मुझे विश्वास है इस नए दौर के उस सुखद छोर का

  • अवधेश बजाज
पत्रकारिता

किसी भी तरह के नए दौर की व्याख्या के लिए आवश्यक है कि हम स्वयं को उस ठौर पर रखें, जहां एक विशेष कोण से उस विषय में हमारा दृष्टिकोण निरपेक्ष तथा निश्चित होने की अनिवार्यताओं को पूरा करता हो। पत्रकारिता में चार दशक वाले सफर  में अनुभव से मिली बिवाई की दरारों तथा झुर्रियों की अदृश्य छिद्रों वाली कोशिकाओं के भीतर से झांकते हुए इस क्षेत्र के नए दौर की व्याख्या करना मेरे लिए अपने आप में अनूठा अभ्यास है। पत्रकारिता को मैंने जिस रूप में जिया है, उसमें मेरा आग्रह यही रहा कि इसका हरेक पल नयापन लिए हुए हो। सुबह समाचार पत्र के लिए उस दिन वाली परिकल्पना से लेकर देर रात को उस पत्र के प्रकाशन तक मैंने नित-नूतन वाले प्रयास को कभी भी विश्राम लेने नहीं दिया। इसलिए इस पेशे का नया दौर मेरे लिए प्रत्येक नयी भोर वाली बात ही रही है। फिर भी यदि वर्तमान दौर के अनंत छोर पकड़कर उनकी व्याख्या की जाए, तो मन के भीतर तक अनंत उथल-पुथल दस्तक देने लगती हैं। इस नए दौर ने पत्रकारिता के मूल कलेवर के  अस्तित्व के लिए बहुत बड़ी चुनौती पेश कर दी है। क्योंकि अब समाचार, विचार और इन  दोनों के सरोकार का दायरा इस पेशे में सिकुड़ गया है। पत्रकारिता के विशाल मैदान को अपने-अपने खांचे और सांचे में बदल दिया गया है। आज मीडिया हाउस के नाम से पाठक और दर्शक यह आंकलन करने लगे हैं की उसकी किसी खबर को किस हद तक विश्वसनीय माना जाए और किस हद तक प्रायोजित। दिग्गज पत्रकार खेमों में विभक्त कर दिए गए हैं। यह बहुत बड़ी चुनौती इसलिए है कि इसने पत्रकारिता की विश्वसनीयता को पहले विभक्तिकरण का शिकार बनाया और अब बात इस विश्वास के विखंडन की कगार तक जा पहुंची है।
पत्रकारिता का नया दौर एक और जिस होड़ को जन्म दे चुका है, वह भी विचलित करने लगा है। समाचार को लेकर सबसे पहले वाली दौड़ के इस स्वरूप में सबसे अलग भी घुल-मिल गया है। डिजिटल मीडिया पर अधिक से अधिक हिट बटोरने की स्पर्धा पत्रकारिता के मूल को किस बुरी तरह से हिट कर रही है, यह कोई सोच ही नहीं रहा है। एक उदाहरण है छोटा, लेकिन उसके मूल में बहुत बड़ा भाव छिपा है। कुछ साल पहले एक गाना बहुत चर्चित हुआ। बोल थे, मेरे रश्के-कमर…। देश के एक नामी मीडिया समूह ने अपने न्यूज़ पोर्टल पर दो युवतियों का वीडियो अपलोड किया। उसने लिखा कि उस गीत की इस वीडियो जैसी सटीक प्रस्तुति और कोई हो ही नहीं सकती है। उस वीडियो में इस गीत पर युवतियां कमर मटकाती हुई नृत्य कर रही थीं। जरा ही देर में वीडियो वायरल हो गया। लाइक्स और पसंद करने वालों की कतार लग गयी। यह  देखकर मैं सकते में आ गया। क्योंकि गीत में कमर यानी चांद की बात कही गयी थी और वह न्यूज पोर्टल इसे ठुमकती कमर का मामला बता रहा था। चिंता की बात यह  है कि करीब पांच साल पुरानी यह विचित्र स्थिति आज डिजिटल मीडिया पर अमरबेल की तरह काबिज हो चुकी है।   अखबारी पत्रकारिता का एक नया दौर कुछ दशक पहले शुरू हुआ था। तब स्थापित अखबारों के मालिक स्वयं ही पत्रकार की भूमिका में आ गए थे। यह परिवर्तन  स्वयं के हित साधने की गरज से लाया गया। फिर जल्दी ही ये मालिकान स्वघोषित पत्रकार से आगे बढ़कर अघोषित पक्षकार में तब्दील हो गए। सत्ता के शिखर से लेकर अफसरशाही के जिगर पर उनके द्वारा अपने-अपने तंबू ताने जाने लगे। इसने पत्रकारिता को जो नुकसान पहुंचाया, उसका वर्तमान दौर में यह दुष्परिणाम भी दिख रहा है कि यह मिशन की बजाय कुछेक रसूखदारों के द्वारा अनेकानेक रसूखदारों के हित की उत्पादक मशीन में बदल दिया गया है। इसके चलते समाचार पत्रों में अब वास्तविक पत्रकारों की जगह मैनेजर दिखने लगे हैं और वे वास्तविक पत्रकारिता के सबसे बड़े डैमेजर साबित हो रहे है।
फिर भी यदि मैं पत्रकारिता के इस नए  दौर के वर्तमान को लेकर आशंकित हूं तो, इसके शीघ्र ही आने वाले कल को लेकर मैं स्वयं को आशान्वित भी महसूस करता हूं। क्योंकि इन चुनौतियों तथा विडंबनाओं के बीच भी पत्रकारिता की तरफ नयी पीढ़ी का रुझान तेजी से बढ़ा है।  क्योंकि ऐसे हालात के बावजूद न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम और समाचार पत्रों की सुबह का आज भी करोड़ों की संख्या में लोग नियम से इंतजार करते हैं। क्योंकि आज भी किसी बहस अथवा चर्चा में अखबार में लिखा था या फैलाने न्यूज चैनल ने बताया था को निर्णायक स्वरूप में मान्यता प्रदान की जा रही है। क्योंकि अब डिजिटल मीडिया अधेड़ से लेकर बुजुर्गावस्था तक के बीच भी स्वीकृति प्राप्त कर रहा है।  यह सही है कि आज पत्रकारिता खबर की गहराई में उतरकर उसका सत्य तलाशने के परिश्रम वाले पसीने का सौंधापन खो चुकी है। खड़ी लेखनी में कड़ी बात कहने वाले अब विरले ही दिखते हैं। इस सबके बाद भी पत्रकारिता के निरंतर बढ़ते दायरे तथा उससे पाठक या दर्शक के रूप में जुड़ने वालों की लगातार बढ़ती संख्या मुझे पत्रकारिता के नए दौर के एक सुखद छोर का संकेत तथा संबल प्रदान करती हैं।

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