मध्यप्रदेश में… सबसे अधिक रिश्वत लेते पकड़े गए पटवारी

रिश्वतखोरी
  • राजस्व विभाग में होता है सबसे अधिक भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी

भोपाल/हरिश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सरकार जीरो टॉलरेंस पर जितना जोर दे रही है, प्रदेश में भ्रष्टाचार उतना जोर पकड़ता जा रहा है। अगर यह कहें कि मप्र में भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन गया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि प्रदेश में बिना रुपए दिए कोई काम नहीं होता। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि प्रदेश में 4 साल में 277 से अधिक घूसखोर अफसर पकड़ाए हैं।  इनमें आधे से अधिक पटवारी हैं।  इससे यह तथ्य सामने आया है मप्र में पटवारी सबसे अधिक भ्रष्ट हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि सरकारी व्यवस्था में रिश्वतखोरी को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा लेकिन, मप्र के सरकारी सिस्टम में रिश्वत को किसी अधिकार की तरह वसूला जाता है। मप्र का सचिवालय हो या जिलों में स्थित कोई छोटा सा दफ्तर हर जगह रिश्वतखोरी चरम पर है।  मप्र लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की टीम लगातार भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मियों के ऊपर कार्रवाई कर रही है। मगर सिस्टम में सुधार नहीं है। छोटे-छोटे काम के लिए लोगों को चढ़ावे चढ़ाने पड़ते हैं। स्थानीय अधिकारी लोगों की शिकायत नहीं सुनते। सरकारी दफ्तर में बाबू लोगों को टरकाते रहते हैं। पैसे देते हैं तो काम होते हैं।
प्रदेश में राजस्व विभाग में पदस्थ 277 संयुक्त कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, एएसएलआर, राजस्व निरीक्षक, पटवारी और राजस्व विभाग में पदस्थ लिपिक, भृत्य करप्शन के गंभीर मामलों में उलझे हैं और लोकायुक्त तथा अन्य आर्थिक अपराध की जांच करने वाली एजेंसियां इनके विरुद्ध केस दर्ज कर चुकी हैं। सबसे अधिक मामले जबलपुर और रीवा जिले में पदस्थ रहे अफसरों कर्मचारियों के विरुद्ध दर्ज हैं। वहीं झाबुआ में एक भी केस किसी भी कैटेगरी के अफसर कर्मचारी पर दर्ज नहीं है। यह स्थिति प्रदेश मे पिछले करीब साढ़े चार साल के अंतराल में लोकायुक्त और अन्य करप्शन जांच करने वाली एजेंसियों की रिपोर्ट में सामने आई है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच धीमी गति से
करप्शन पर एक्शन में मध्य प्रदेश देश में भले ही छठवें नंबर पर हों, लेकिन कोर्ट में पेडेंसी के साथ ही लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू की जांच में रफ्तार दिखाई नहीं देती। कोर्ट में ट्रायल और दोनों संस्थानों में जांच की पेडेंसी 1300 का आंकड़ा पार कर चुकी है। हालांकि पिछले तीन साल में प्रदेश की लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में 719 प्रकरण ट्रैप के साथ ही अनुपातहीन संपत्ति और अन्य के दर्ज किये हैं। यह खुलासा एनसीआरबी की रिपोर्ट में हुआ है। करप्शन पर जीरो टॉरलेंस वाले मध्य प्रदेश में भ्रष्टों पर नकेल के मामले में जांच धीमी गति से चल रही है। भ्रष्टाचार के मामलों में  एनसीआरबी की वर्ष 2021 की रिपोर्ट में बताया कि 584 दर्ज मामलों में जांच चल रही थी। जबकि वर्ष 2021 में 250 केस रजिस्टर्ड किये गए। जबकि वर्ष 2021 शुरू हुआ था तक लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में 529 शिकायतें पेंडिंग में थी। इसके बाद साल खत्म होते होते लंबित जांचों की संख्या में 55 मामले और जुड गए। हालांकि दर्ज प्रकरणों के अनुसार देश में मध्य प्रदेश का नंबर छठवां हैं। इधर अदालतों में भी भ्रष्टाचारियों के प्रकरणों की पेंडेंसी बढ़ती ही जा रही है। वर्ष 2021 की शुरूआत में 608 प्रकरण ट्रायल में थे, जबकि वर्ष के अंत तक यह संख्या बढ़कर 803 हो गई। जबकि इस वर्ष इस तरह के 195 मामले कोर्ट में भेजे गए। प्रदेश में वर्ष 2021 में ट्रैप के सबसे ज्यादा मामले सामने आए। इसमें 200 प्रकरण बनाए गए। जबकि अनुपातहीन सम्पत्ति के मामले सिर्फ 23 की दर्ज हुए। इसके अलावा भ्रष्टाचार से जुड़े अन्य मामलें 27 दर्ज किए गए।
करप्शन पर एक्शन के मामले में मप्र छठे नंबर पर
लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू पुलिस की जांच में गंभीरता दिखाई देती है। इस दौरान कई लोग कोर्ट में पहुंचे कि उनका केस खत्म किया लाए, लेकिन कोर्ट से किसी को भी इस तरह ही राहत नहीं मिल सकी। वहीं बिना ट्रायल के भी मध्य प्रदेश में एक भी भ्रष्टाचारी का केस खत्म नहीं किया गया। जबकि महाराष्ट्र: में 79, कर्नाटक में 39, ओडिशा में 59 मामले में बिना ट्रायल के ही खत्म कर दिए गए। करप्शन पर एक्शन के मामले में एमपी से आगे पांच स्टेट हैं। जिसमें महाराष्ट्र नंबर एक पर है, यहां पर वर्ष 2021 में 773 प्रकरण दर्ज हुए। जबकि दूसरे नंबर पर राजस्थान है, तीसरे नंबर पर तमिलनाडु, चौथे नंबर पर कर्नाटका, पांचवें नंबर पर उडीसा है। इसके बाद मध्य प्रदेश ने करप्शन पर एक्शन लिया।
रिश्वतखोरी में पटवारी सबसे आगे
सरकार द्वारा राजस्व विभाग के उच्चतम पदों पर कार्य कराने वाले अपर कलेक्टर, संयुक्त कलेक्टर से लेकर बाबू तक की जानकारी लोकायुक्त और अन्य जांच एजेंसियों से मांगी गई थी। इसके बाद यह पता चला है कि रिश्वत के मामले में प्रदेश में सबसे अधिक 154 करप्शन के मामले पटवारियों के विरुद्ध दर्ज हैं। डिप्टी कलेक्टर, एसडीएम, संयुक्त कलेक्टर स्तर के 11 अधिकारियों और तहसीलदार, नायब तहसीलदार, एएसएलआर कैडर के अफसरों के विरुद्ध 15 मामले पंजीबद्ध होकर विवेचना और चालान की प्रक्रिया में हैं। राजस्व निरीक्षकों के विरुद्ध 33 मामले अलग-अलग जिलों में घूस लेने को लेकर दर्ज हैं। इसके अलावा 64 लिपिक और भृत्य भी घूस लेने के मामले में जांच का सामना कर रहे हैं। विधानसभा में भी यह मामला आया जिसमें भाजपा विधायक यशपाल सिसोदिया ने सभी राजस्व अफसरों, कर्मचारियों के विरुद्ध जांच की विस्तृत जानकारी शासन से मांगी थी।  इस रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि आदिवासी अंचल के जिलों में ट्रेप के नाम मात्र प्रकरण हैं। झाबुआ जिले में एक भी शिकायत नहीं है तो बड़वानी, अलीराजपुर जैसे जिलों में एक-एक मामले दर्ज हैं। इसी तरह की स्थिति कुछ अन्य आदिवासी जिलों की भी है। विधायक यशपाल सिसोदिया बताते हैं कि अधिकारी तो वही हैं लेकिन इन अंचलों में ऐसे केस कम आने के पीछे मुख्य वजह लोगों में जागरूकता की कमी है। इसी कारण आदिवासी जिलों के रहवासी पैसे देने के बाद काम पर जोर देते हैं। वहीं दूसरी ओर जिन जिलों में सर्वाधिक केस टेप हुए हैं, उन जिलों में लोगों की जागरूकता के कारण ऐसा हुआ है। मुफ्त और नाम मात्र शुल्क लेने की सरकार की सेवाओं में रिश्वत लेने की अफसरों की इस कोशिश को टेप के जरिये खत्म करने का काम यहां तेजी से हुआ है।
द्वितीय श्रेणी के अधिकारी दागदार
राजस्व विभाग में रिश्वतखोरों का आकलन किया जाए तो यह तथ्य सामने आया है कि द्वितीय श्रेणी के अधिकारी सबसे अधिक दागदार हैं। रिश्वत लेते हुए ट्रेप होने वाले अफसरों में जिनके प्रमुख नाम सामने आए हैं, उसमें संयुक्त कलेक्टर डीआर कुर्रे, प्रदीप सिंह तोमर, अनिल सपकाले, डिप्टी कलेक्टर दीपक चौहान, मनीष कुमार जैन, आशाराम मेश्राम,आरके वंशकार के नाम शामिल हैं। इसी तरह तहसीलदार नन्हे लाल वर्मा, शारदा, आलोक वर्मा, लक्ष्मण प्रसाद पटेल, आदर्श शर्मा, संजय नागवंशी, नायब तहसीलदार गौरीशंकर बैरवा, रोहित रघुवंशी, किरण गहलोत, भगवान दास तनखानिया, रविशंकर शुक्ल, गौरव पांडेय, भुवनेश्वर सिंह मरावी भी लोकायुक्त और अन्य मामले में जांच के घेरे में हैं। हालांकि तहसीलदार शारदा का कहना है कि उन पर जो केस दर्ज था वह लोकायुक्त पुलिस की जांच में साबित नहीं हुआ और उन्हें क्लीनचिट मिल गई है।

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