जी हां…बनारस से नोएडा लौट आए हैं हम…

  •  आशीष महर्षि
बनारस

काशी के साथ मई की यात्रा पूर्ण हुई। बनारस से नोएडा लौट आए हैं हम। लग रहा है जैसे आत्मा को वहीं छोड़ आए हैं। खैर जिंदगी ऐसी ही है। इस बार बनारस में हमने कुछ बदलाव महसूस किया तो सोच रहे हैं कि आपके सामने ज्यों का त्यों पेश कर दें। अधिकांश परिवार, दोस्त, रिश्तेदार काशी में ही हैं। इसलिए वहां जाना अपने आप में किसी सुखद अहसास से कम नहीं होता है। खैर मुख्य बात शुरू करते हैं…
मस्जिद को नमन…
काशी जाएं और बाबा का दर्शन न करें। यह कैसे हो सकता है। फिर क्या था। हम भी पहुंच गए बाबा के दरबार में। इस बार यहां अनोखी चीजें महसूस हुईं। जैसे कि काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने वाला हर शख्स एक बार ज्ञानवापी मस्जिद की ओर जरूर देखता हुआ मिला। इतना ही नहीं, कई लोग तो ज्ञानवापी मस्जिद की ओर श्रद्धा से शीश नवाते हुए भी नजर आए। जैसे वह मस्जिद नहीं, मंदिर हो। यह हमने पहली बार देखा। बनारस में बहुत-से ऐसे लोग भी मिले, जो अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा से आते हैं, लेकिन मंदिर बनाम मस्जिद के मामले में वे सब एक साथ दिखे। एक महाशय ने तो यहां तक कह डाला कि जब धर्म की बात आएगी, तब राजनीतिक विचारधारा को तिलांजलि देने में भी संकोच नहीं करेंगे।
मंदिर में भक्तों के साथ कुत्ते और चूहे…
बनारस में जब से काशी विश्वनाथ धाम बना है, बाहर से आने वाले लोगों की तादाद अब हुजूम में तब्दील हो गई है। बड़ी संख्या में लोग बाबा के दरबार में पहुंचते दिखे। हम भी पहुंचे। लेकिन हमें कॉरिडोर बनने के बाद मंदिर में वैसा दिव्य अनुभव महसूस नहीं हुआ, जो पुराने मंदिर के वक्त होता था। बाबा अब अपने से नहीं लगे। न जाने क्यों। महादेव मुझसे दूर चले गए। या फिर मैं महादेव को महसूस नहीं कर पाया। मंदिर भव्य है। जमीन पर शानदार मार्बल बिछ गया है। कुछ कुत्ते भी जमीन पर सोते दिखे। मंदिर के शिखर पर चूहों की दौड़ भी दिखी। दरबार में कुछ रिश्तेदार तो कुछ जान-पहचान के लोग भी मिले। बस बाबा का वैसा अहसास नहीं कर पाए हम, जैसा पुराने मंदिर में होता था। अब क्या ही कहें।
सलवार-सूट वाली एंकर…
काशी में मंदिर-मस्जिद के विवाद को हवा देने के लिए दिल्ली नोएडा से कई मीडियाकर्मी पहुंचे हुए थे। इन सबको या तो ज्ञानवापी के आसपास या फिर अस्सी घाट पर देखा जा सकता था। अस्सी घाट पर एक चैनल का लाइव कार्यक्रम चल रहा था। माइक से जहर का फव्वारा चालू था। हम भी वहीं कहीं जनता में बैठकर मजे ले रहे थे। बगल में दो लड़कों को बतियाते हुए देखा। वे आपस में बात कर रहे थे कि एंकर मैडम तो टीवी में मॉडर्न कपड़े में दिखती हैं। यहां सलवार-सूट में दूसरे लड़के ने कहा कि मैडम ने काशी के लिए ही सलवार-शूट खरीदा होगा। दिल्ली में कौन पहनता है।
बनारसी बाइक वाला…
एक अजीब बात और हुई हमारे संग। यह केवल बनारस में ही हो सकती है। दुर्गाकुंड से चौक थाना जाने के लिए ओला बाइक बुक की। कुछ देर बाद ड्राइवर भाई साहब का फोन आया। कहां जाना है, कहां हैं, कितना भाड़ा दिखा रहा है, जैसे प्रश्नों को पूछने के बाद उसने 42 रुपए की जगह 70 रुपए कैश मांगे। वहीं, बुकिंग में 42 रुपए ही दिखा रहा था। उससे हमने यही कहा कि क्या भइया, हम गाजीपुर से आए हैं क्या तो भाई समझाने लगा कि ऐप में एक साइड का भाड़ा दिखाता है। रिटर्न अकेले आना होगा तो 70 रुपए से कम में नहीं जा पाएंगे। हमने माथा पकड़ लिया। मन ही मन दो गाली दी उसे और खुद से कहा कि बनारसी कभी नहीं सुधर सकते हैं।
काशी के कलेजे पर अतिक्रमण…
अफसोस के साथ यह लिखना पड़ रहा है। काशी की आत्मा अर्थात गोदौलिया से घाट तक का इलाका अतिक्रमण की मार के कारण बिलख रहा। सरकार ने करोड़ों खर्च करके यहां सड़कें, मल्टीलेवल पार्किंग बनाई, लेकिन स्थानीय दुकानों ने सड़कों पर कब्जा कर लिया। बाइक से लेकर अस्थायी दुकानों तक ने सड़क को अपनी जागीर बना रखी है। पास में भी स्थानीय पुलिस थाना है। चौकी है, लेकिन सब खामोश हैं। जिस सड़क पर पैदल चलना भी किसी संघर्ष से कम न हो, वहां ऐसे अतिक्रमण देखकर रोना ही आता है। सब खामोश हैं। नेता से लेकर अफसर तक।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)  

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