
- पोस्ट में लिखा है कि जय यादव जय माधव… अहीर रेजिमेंट, हक हमारा।
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में राजनीति रुप से जातियों का प्रभाव कभी भी प्रभावी रुप से नहीं रहा है , लेकिन अब अपने राजनैतिक नफे नुकसान के लिए जातिगत राजनीति का प्रभाव मप्र में भी तेजती से बढ़ाया जाना शुरु कर दिया गया है। इसकी वजह राजनैतिक दल बनते जा रहे हैं। इससे कितना फायदा और कितना नुकसान होगा यह तो भविष्य के गर्त में है , लेकिन कई राज्यों में इससे हुए नुकसान के उदाहरण हैं। इसके बाद भी अपने राजनैतिक कैरियर के फायदे के लिए अब कांग्रेस में किनारे किए जा चुके पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव ने अहीर रेजीमेंट की मांग के समर्थन में मोर्चा खोलना शुरू कर दिया है। यह मोर्चा ऐसे समय खोला जा रहा है जब प्रदेश में ओबीसी को लेकर सियासत का दौर जारी है। पार्टी व जनता द्वारा नकारे जाने के बाद अब यादव ने बड़ा दांव खेलते हुए सेना में अहीर रेजिमेंट बनाए जाने की मांग की है। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने सोशल मीडिया पर अहीर रेजीमेंट की मांग उठाते हुए एक पोस्ट के माध्यम से यादवों को एक करने का भी कार्ड खेला है। उन्होंने इस पोस्ट पर लिखा है कि जय यादव जय माधव… अहीर रेजिमेंट, हक हमारा। इसके साथ ही उन्होंने अपनी पोस्ट पर यह भी लिखा वीर अहीरों ने ठाना है, अहीर रेजिमेंट बनाना है, वीर थे रणधीर थे वो यदुवंशी धारा के नीर थे, कैसे पीछे हटते वो तो अहीर थे। रेजांगला के अदम्य वीरता और साहस के पर्याय वीर शहीदों को नमन करते हुए उनकी याद में भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट की मांग करता हूं।
इस तरह की चर्चाएं शुरू
उनके इस पोस्ट को लेकर कई तरह के कयासों का दौर शुरू हो गया है। इसकी वजह है उनका केन्द्रीय मंत्री रहने के बाद प्रदेश कांग्रेस जैसे पद पर रहने के बाद भी पूरे प्रदेश में अब भी उस तरह का प्रभाव नहीं बन सका है , जैसा इन दोनों पदों पर होने के बाद होना चाहिए था। यही नहीं उनकी पृष्ठभूमि एक राजनैतिक कद्दावर नेता के परिवार से रहने के बाद भी वे अब भी कांग्रेस की राजनीति में आप्रसंगिक माने जाते हैं। दरअसल उनके पिता सुभाष यादव प्रदेश के न केवल ओबीसी वर्ग के बल्कि यादव समाज के अपने समय के ऐसे कद्दावर नेता रह चुके हैं, जिनकी अनदेखी करना दिग्विजय सिंह तक के लिए मुश्किल होता था। यही वजह है की सरकार व पार्टी में विरोधी होने के बाद भी दिग्विजय सिंह को अपने मंत्रिमंडल में बतौर उपमुख्यमंत्री उन्हें रखना पड़ा था। इसके उलट अरुण न केवल चुनाव हारते आ रहे हैं बल्कि पार्टी में भी अपनी अहमियत साबित नहीं कर पा रहे हैं। उनकी अपनी ही समाज में भी पकड़ बेहद कमजोर मानी जाती है। इसे उसी से जोड़कर देखा जा रहा है। इस मांग के बहाने अरुण यादव अपनी समाज में पकड़ मजबूत करना चाह रहे हैं। हाल ही में हुए उप्र चुनाव में भी सपा की ओर से सेना में अहीर रेजीमेंट के गठन की मांग उठाई जा चुकी है। इसके बाद 15 मार्च को सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने संसद में इसकी मांग उठाई थी।
रेजिमेंट यानी सेना की टुकडिय़ां
भारतीय सेना में अलग-अलग रेजिमेंट हैं। हालांकि यह व्यवस्था सिर्फ थल सेना में ही है। वायु सेना या नौसेना में ऐसा कोई इंतजाम नहीं है। आपने भी कई नाम सुने होंगे मसलन-सिख रेजिमेंट, गोरखा रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट, मराठा रेजिमेंट वगैरह-वगैरह। यह एक तरीके से सेना टुकडिय़ां होती हैं। इन सभी टुकडिय़ों को मिलाकर सेना कंप्लीट होती है। सेना में रेजिमेंट का बंटवारा ब्रिटिश काल में ही हुआ था। तब अंग्रेजों ने आवश्यकतानुसार अलग-अलग ग्रुपों में सेना में भर्ती की। कभी यह भर्तियां जाति के आधार पर हुईं तो कभी समुदाय के आधार पर। फिर इसी बेस पर रेजिमेंट बन गई। थलसेना में भी इंफेंट्री में ही यह रेजिमेंट देखने को मिलती है।
अंग्रेजों ने शुरू की थी परंपरा
जब अंग्रेज भारत में आए तो वो अपनी फौज लेकर नहीं आए थे। व्यापार से शुरूआत करने के बाद वह लोग सेना बनाने लगे। इसके बाद वह यहीं के लोगों को सेना में भर्ती करने लगे। 1857 की क्रांति के बाद जाति के आधार पर रेजिमेंट का जोर बढ़ने लगा। अंग्रेजों ने प्रिफरेंस उन जातियों को दी, जो पहले से युद्ध में हिस्सा लेती आ रही थीं। इन्हें मार्शल और नान मार्शल के आधार पर बांटा गया। मार्शल के तौर पर राजपूत, राजपूत , सिख, गोरखा, डोगरा, पठान, बलोच को सेना में शामिल किया गया। इस कैटेगरी के लोग लड़ाइयों में हिस्सा लेते थे। अंग्रेज इन सैनिकों के चयन के वक्त जाति पर इस वजह से जोर देते थे।