , अक्षरधाम मंदिर, संसद, दिल्ली का लालकिला और इस्कॉन के ज्यादातर मंदिर बनाए जा चुके हैं। यही नहीं इसका उपयोग आगरा के लाल किले के अलावा , भरतपुर के गंगा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, जयपुर की विधानसभा भवन समेत विदेशों में कई विशाल मंदिरों के निर्माण में भी किया जा चुका है।
ै यह है इन म्यूरल की खासियत
महाकाल लोक  के प्रोजेक्ट मैनेजर कृष्ण मुरारी शर्मा के मुताबिक म्यूरल में शिव विवाह की पूरी कहानी अंकित की गई है। इसमें भगवान शिव को माता पार्वती के साथ विवाह के लिए मनाने से लेकर शिव बारात, शिव को भस्म रूपी देख माता पार्वती की मां मैना का बेहोश होना, शिव-पार्वती के सात फेरे, माता पार्वती का कैलाश पर्वत पर पहुंचने तक की पूरी कहानी प्रर्दशित की गई है। इसकी लागत करीब 45 करोड़ रुपए आई है।  महाकाल लोक में भगवान शिव से जुड़ी अलग-अलग कहानियां मूर्तियों के रूप में उकेरी गई हैं। सप्त ऋषि के पास विशाल म्यूरल बना है। इसमें उनके स्वरूप नंदी गण, भैरव, गणेशजी, पार्वती माता समेत अन्य देवताओं की 200 मूर्तियां बनाई गई हैं। 108 पिलर के साथ 80 से अधिक म्यूरल भगवान शिव से जुड़ी कहानियों को दर्शा रही हैं।  इसे बनाने में करीब 10 टन पत्थर लगा है। महाकाल पथ में 25 दीवारों पर करीब 52 और सप्त ऋषि पर 28 म्यूरल बनाए गए हैं।  एक सबसे बड़ा म्यूरल रूद्र सागर के सामने बना है। इस तरह कुल 81 म्यूरल यहां बने हैं।

Related Articles