सरकार के खिलाफ सरेआम दादागिरी… शिव की लिकर पॉलिसी को फ्लॉप करने उतरा शिवहरे ग्रुप

शिव सरकार

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। कमलनाथ सरकार में अपने मामाफिक नीति बनवा कर मनमाने तरीके से मयकदों की जेब काटने व सरकारी नियमों की अनदेखी करने वाला शराब सिंडीकेट इस बार भी ठेकों में अपनी मनमानी चाहता है। यही वजह है कि अब वह सरकार के साथ ही शासन व प्रशासन से पूरी तरह से टकराव की नीति पर उतर आया है। हालात यह हो रहे हैं कि शिव सरकार की पॉलिसी को फ्लॉप करने के लिए शिवहरे ग्रुप सरेआम दादागिरी पर उतर आया है। यही वजह है कि कल तक जो अफसरान उसकी आंखों के तारे बने हुए थे अब उन्हीं अफसरों पर प्रताड़ित करने तक के आरोप लगाए जा रहे हैं। इसकी वजह है इस बार सरकार द्वारा शराब सिंडिकेट को तोड़ने के लिए नई नीति में किए गए प्रावधान। इन प्रावधानों की वजह से अब प्रदेश में नए वित्त वर्ष के लिए शराब दुकानों की नीलामी छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर की जा रही है, जो शराब सिंडिकेट को रास नहीं आ रहा है। यही वजह है कि शराब ठेकेदारों को अब अपना सिंडिकेट टूटता नजर आने लगा है। इसे बचाने के लिए अब सरकार पर दबाव बनाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। इसके लिए सिंडिकेट से जुड़े ठेकेदार अब सड़कों पर भी उतरने से परहेज नहीं कर रहे हैं। दरअसल नई आबकारी नीति के तहत अगले वर्ष के लिए सरकार द्वारा बड़े समूहों का एकाधिकार खत्म कर छोटे-छोटे समूहों को शराब के ठेके कराए जाने से ग्राहकों को वाजिव दाम पर गुणवत्तायुक्त शराब मिल सकेगी।
हालत यह है कि जैसे ही प्रशासन द्वारा शराब दुकानों का निरीक्षण कर उनके स्टॉक के अलावा दस्तावेजों की जांच शुरू की गई, शराब ठेकेदारों ने भोपाल व इंदौर में शराब दुकानों को बंद कर दिया। दरअसल इन दोनों ही शहरों में इसमें लल्ला शिवहरे, लक्ष्मीनारायण शिवहरे, रमेशचंद्र राय, मोहित जायसवाल के  सिंडीकेट के पास ही शराब के ठेके हैं। देश में सबसे ज्यादा महंगी शराब इन दिनों प्रदेश में बिक रही है। इसकी वजह है बीते साल सिंडीकेट ने विभिन्न नामों से शराब के
ठेके लेकर  प्रदेश में शराब के कारोबार पर अपना एकाधिकार कर लिया और मनमाने दाम पर शराब की बिक्री करने लगा। महंगी शराब की वजह से मिलावटी और जहरीली शराब पीने की मजबूरी में कई लोगों को जान तक चली गई। इसमें सरकार को मानवीय आधार पर मुआवजा तक देना पड़ा।
सिंडीकेट का एकाधिकार खत्म करने सरकार ने 2022-23 के लिए नीति बदल दी। लेकिन यह मौजूदा ठेकेदारों को रास नहीं आ रही है। इसकी वजह है वे चाहते हैं कि बीते साल की तुलना में दस प्रतिशत अधिक राशि पर उन्हें ही एक बार फिर से ठेके दे दिए जाएं।  इस पर सरकार तैयार नहीं हो रही है, जिसकी वजह से ही अब सिंडीकेट शिव की लिकर पॉलिसी को ही फ्लॉप करने पर उतारू हो गया है।  उधर जब सरकारी अमले ने गुरुवार रात से इंदौर, भोपाल और जबलपुर में शराब दुकानों पर कार्रवाई शुरू की तो सिंडिकेट से जुड़े ऋषिकांत शर्मा एवं अन्य पदाधिकारियों ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार की नीति की वजह से नए ठेकेदार नहीं मिल रहे हैं।
इसलिए दुकानें बंद कर हम पर ठेके लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। गौरतलब है कि स्थानीय आबकारी अमले ने नियमित निरीक्षण करते हुए तीनों शहरों में कई शराब दुकानें सील कर दी हैं। शर्मा का कहना है कि ड्यूटी 33 प्रतिशत तक बढ़ा दी और मुनाफा 17 प्रतिशत कम कर दिया। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में एक अप्रैल 2022 से 31 मार्च 2023 तक के लिए शराब दुकानें नीलाम की जा रही हैं। टेंडर की प्रक्रिया 11 फरवरी से शुरू हो गई है। ठेकेदारों का कहना है कि विभाग ने इस बार आरक्षित मूल्य 25 प्रतिशत बढ़ा दिया है। इसलिए दुकानें लेने में ठेकेदार रुचि नहीं ले रहे हैं।
पंसददीदा अफसर अब लगने लगे बुरे
आबकारी विभाग के जो अफसर अब तक इस सिंडिकेट के पसंदीदा रहे हैं वहीं अफसर अब कार्रवाई होते ही दुश्मन नजर आने लगे हैं। यह वे अफसर हैं जिनके कार्यकाल में सिंडीकेट ने इसके पहले तक निर्बाध रूप से मनमाने तरीके से कारोबार चलाया । अब एकाधिकार समाप्त होने की आशंका से सिंडीकेट उन्हीं अधिकारियों पर आरोपों की बौछार कर रहा है। शराब सिंडीकेट के शिवहरे लिकर्स और आबकारी विभाग के कई अधिकारियों की साठगांठ पूर्व में सामने तक आ चुकी है। एक अधिकारी तो बाकायदा हवन में वर्दी में ही साथ बैठ गए थे। बैरसिया में हुई एक बड़ी कार्रवाई में सिंडीकेट के कारण ही आबकारी अमले की किरकिरी तक हो चुकी है।
कार्रवाई में इस तरह का खुलासा
आबकारी विभाग के सूत्रों की मानें तो दुकानों पर मौजूद शराब की वैधता की जांच के लिए छापे मारे गए थे, स्टाक रजिस्टर में कई अनियमितताएं और कमियां सामने आई हैं। शराब ठेकेदार अपनी कमियों व अनियमितताओं को छिपाने के लिए दुकानें बंद रखने का नाटक कर रहे हैं। आबकारी विभाग के अधिकारियों को दुकानों की चेकिंग में बगैर रसीद के शराब बेचने का मामला भी मिला है। यही नहीं एक्सपायरी डेट की बीयर भी बेची जा रही थी। इन दोनों मामलों में कार्रवाई की गई और कार्रवाई के बाद दुकानों पर बिक्री रोक दी गई है।
भोपाल में सिर्फ 11 ग्रुप ही हो सके नीलाम
मोनोपोली खत्म करने के लिए लाई गई नई शराब पॉलिसी के तहत भोपाल में शराब की दुकानों के 1057 करोड़ के 33 ग्रुप बनाए गए। जिसमें से 11 ग्रुप की दुकानों की ही नीलामी हो सकी है। इससे 318 करोड़ का राजस्व मिलेगा, आबकारी विभाग की नई नीति के आने के बाद पूरे प्रदेश में 12 हजार करोड़ से ज्यादा में शराब दुकानों के जाने का आंकलन था, लेकिन 60 फीसदी ठेके ही नीलामी हो सके हैं।
सिंडिकेट के विरोध की वजह
सरकार द्वारा कंपनियों-गोदामों से माल (शराब) उठाने को लेकर लगाई गई पाबंदियां ठेकेदारों को रास नहीं आ रही हैं। इसी तरह से घोषित-अघोषित खर्चों को लेकर भी ठेकेदारों का विरोध है। वे कहते हैं कि मुनाफा कम होगा तो खर्च कैसे उठाएंगे। वे अंग्रेजी और देशी शराब एक साथ बेचने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे बिक्री पर असर पड़ेगा। इसी तरह से उनका विरोध 17 जिलों में समूह में ठेके पर दी जाने वाली दुकानों को लेकर भी है। इनमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर, राजगढ़, बालाघाट, खंडवा, रीवा, उज्जैन, कटनी, सतना, भिंड, सागर, नीमच, मुरैना, शिवपुरी, छिंदवाड़ा और ग्वालियर जिलों में तीन-तीन दुकानों को समूह बनाकर ठेके दिए जा रहे हैं। इन जिलों में पहले एकल ठेके की व्यवस्था थी।
सोशल मीडिया पर ऑडियो वॉयरल
सभी सेल्समैनों को भी मालवीय नगर दुकान पर बुलाया जाए और भीड़ इकट्ठी करके प्रेस कांफ्रेंस और मंत्रीजी के बंगले का घेराव किया जाए।
कृपया सब ध्यान दें, आज यह भोपाल, इंदौर की परेशानी, है कल पूरे प्रदेश की परेशानी होगी। कृपया दुकान बंद करके सहयोग कर ज्यादा से ज्यादा प्रेस वालों से मिलें और आपकी जो समस्याएं हैं उन्हें बताएं, ट्रेड आलमोस्ट खत्म पर है। आपसे अनुरोध है जिसको जो जिस तरीके की मदद कर सकता है वह इस मुहिम में मदद करे। पूरी दुकानें आज बंद रखी जाएंगी ।

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