- प्रणव बजाज

बोले नरोत्तम: हुंडई प्रबंधन करे खेद व्यक्त
हुडंई कार कंपनी द्वारा जिस तरह से हाल ही में कार बेचने के लिए भारत के अविभाज्य अंग कश्मीर का चित्रांकन किया गया है,उस पर सूबे के गृहमंत्री व राज्य सरकार के प्रवक्ता डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उनका कहना है कि यह आपत्तिजनक है। उन्होंने इस पर न केवल चिंता व्यक्त की है, बल्कि इस कदम की भर्तसना करते हुए चेताया है कि भारत की जनता जब मन बना लेती है, तो फिर सामान नहीं खरीदती है। उन्होंने कहा कि कंपनी को इस तरह की कारगुजारी नहीं करना चाहिए। मेरे हिसाब से हुंडई को इसके लिए खेद व्यक्त करना चाहिए। यह मामला सामने आने के बाद से हुडंई कंपनी की पूरे देश में आलोचना हो रही है। उधर मीडिया से बात करते हुए मिश्रा ने पंजाब में कांग्रेस पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान किए जाने के बाद तंज कसते हुए कहा कि यह ऐलान राहुल गांधी ने किस हैसियत से की है? क्या वे अध्यक्ष हैं, उपाध्यक्ष हैं या कुछ और। मिश्रा ने कहा, यह परिवारवाद है। मुख्यमंत्री का चयन तो विधायक करते हैं। राहुल गांधी संविधान से विपरीत काम कर रहे हैं।
मेरिट की जगह चहेतों को बांटी जा रहीं नौकरी
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने आरोप लगाया है कि प्रदेश में आउटसोर्स के नाम पर की जा रही कर्मचारियों की भर्ती में जमकर गड़बड़ी की जा रही है। उन्होंने इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से जांच की मांग की है। सिंह का कहना है कि उद्यमिता विकास केंद्र (सेडमैप) के माध्यम से विभिन्न विभागों में आउटसोर्स कर्मचारी रखे जाते हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान के तहत पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में 1146 पदों पर भी भर्ती की प्रक्रिया की जा रही है। इसमें चहेतों को नौकरी बांटने के लिए कट ऑफ ही जारी नहीं किया गया और चहेतों को साक्षात्कार के लिए बुला लिया गया है, जबकि सरकारी नौकरी में भर्ती के लिए अब तक कट ऑफ जारी करने की परंपरा नियमानुसार रही है। सिंह का कहना है कि प्रदेश में बेरोजगारी है। ऐसे में शैक्षणिक योग्यता, अनुभव और मूल निवासी के आधार पर मेरिट लिस्ट बनाकर जारी की जानी चाहिए और उसके आधार पर ही साक्षात्कार भी होने चाहिए।
चार साल बाद भी नहीं मिल पा रही मैदानी पदस्थापना
मप्र ऐसा राज्य बन चुका है, जहां प्रशासनिक अराजकता लगातार बढ़ती ही जा रही है। हालत यह है कि पद खाली पड़े हुए हैं, लेकिन अफसरों के होने के बाद भी उनकी पदस्थापना नहीं की जा रही है। रापुसे के ऐसे करीब डेढ़ सौ अफसर हैं, जो बीते चार साल से मैदानी पदस्थापना का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद भी उनको अब तक मैदानी स्तर पर काम करने का मौका नहीं दिया जा रहा है। खास बात यह है कि प्रदेश में यह हालात तब बने हुए हैं, जबकि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में एसडीओपी और शहरी क्षेत्रों में सीएसपी के कई पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं। प्रदेश में वर्ष 2015 से लेकर 2018 तक की चार सालों में मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास कर डीएसपी बने इन अफसरों पहली पोस्टिंग तो दी गई, लेकिन उन्हें चार साल बाद भी न तो परिवीक्षा अवधि खत्म होने और स्थायी नियुक्ति का पत्र मिला है और न ही फील्ड पोस्टिंग मिली है।
अब सीट छोड़ी तो देनी होगी 30 लाख की पेनाल्टी
सीट मिलने के बाद उसे छोड़ने वाले मेडिकल के पीजी छात्रों पर अब लगाम कसने के लिए डीएमई ने कड़े कदमों की घोषणा की है। इसके लिए डीएमई ने सीट लिविंग बॉन्ड को लेकर नए दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं। इसमें कहा गया है कि अगर कोई छात्र तय समय सीमा के बाद सीट छोड़ता है , तो उसे 30 लाख रुपए की पेनाल्टी भरनी होगी। इसी तरह से निजी मेडिकल कॉलेज में अभ्यर्थी को पूरे तीन वर्ष के कोर्स की फीस जमा करना होगी। इसके बाद भी अभ्यर्थी के मूल दस्तावेज भी जब्त किए जा सकते हैं। काउंसलिंग नियम के अनुसार, पीजी कोर्स में गैर सेवारत कैटेगरी से पढ़ने वाले अभ्यर्थियों को एक साल तक ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में काम करना होगा। दाखिला लेने के बाद गांव न जाने वाले अभ्यर्थियों को 10 लाख का जुर्माना देना होगा। जो इन सर्विस कोटा के तहत प्रवेश लेंगे, उनको पढ़ाई पूरी करने के बाद 5 साल तक ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी अस्पताल में नौकरी करनी होगी, ऐसा न करने पर 50 लाख रुपए का जुर्माना सरकार को देना होगा।