ठाकुर और उइके को चुनौती देंगे विक्रांत

विक्रांत
  • कांग्रेस की पूरी नजर आदिवासी वोट बैंक पर  

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। अपने परंपरागत आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस मप्र में सभी तरह के प्रयास कर रही है। इसी क्रम में अब विधायक पूर्व युवक कांग्रेस अध्यक्ष विक्रांत भूरिया को कांग्रेस ने अखिल भारतीय आदिवासी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है। इसे प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का अहम दांव माना जा रहा है। दरअसल, दो दशक पहले यह वर्ग कांग्रेस का साथ छोडक़र भाजपा के साथ आ गया था, जिसकी वजह से कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इसके बाद से उसका राजनैतिक वनवास मप्र में समाप्त नहीं हो रहा है। यह बात अलग है की बीच में करीब डेढ़ साल जरुर कांग्रेस की सरकार रही है जिसे अपवाद के रुप में देखा जाता है। इस समुदाय की मप्र में 21 फीसदी भागीदारी है और उसका प्रभाव करीब एक सैकड़ा सीटों पर है। अब इस समुदाय का महत्व समझते हुए ही कांग्रेस ने इसका साथ पाने के लिए तेजी से कवायद शुरु की है। इसी वजह से हाल ही में 89 विकासखंडों से 120 आदिवासी युवाओं का चयन कर उन्हें नेतागिरी के गुर सिखाने की कवायद की जा रही है।
एक बार फिर से बीते साल विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग पर फोकस करना शुरू किया है। यही वजह है कि आदिवासी वर्ग से आने वाले उमंग सिंघार को मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। इनके बाद अब झाबुआ के विधायक डा. विक्रांत भूरिया को आदिवासी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर उनके कद में वृद्धि की गई है। इसके माध्यम से उनके द्वारा इस वर्ग में भी खासतौर पर मालवा निमाड़ अंचल में एक बड़ा संदेश देने का प्रयास किया गया है। इसका फायदा कांग्रेस गुजरात में भी मिलने की संभावना देख रही है। इसकी वजह है झाबुआ गुजरात की सीमा से लगा हुआ है। यही नहीं इसका संदेश दूसरे आदिवासी राज्य छत्तीसगढ़ में भी पार्टी के पक्ष में जाएगा। दरअसल, मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 में आदिवासी वर्ग ने भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया था, तब विधानसभा में भाजपा की सीटें पहले के मुकाबले आधी ही यानी मात्र 16 बची थीं। लोकसभा चुनाव 2024 में मध्य प्रदेश में आदिवासी बाहुल्य वाली सीटों पर भाजपा को औसत से चार प्रतिशत कम वोट मिले थे। यह स्थिति जीत मिली थी। इस वर्ग में कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव को देखते हुए ही भाजपा ने मप्र के दो आदिवासी नेताओं को केन्द्र में मंत्री बनाया है। यह दोनों मंत्री भी अलग -अलग अंचल से बनाए गए हैं। इनमें धार से सावित्री ठाकुर और बैतूल से दुर्गादास उइके शामिल हैं। अब कांग्रेस ने यहां से आदिवासी नेता को राष्ट्रीय स्तर का पद देकर नया दांव चला है। विक्रांत कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के पुत्र  हैं। वह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कट्टर समर्थक हैं। इस नाते माना जा रहा है कि विक्रांत को दिग्विजय का भी समर्थन प्राप्त है। उन्हें राहुल गांधी का भी करीबी माना जाता है। राज्य में परिसीमन के बाद से ही भाजपा और कांग्रेस का ध्यान 47 एसटी आरक्षित विधानसभा क्षेत्रों पर अधिक रहा है। इन सीटों पर मतदान के रुझान को देखें तो वर्ष 2008 में आदिवासी मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था और पार्टी 29 सीटों पर चुनाव जीती थी। वहीं, वर्ष 2013 में भी आदिवासियों ने भाजपा का साथ दिया।  पार्टी दो सीट की वृद्धि के साथ 31 सीटों पर पहुंच गई थी। इस दौरान एक निर्दलीय का समर्थन भी उसे मिला था जिससे उसकी सीटों की संख्या 32 हो गई थी, लेकिन 2018 में स्थिति बदल गई। आदिवासियों ने बढ़- चढक़र मतदान में भाग लिया और कांग्रेस को 30 सीटों पर सफलता मिली थी, भाजपा को 16 सीटें मिलीं। एक सीट पर निर्दलीय विधायक चुना गया था। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आदिवासी वर्ग को साथ लाने का भरसक प्रयत्न किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार आदिवासी क्षेत्र में आए थे जिससे भाजपा की सीटें 16 से 24 हो गई थीं, लेकिन कांग्रेस के प्रति आदिवासी मतदाताओं का आकर्षण बहुत कम नहीं हुआ। कांग्रेस एसटी वर्ग की 22 सीटें बचाने में कामयाब रही। जो उसकी कुल 66 सीटों का 33 प्रतिशत है।
सर्वाधिक आबादी मप्र में
देश में सर्वाधिक आदिवासी आबादी मध्यप्रदेश मे ही रहती है। लिहाजा यहां आदिवासियों को लेकर सियासत भी खूब होती है। यहां की कुल आबादी का 21 फीसदी हिस्सा इसी समुदाय का है। अगर विधानसभा सीटों की बात की जाए तो प्रदेश की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए बकायदा आरक्षित हैं। इसके अलावा सामान्य वर्ग की 31 सीटों पर भी आदिवासी समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं। 2003 के पहले आदिवासी वोट बैंक परंपरागत रूप से कांग्रेस का माना जाता था। इसके बाद वह वर्ग भाजपा के साथ हो गया, जिसकी वजह से लगातार कांग्रेस को सत्ता से बाहर रहना पड़ रहा है।

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