
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में नई आबकारी नीति सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गई है। सरकार ने प्रदेश में शराब सस्ती करने के लिए ठेकेदारों का मुनाफा कम कर दिया है। इससे बड़े शराब व्यवसायियों ने इस बार शराब के ठेके लेने में रूचि नहीं दिखाई है। इसका असर यह हुआ है कि प्रदेश में अभी तक 60 फीसदी शराब दुकानों का ही ठेका हो पाया है। अगर 31 मार्च तक यही स्थिति रही तो सरकार को 40 फीसदी दुकानों पर खुद शराब बेचनी पड़ सकती है। गौरतलब है कि प्रदेश में मोनोपॉली पैटर्न के चलते शराब के प्रति पेटी दाम महंगी दर पर सुनिश्चित किए जाते थे। लेकिन इस बार प्रदेश में सस्ती शराब के लिए नई आबकारी नीति आने के बाद अपना मुनाफा कम होने के कारण ठेकेदारों ने शराब दुकानों के ठेके उठाने में रूचि नहीं दिखाई है। प्रदेश में लगभग 40 फीसदी दुकानों के ठेके अभी तक नहीं हो सके हैं। हालात ऐसे बन रहे हैं कि एक अप्रैल तक इन दुकानों के ठेके नहीं उठे तो आबकारी विभाग को ही शराब बेचना पड़ेगी। इसके पहले कोरोना काल में शराब ठेकेदारों के दुकानें नहीं लेने पर ऐसी नौबत आई थी।
11 डिस्टलरियों की मोनोपॉली खत्म: प्रदेश में सालाना ढाई करोड़ पेटी देसी शराब बेचने वाली 11 डिस्टलरियों की मोनोपॉली को प्रदेश सरकार की ओर से खत्म कर दिया गया है। सरकार के टेंडर में खुली प्रतिस्पर्धा के चलते सिंडिकेट बनाकर महंगी दरों पर शराब बेचने वाली 8 डिस्टलरी लगभग सीधे बाहर हो गई हैं। इसके बाद से अब राज्य में सिर्फ तीन डिस्टलरी के ग्रुप 95 फीसदी देसी शराब की मेन्युफेक्चरिंग करेंगी। हालांकि, इससे सरकार के साथ-साथ उपभोक्ता को भी फायदा होगा। नए टेंडर के हिसाब से कीमतों में प्रति पेटी की दर में 120 रुपए तक की कमी आई है। सरकार का खरीदी रेट घटने और ठेकेदारों का रेट फिक्स होने के चलते मार्जिन वाली 350 करोड़ रुपए की रकम भी शासन के खाते में ही आएगी। प्रदेश में मोनोपॉली पैटर्न के चलते शराब के प्रति पेटी दाम महंगी दर पर सुनिश्चित किये जाते थे। इसमें 11 डिस्टलरी सिंडिकेट की तरह कीमत तय करतीं थीं, जिसके चलते प्रति पेटी देसी शराब प्लेन 472 और मसाला 555 रुपए पहुंच चुकी थी। अब नए तरीके से खुली प्रतिस्पर्धा होने से तीन ग्रुप ने 377, 390 और 402 रुपए तक प्रति पेटी दाम भरे हैं।
ये समूह हुए बाहर, अब सिर्फ ये देंगे सप्लाई: सबसे कम रेट केडिया समूह द्वारा दिया गया है। ऐसे में सरकार की ओर से उन्हें मध्य प्रदेश के 39 जिलों में देसी शराब की सप्लाई देने की स्वीकृति दी गई है। इसके साथ ही जेगपिन ब्रेवरीज को सात और एसोसिएटेड अल्कोहल को छह जिले मिले हैं। इसके चलते सोम डिस्टलरी, अग्रवाल डिस्टलरी, एलकोब्रो ग्वालियर, ओएसिस डिस्टलरी, विंध्याचल डिस्टलरी, डीसीआर डिस्टलरी, ग्वालियर डिस्टलरी और गुलशन पोल्योल्स लगभग बाहर हो गई है।
किसी भी बड़े शहर में सभी दुकानों के ठेके नहीं हुए
प्रदेश के किसी भी बड़े शहर में सारी शराब दुकानों के ग्रुप नहीं गए है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में 25 फीसदी दुकानों के ठेके नहीं उठे है। आबकारी विभाग के पास दुकानों की नीलामी के लिए अब 31 मार्च तक का समय है। इसके बाद भी सारी दुकाने नहीं गई तो विभागीय अमले और होम गार्ड्स की मदद से दुकानें चलाना पड़ेगी। आबकारी मुख्यालय ने प्रदेश के सभी संभाग व जिलों के अधिकारियों को जिलों के कर्मचारियों को तैयार रखने के निर्देश दिए हैं। प्रदेश में एक दुकान के संचालन के लिए 3 कर्मचारियों की जरूरत के हिसाब से होमगार्ड व आउट सोर्स एजेंसी से कर्मचारी लिए जाएंगे। 28 मार्च को भोपाल और जबलपुर में कोई दुकान नहीं उठी। तीन ग्रुप के लिए ठेकेदार आगे आए, लेकिन रिजर्व प्राइस से कम में टेंडर भरे है। इसलिए होल्ड कर दिया गया। ग्वालियर के 8 ग्रुप के लिए 9 टेंडर डाले गए, लेकिन सभी टेंडर को होल्ड पर रखा गया है। 2 ग्रुप के टेंडर पहले से होल्ड पर हैं। जिले की 112 में से 63 शराब दुकानों के टेंडर हो चुके हैं और 49 दुकान के टेंडर बाकी है। इंदौर में चार टेंडर आए, लेकिन वह काफी कम मूल्य पर होने के कारण होल्ड पर रखे गए हैं।