कर्ज में डूबा खाद्य आपूर्ति निगम, अब फिर ले रहा 34 करोड़ का लोन

 खाद्य आपूर्ति निगम
  •  गेंहू की खरीदी करने के लिए निगम के पास नही है कोई राशि

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। भारी भरकम कर्ज में डूबे मप्र खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा एक बार फिर से 34 करोड़ रुपए का नया कर्ज लेने की तैयारी कर ली गई है। हालात यह हैं कि अभी निगम पर पहले से ही 52 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है ,जिसके एवज में उसे हर दिन 9 करोड़ रुपए के  ब्याज का भुगतान करना  पड़ रहा है। नए कर्ज की वजह निगम द्वारा इस वर्ष गेहूं, चना, मसूर और सरसों की खरीदी को बताया जा रहा है। नया कर्ज पाने के लिए निगम ने प्रस्ताव सरकार के पास भेज दिया है। दरअसल सरकार द्वारा गांरटी देने पर ही निगम को नया कर्ज मिल सकेगा। पुराना कर्ज चुकाया नहीं जा रहा है और नया कर्ज लगातार लेने की वजह से निगम पर हर साल कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। अगर यही  हालात बने रहे तो एक समय ऐसे हालात बन जाएंगे की निगम ब्याज की रकम चुकाने में भी सक्षम नहीं रह जाएगा। दरअसल निगम द्वारा हर साल सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले गेंहू के लिए कर्ज तो ले लिया जाता है , लेकिन उसका समय पर भुगतान नहीं किया जाता है , जिसकी वजह से कर्ज दर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है। इस कर्ज की वापसी न कर पाने की बढ़ी वजह है गोदामों से समय पर गेहूं का उठाव नहीं हो पाना, जिसकी वजह से निगम को केन्द्र और राज्य सरकार से मिलने वाला पैसा समय पर नहीं मिल पता है। केंद्र सरकार प्रतिपूर्ति की राशि तभी रिलीज करता है , जब पूरी तरह से गेहूं गोदामों से उठा लिया जाता है। पिछले डेढ़ दशक कभी भी पूरी तरह से गोदामों से गेहूं का उठाव नहीं हो सका है। खास बात यह है कि बैंकों के ब्याज की राशि भी केन्द्र और राज्य सरकारें निगम को नहीं देती हैं। इससे ब्याज मूल कर्ज में जुड़ता जाता है। प्रदेश में वर्तमान में 150 लाख मीट्रिक टन अनाज का भंडारण है। यह तीन वर्षों से गोदामों में है। गोदामों का किराया जहां पांच माह का देना पड़ता था , वहां पर पूरे साल का देना पड़ रहा है। इससे निगम की माली हालत बिगड़ती ही जा रही है।  निगम इस संबंध में सरकारों को कई बार पत्र लिख चुका है, लेकिन राशि की प्रतिपूर्ति और अनाज का उठाव नहीं हो रहा है।
यह भी है वजह
वर्ष 2019 में 72 लाख टन गेहूं खरीदा गया था, जिसमें से साढ़े छह लाख टन गेहूं केंद्र सरकार ने सेंट्रल पूल में लेने से इन्कार कर दिया था। इस गेहूं को अब नीलाम किया जा रहा है ताकि फंसी हुई लागत निकल आए।  वर्ष 2020 और 21 में खरीदा गया लगभग 68 लाख टन गेहूं भंडार गृहों में रखा हुआ है। नागरिक आपूर्ति निगम न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से गेहूं, धान सहित अन्य उपज की खरीद करता है। इसके लिए सरकार की गारंटी पर भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण लिया जाता है। इससे किसानों को भुगतान, अनाज के परिवहन और भंडार ग्रहों में अनाज रखने के एवज में किराए का भुगतान किया जाता है। भारतीय खाद्य निगम जब सेंट्रल पूल में अनाज ले लेता है तो फिर उसका भुगतान राज्य को किया जाता है। भंडार गृहों में अभी वर्ष 2019, 2020 और 2021 में खरीदा गया गेहूं रखा हुआ है।  इसमें खास यह भी है कि केंद्र ने 2018-19 में सरकार को 65 लाख टन गेहूं खरीदी की इजाजत दी थी, लेकिन खरीदी 67.50 लाख टन कर ली गई। इसमें केंद्र ने 2.50 लाख टन गेहूं का भुगतान करने से मना कर दिया जो लागत से कम कीमत पर बेचना पड़ा। यही हाल 2020-21 का है। इस साल 103 लाख टन अकेले गेहूं की खरीदी हुई।
पांच लाख मीट्रिक टन गेहूं बेचने की तैयारी
दो लाख मीट्रिक टन गेहूं बेचने के लिए निविदा बुलाई तो वह औसत दो हजार 198 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक गया। अब पांच लाख मीट्रिक टन गेहूं बेचने की प्रक्रिया चल रही है। पिछले साल 128 लाख मीट्रिक टन गेहूं का समर्थन मूल्य पर उपार्जन किया गया था। सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रतिवर्ष एककरोड़ 11 लाख परिवारों को लगभग 32 लाख मीट्रिक टन गेहूं और चावल का वितरण करती है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना में प्रतिमाह दो लाख 40 हजार मीट्रिक टन खाद्यान्न निशुल्क दिया जा रहा है। इसके बाद  जो अनाज बचता है वो भारतीय खाद्य निगम सेंट्रल पूल में लेकर अन्य राज्यों को भेजता है। प्रदेश के गोदामों में गेहूं और धान का काफी भंडारण है। 2020 में बारिश होने की वजह से गेहूं की चमक प्रभावित हुई थी पर सरकार ने किसानों को नुकसान से बचाने के लिए केंद्र सरकार से विशेष अनुमति लेकर उपार्जन किया था। इस गेहूं को ज्यादा समय तक नहीं रखा जा सकता है, इसलिए नीलामी करने का निर्णय लिया गया है।

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