विंध्य अंचल के कई सांसदों व विधायकों के टिकटों पर संकट

विधायकों
  • दोनों महापौर के चुनाव हारने के बाद संगठन चल रहा है बेहद नाराज

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। बीते दिनों हुए नगरीय निकाय चुनावों में वैसे तो भाजपा को सात नगर निगमों में महापौर के पदों पर हार का सामना करना पड़ा है, लेकिन इसमें सर्वाधिक नाराजगी संगठन में विंध्य अंचल के नेताओं को लेकर है। इसकी वजह है इस अंचल के दोनों नगर निगमों में भाजपा के महापौर पद के प्रत्याशियों की मिली हार। यही नहीं पार्टी को कई नगर पालिकाओं व नगर परिषदों में भी हार का मुंह देखना पड़ा है। जिसकी वजह से ही इस अंचल के  नगरीय निकाय भाजपा के लिए प्रतिकूल माने जा रहे हैं। इस अंचल के तहत आने वाली 30 सीटों में से 24 सीटों पर भाजपा के विधायक हैं। यही नहीं इस अंचल की चारों लोकसभा सीटों पर भी भाजपा के ही सांसद हैं। इसकी वजह से ही भाजपा संगठन बेहद नाराज है। इस नाराजगी का नजला अब सांसदों के साथ ही विधायकों पर भी गिरना लगभग तय है। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस अंचल के दो सांसदों के अलावा करीब आधा दर्जन विधायक संगठन के निशाने पर हैं। इसकी वजह से माना जा रहा है कि आगामी चुनाव में भाजपा संगठन ने इन्हें प्रत्याशी नहीं बनाए जाने का फैसला कर लिया है।  इसके अलावा संगठन में भी जिले स्तर पर बदलाव करने की तैयारी पूरी कर ली गई है।
भाजपा का संगठन अभी से चुनावी मोड में आ गया है। अगले साल जहां प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं , तो वहीं इसके बाद 2024 में लोकसभा के भी चुनाव हैं। आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। इसके लिए संगठन से लेकर संघ तक सक्रिय हो चुका है। संगठन व संघ स्तर पर इन जन प्रतिनिधियों का प्रभाव , कामकाज और मतदाताओं में पकड़ के साथ ही पार्टी के लिए नफा नुकसान का आंकलन कराया गया है। इसमें भी इस अंचल के दो सांसद खरे नहीं उतरे हैं। जिसकी वजह से उनका टिकट काटा जाना अभी से तय माना जाने लगा है। इसके अलावा संगठन द्वारा विधानसभा क्षेत्रों का भी गोपनीय सर्वे कराया जा रहा है। जिन विधायकों का उनके विधानसभा क्षेत्र में प्रभाव कम, नाराजगी ज्यादा होगी। उनकी टिकट बदलने का मन भी संगठन ने बना लिया है। इनमें भी इस अंचल के वे आधा दर्जन विधायक निशाने पर हैं, जो पार्टी के लिए मुसीबत बन चुके हैं और  बार-बार पार्टी के लिए संकट खड़ा कर देते हैं। वैसे भी निकाय व पंचायत चुनाव की पूरी रिपोर्ट प्रदेश संगठन के पास आ चुकी है। इसके बाद से ही संगठन के निशाने पर जनप्रतिनिधि तो बने ही हुए हैं, साथ ही संगठन के भी कई पदाधिकारी बने हुए हैं। बदलाव की शुरूआत संगठन पदाधिकारियों से करने जा रही है, जिसके तहत पार्टी कई जिलों की कमान बदलने जा रही है।
डेढ़ दर्जन जिलाध्यक्षों की होगी छुट्टी
निकाय – पंचायत चुनाव के दौरान जिन जिलों में संगठन का कमजोर परफॉर्मेंस सामने आया है, वहां के जिलाध्यक्षों पर पद से हटाने की तलवार लटकी हुई है। प्रदेश संगठन ने  ऐसे करीब डेढ़ दर्जन जिलों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट तैयार कर ली है। सत्ता-संगठन की बैठकों में भी इस मामले को लेकर मंथन चिंतन किया जा चुका है। फिलहाल प्रदेश के 18 जिलों में 46 निकायों के चुनाव की प्रक्रिया जारी है। इसके समाप्त होने के बाद भाजपा संगठन कसावट का काम शुरू करेगा। कई जिलों में जनप्रतिनिधि और संगठन के बीच समन्वय की कमी देखी गई, चुनाव के दौरान गुटबाजी के दृश्य भी सामने आए थे। इस वजह से कई महत्वपूर्ण जिलों में भाजपा प्रत्याशियों को हार का समना करना पड़ा है।   इन जिलों में संगठन का प्रदर्शन और समन्वय कमजोर होने की वजह से पार्टी पदाधिकारियों के बीच भी एकजुटता नहीं बन सकी। इसकी वजह से खासतौर पर महाकोशल, विंध्य और ग्वालियर-चंबल इलाके के अध्किांश जिलाध्यक्ष अब प्रदेश संगठन के निशाने पर हैं। इसकी वजह है पूर्व में उन्हें दी गई नसीहत के बाद भी उनकी कार्यप्रणाली में बदलाव नहीं आना है। उनके इसी व्यवहार को पार्टी प्रत्याशियों की हार से जोडकर देख रही है।
बड़े जिलों में हुई हार
नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को नुकसान का सामना करना पड़ा था। कई जिलों में गुटबाजी और समन्वय की कमी के चलते कई बागी प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतर गए और वे हार की वजह बन गए। पार्टी की प्रतिष्ठा का सवाल बने नगर निगम चुनाव के दौरान जबलपुर, ग्वालियर, रीवा, सिंगरौली, छिंदवाड़ा, कटनी और मुरैना जैसे भाजपा के ही गढ़ों में भाजपा प्रत्याशियों को हार की स्वाद चखना  पड़ा। इनमें कटनी, मुरैना, ग्वालियर, जबलपुर और रीवा शहर हैं। खास बात यह है कि इन शहरों में पार्टी के कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई थी। यही नहीं पार्टी को बुरहानपुर, रतलाम और उज्जैन जैसे जिलों में प्रत्याशी को लेकर अंत तक भारी मशक्कत करनी पड़ी है। इसके बाद भी ग्वालियर में तो पार्टी को कई दशकों के बाद हार का सामना करना पड़ा। इस अंचल में गुना, अशोकनगर, भिंड और दतिया जैसे जिले भी निशाने पर हैं। छतरपुर और दमोह के कई मामले सामने आ चुके हैं जबकि, रायसेन, आगर, झाबुआ आलीराजपुर और नरसिंहपुर की परफॉर्मेंस रिपोर्ट भी अच्छी नहीं पायी गई है।
कार्यकर्ता भी नाराज
पिछले कुछ वर्षों में सांसदों और विधायकों का व्यवहार काफी बदल गया है।  उनके अहंकार से संगठन के कार्यकर्ता और जनता के बीच नाराजगी बढ़ी है।  नगरीय निकाय चुनाव में यह स्पष्ट रूप से देखने को मिला है। पंचायत चुनाव के दौरान भी मतदाताओं का रोष खुलकर सामने आया है। भाजपा संगठन ने यदि मेहनत नहीं की होती, तो जिला पंचायत और जनपद पंचायत में भी पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं थी। संगठन ने इसे बड़ी गंभीरता से लिया है। भाजपा संगठन का विंध्य क्षेत्र में अब सबसे ज्यादा ध्यान है।

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