यस एमएलए: महेश्वर को विकास की दरकार

महेश्वर

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। खरगोन जिले की महेश्वर विधानसभा सीट कांग्रेस के दबदबे वाली सीट मानी जाती है। अब तक हुए 15 विधानसभा चुनावों में से 9 बार कांग्रेस और साधौ परिवार के कब्जे वाला महेश्वर विधानसभा क्षेत्र आज भी विकास के लिए तरस रहा है। जीवनदायिनी नर्मदा नदी के तट पर बसी हैहय वंश की प्राचीन राजधानी माहिष्मती या महेश्वर अपने गौरवशाली इतिहास को तो सहेजे हुए है, लेकिन आज भी महेश्वर विधानसभा क्षेत्र के निवासी स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए बड़े शहरों का रुख करने को मजबूर हैं। महेश्वर के साथ ही मंडलेश्वर और करही जैसे बड़े कस्बों वाले इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की डा. विजयलक्ष्मी साधौ विधायक हैं। डा. विजयलक्ष्मी साधौ मंत्री भी रह चुकी हैं। लेकिन महेश्वर को जिस विकास की दरकार है, यह अब तक उससे अछूता है। न पर्यटन के क्षेत्र में यहां बेहतर कार्य हुआ है, न स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं मिल रही हैं। अनियोजित विकास की अस्त-व्यस्त गलियां और पूरे दिन लगने वाले ट्रैफिक जाम से जूझते देशी-विदेशी पर्यटक नजर आते हैं। खरगोन जिले का यह विधानसभा क्षेत्र हैंडलूम वस्त्र उद्योग की वजह से दुनिया भर में पहचाना जाता है। लेकिन महेश्वरी साड़ी तैयार करने वाले बुनकरों का जीवन वस्त्रों की तरह सुंदर नहीं बन पाया है।
महेश्वर विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे
महेश्वर वैसे तो प्रदेश की धार्मिक नगरी के रूप में जानी जाती है लेकिन, यहां की समस्याएं बाकी शहरों की तरह ही हैं। यहां भी शहर में सडक़ें, शिक्षा, रोजगार, अवैध खनन और निमाड़ उत्सव की जगह बदले जाना बड़ा मुद्दा है। महेश्वर साड़ी के बुनकरों को बाजार उपलब्ध नहीं होने और सरकार की तरफ से संरक्षण नहीं मिलने से भी हालात खराब हैं। इन तमाम सवालों के जवाब जब कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं से जानना चाहे तो दोनों दलों के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे। महेश्वर पवित्र नगरी भले ही घोषित हो चुकी है, लेकिन अभी भी कई सुविधाओं का अभाव बना हुआ है।  हथकरघा उद्योग के लिए कच्चा माल और डाइंग यार्न की सुविधाएं नहीं। मंडलेश्वर और करही जैसे कस्बों में बस स्टैंड, अच्छे अस्पतालों का अभाव है। मंडलेश्वर निवासी कमल पटेल कहते हैं कि महेश्वर में पर्यटन के लिहाज से काफी संभावनाएं है, लेकिन इस पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। पर्यटक आते हैं, लेकिन जैसी सुविधाएं एक ऐतिहासिक पर्यटक नगरी में होनी चाहिए वे उन्हें नहीं मिलतीं। किले और घाट तक पहुंच मार्ग अच्छे नहीं हैं। मुख्य बाजार में पूरे दिन जाम की समस्या से लोग जूझते हैं। कांग्रेस इस बार महेश्वर में स्वीकृत हुए मेडिकल कालेज को चुनावी मुद्दा बना रही है। जिला मुख्यालय नहीं होने के बाद भी महेश्वर में मेडिकल कॉलेज खोले जाने की मंजूरी मिली थी, लेकिन प्रक्रिया पूरी होने के पहले ही कांग्रेस सरकार चली गई।
महेश्वर विधानसभा सीट का सियासी मिजाज
खरगोन जिले की यह सीट साल 1952 में महेश्वर और बड़वाह क्षेत्र को मिलाकर बनाई गई थी। 1962 में परिसीमन के बाद महेश्वर विधानसभा बनी। ये इलाका खरगोन लोकसभा सीट का एक हिस्सा है, जो भौगोलिक रूप से निमाड़ में पड़ता है। महेश्वर सीट कांग्रेस के दबदबे वाली सीट है। फिलहाल यहां से कांग्रेस की विजयलक्ष्मी साधौ विधायक हैं। जो 15 महीने की सरकार में मंत्री भी थीं। अब तक हुए 15 चुनावों में से 9 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। एक बार जनसंघ, एक बार जनता पार्टी और 4 बार बीजेपी ने जीत दर्ज की।
महेश्वर विधानसभा सीट का राजनीतिक समीकरण
कांग्रेस के कब्जे वाली इस सीट पर कांग्रेस की गुटबाजी ही सबसे ज्यादा चर्चित है। इस सीट पर जहां विजयलक्ष्मी साधो का कब्जा है तो, वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव का भी प्रभाव है। साधौ और यादव के बीच पटरी बैठती नहीं है और ये खींचतान आमतौर पर देखने में आ जाती है। साल 2013 में ये गुटबाजी खुलकर सामने आ गई थी जब कांग्रेस ने अरुण यादव के समर्थक सुनील खांडे पर दांव लगाया था। हालांकि खांडे बीजेपी के राजकुमार मेव से हार गए , तो साधौ पर इस पूरे घटनाक्रम में बीजेपी से सांठगाठ के आरोप लगे। 2018 में कांग्रेस ने विजयलक्ष्मी साधौ को टिकट दिया। इस बार साधो ने इस सीट को कांग्रेस के खाते में जोड़ दिया।
महेश्वर विधानसभा सीट पर जातिगत समीकरण
महेश्वर सीट के जातीय समीकरण अन्य सीटों के मुकाबले थोड़े पेचीदे हैं। इस सीट पर कुल वोटरों की संख्या 1 लाख 94 हजार 606 है। यहां पर ज्यादातर मतदाता अनुसूचित जाति के हैं। पाटीदार, ब्राह्मण, वैश्य समाज के वोटर्स भी यहां बड़ी संख्या में हैं। देवी अहिल्याबाई होल्कर के शासनकाल में राजधानी रहा महेश्वर वैसे तो आरक्षित सीट है। जातीय समीकरण के आधार पर यहां कई बाहरी उम्मीदवारों की भी नजर रहती है। इस सीट पर वोटिंग को लेकर जनता के बीच खास उत्साह नहीं रहता। साल 2018 में हुए चुनाव में मात्र यहां 49 फीसदी ही वोटिंग हुई थी ।
साधो का दावा-  खूब विकास हुआ
विधायक विजयलक्ष्मी साधो कहती हैं कि मध्यप्रदेश की जो विकसित विधानसभाएं हैं, महेश्वर उनमें एक है। मैं पांचवीं बार विधायक हूं, इसलिए कह सकती हूं कि यहां खूब काम हुआ है। विंध्याचल की पहाडिय़ों  तक विधानसभा के गांव हैं, वहां तक भी सडक़ें बन चुकी हैं। महेश्वर का मेडिकल कालेज तो स्वीकृत है ही, लेकिन भाजपा सरकार ने एमओयू साइन नहीं किया है। मंडलेश्वर में नौ करोड़ रुपये की लागत से बन रहे आयुष अस्पताल में भी अड़ंगे डाले गए थे, उसे किसी तरह से मंजूर करवाकर काम शुरू करवाया गया है। क्षेत्र के विकास के लिए कई योजनाएं हमने तैयार करके भेजीं, लेकिन सरकार ने उन्हें मंजूर ही नहीं किया। कैनो सलालम वाटर स्पोर्ट्स के लिए सहस्रधारा दुनिया का तीसरे नंबर का प्राकृतिक स्रोत है। महेश्वर और जलकोटी के बीच केनो सलालम के लिए अकादमी बनाने का प्रस्ताव अपने मंत्री रहते बनाकर भेजा, लेकिन उसे भी वर्तमान सरकार ने अधर में लटका दिया।

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