कविता पाटीदार और सुमित्रा बाल्मीकी को उच्च सदन भेजकर एक तीर से दो शिकार

कविता-सुमित्रा
  • 2 के सहारे 66 फीसदी वोट बैंक पर नजर, कार्यकर्ताओं को दिया संदेश जो काम करेगा वह पाएगा ईनाम

    भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा का हर कदम जीत की रणनीति का हिस्सा होता है। अपनी इसी रणनीति के तहत भाजपा ने कविता पाटीदार और सुमित्रा वाल्मीकि को उच्च सदन यानी राज्यसभा भेजा है। भाजपा ने अपनी इन दो नेत्रियों के सहारे 66 फीसदी वोट बैंक को साधने की कवायद की है। वहीं कार्यकर्ताओं को संदेश दिया है कि जो काम करेगा वह इनाम पाएगा।  साथ ही स्थापित नेताओं को संदेश दिया है कि अब उनका बोलबाला ज्यादा नहीं रहेगा।
    गौरतलब है कि चुनाव में भाजपा ने अपनी दोनों सीटों पर महिला प्रत्याशियों को उच्च सदन भेजकर राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया है। दरअसल जो नाम पार्टी की केन्द्रीय चुनाव समिति ने घोषित किए वे चर्चा में कही नहीं थे पर भाजपा का इन नामों के पीछे तगड़ा सियासी गणित माना जा रहा है। उसने विचार-विमर्श की लंबी प्रक्रिया के बाद ये नाम तय किए थे। पार्टी की नजर उन नेताओं पर है जो लो प्रोफाइल में रहकर काम कर रहे हैं। बड़े शहरों में पार्षदों के टिकटों में भी यही होने वाला है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले दिल्ली में हुए महानगर परिषद के चुनाव में भाजपा ने अपने पूरे वर्तमान पार्षदों के टिकट बदल दिए थे, उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया गया था। इसका परिणाम भी सुखद रहा था। इसी तर्ज पर भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों में फैसले लिए जा सकते हैं।
    ओबीसी और अनुसूचित जाति वर्ग को साधने की कवायद
    भाजपा ने ओबीसी वर्ग से आने वाली कविता पाटीदार और अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाली सुमित्रा बाल्मीकी को उच्च सदन भेजकर एक तीर से दो शिकार किए हैं। पहला यह कि पार्टी ने इस बहाने 66 फीसदी वोट बैंक को साधने की कवायद की है और दूसरा, स्थापित नेताओं को संदेश दिया है कि अब उनका बोलबाला ज्यादा नहीं रहेगा, पार्टी सामान्य कार्यकर्ताओं पर भी ध्यान दे रही है। गृह मंत्री अमित शाह ने अपने राजधानी प्रवास के दौरान भाजपा कार्यालय में हुई बैठक में साफ कहा था कि जातिवाद अब राजनीतिक की कड़वी सच्चाई है और हमें इस पर ध्यान देकर ही अपनी रणनीति बनानी होगी। राज्यसभा चुनाव में यह पूरी तरह परिलक्षित भी होती दिखाई थी। पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का मुद्दा काफी गमार्या हुआ है। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव इसी के कारण अटक गए थे। मामला सुप्रीम कोर्ट की देहरी पर जाकर सुलझा तो पर वैसा नहीं जैसा भाजपा चाहती थी। इसके बाद कांग्रेस भाजपा पर हमलावार हो रही थी और 27 प्रतिशत आरक्षण न होने का ठीकरा उस पर फोड़ रही थी। भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में ओबीसी वर्ग से आने वाली कविता पाटीदार को मैदान में उतार कर इस वर्ग को साफ संदेश देने का प्रयास किया कि वह उनके साथ है। ओबीसी वर्ग की जनसंख्या प्रदेश में पचास फीसदी है। इसी तरह सुमित्रा वाल्मीकि जिस अनुसूचित जाति वर्ग से आती हैं उनकी जनसंख्या सोलह प्रतिशत है। इस तरह भाजपा ने इन दोनों वर्गों के 66 फीसदी वोट बैंक को साधने की कवायद की है।
    महिलाओं को साधा, स्थापित नेताओं को दी नसीहत
    राज्यसभा की दोनों सीटों पर महिला प्रत्याशी उतार कर यह भी संदेश देने की कोशिश की है यह महिलाओं को राजनीति में आगे लाना चाहती है। इससे पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं में भी सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा परिवारवाद से किनारा करने का ऐलान करने वाली इस पार्टी ने अपने इस फैसले से पार्टी के स्थापित नेताओं को भी संदेश दिया है। पिछले कुछ समय में भाजपा की राजनीति में नामचीन चेहरों को ही चुनावी सियासत में तरजीह दी जाती थी। ये वे चेहरे होते वे जो दीनदयाल परिसर में ज्यादा नामूदार होते थे और पार्टी के बड़े नेताओं के आसपास गणेश परिक्रमा करते दिखते थे। कविता पाटीदार को पहले प्रदेश संगठन में महामंत्री बनाकर उन्हें महत्व दिया गया। इसके बाद उन्हें इंदौर जैसे बड़े संभाग का प्रभार दिया गया। उसके बाद राज्यसभा में भेजकर नेताओं को यह संदेश दिया है कि पार्टी का काम जो मेहनत से करेगा और संगठन की गाइडलाइन पर चलेगा उसे वरीयता दी जाएगी। इसी तरह सुमित्रा बाल्मीकी को भी उनके लो प्रोफाइल में  रहकर पार्टी का काम करने का ईनाम दिया गया है। आने वाले दिनों पार्टी इसी तरह के अन्य चौंकाने वाले फैसले कर सकते हैं। मेयर के चुनाव सामने हैं। संगठन सूत्र बताते हैं कि इन चुनावों में कुछ टिकट ऐसे नेताओं को मिल सकते हैं जिनके बारे में दीनदयाल परिसर में अब तक चर्चा भी नहीं है।

Related Articles