यस एमएलए: चार दशक से है कांग्रेस को जीत की तलाश

विक्रम सिंह विक्की

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। विंध्य अंचल के सतना जिले की रामपुर बघेलान सीट ऐसी है, जिस पर कांग्रेस को चार दशक से जीत की तलाश है। यह सीट कभी कांग्रेस की मानी जाती रही है। इसकी वजह है यह वो सीट है, जहां के रहने वाले कांग्रेस नेता गोविंद नारायण सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री तक रह चुके हैं। यही वजह है कि कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए अभी से अलग चुनावी रणनीति तैयार करनी पड़ रही है। इस सीट की खासियत यह भी है कि ब्राह्मण बाहुल सीट होने के बाद भी इस सीट पर कभी कोई भी ब्राह्मण चेहरा चुनाव नहीं जीत सका है। यह सीट अब जीतने के लिए कांग्रेस के लिए किसी सपने से कम नजर नहीं आती है। इस सीट पर कांग्रेस ने अंतिम बार 1985 में विजयी हुई थी, इसके बाद हुए सात चुनावों में कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ा है। इसमें भी खास बात यह है कि 2013 में तो कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाया था। यही नहीं बीते कई चुनावों से कांग्रेस को यहां पर तीसरे से चौथे स्थान पर रहना पड़ रहा है। अगर बीते चुनाव की बात की जाए तो कांग्रेस ने यहां पर रमाशंकर पयासी को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वे भी पार्टी को चुनाव नहीं जिता पाए। उन्हें 26 हजार से अधिक मतों से हार का सामना करना पड़ा था। यह बात अलग है कि पयासी की वजह से पार्टी इस सीट पर मुकाबले में आ गई थी, अन्यथा 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व जनपद अध्यक्ष महज 5 हजार 491 मत ही पा सकीं थीं , जिसकी वजह से वे चौथे स्थान पर रहने को मजबूर हो गई थीं। उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी। इस चुनाव में बसपा के राम लखन सिंह पटेल को दूसरा और राजेश तिवारी को तीसरा स्थान मिला था। यह ऐसी सीट है, जहां पर बसपा का प्रभाव बहुत अधिक रहता है। यही वजह है कि हर बार यहां पर भाजपा का बसपा से ही मुकाबला होता आ रहा है। यही वजह  है कि 2008 के चुनाव में इस सीट पर बसपा के रामलखन सिंह भी जीत दर्ज कर चुके हैं।
तीन पीढिय़ों का कब्जा
रामपुर बघेलान सीट किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ रही है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह विधायक रह चुके हैं। उनके बाद इस सीट पर उनके बेटे हर्ष नारायण सिंह भी चार बार विधायक रह चुके हैं। इसके अब अब हर्ष के बेटे विाायक हैं। यह बात अलग है कि वे भाजपा के टिकट पर विधायक चुने जाते रहे हैं। दरअसल इस सीट पर 1985 के बाद से रामपुर बघेलान में कांग्रेस की पराजय का जो सिलसिला शुरू हुआ है। वह लगातार जारी है, अब तक हुए सात चुनावों में से एक में भी कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है। यह ऐसी सीट है जहां पर पिछले पांच चुनावों से पार्टी को विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दूसरा स्थान भी नसीब नहीं हो रहा है। यहां कांग्रेस उम्मीदवारों को तीसरा और चौथा स्थान मिल रहा है। इस सीट पर इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार है। इसकी वजह है भाजपा व कांग्रेस के अलावा बसपा प्रत्याशी का भी मैदान में उतरना तय है। सीट पर दावेदारों की बात की जाए तो मौजूदा भाजपा विधायक विक्रम सिंह विक्की की उम्मीदवारी तय है , वहीं बसपा से पूर्व विधायक राम लखन पटेल और कांग्रेस से बालेश त्रिपाठी का नाम शामिल है। इस सीट पर इस बार आप से प्रशांत पांडेय भी किस्मत आजमा सकते हैं।
अब तक ब्राह्मण विधायक नहीं
रामपुर बघेलान विधानसभा के यदि चुनावी इतिहास की बात करें, तो 1951 से अब तक के पांच दशक के चुनावी इतिहास में 15 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन ब्राह्मण बाहुल्य विधानसभा रामपुर बाघेलान में अब तक किसी ब्राह्मण को विधायक बनने का मौका नहीं मिला है। यहां क्षत्रिय और पटेल ही विधायक चुने गए हैं। 1951 के चुनाव में कांग्रेस से गोविंद नारायण सिंह विधायक चुने गए थे। आज इसी रामपुर बाघेलान विधानसभा का नेतृत्व स्वर्गीय गोविंद नारायण सिंह के नाती विक्रम सिंह विक्की कर रहे हैं। यह अलग बात है कि विक्की भाजपा से विधायक हैं। अब तक हुए 15 चुनाव में 11 दफा क्षत्रिय तो चार दफा पटेल इस विधानसभा का अब तक प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
जातिगत समीकरण
इस सीट पर ब्राह्मण, पटेल मतदाता ज्यादा हैं। अल्पसंख्यक वोट जीत के समीकरण में प्रभावी भूमिका अदा करते हैं। जाति समीकरण पर ही टिकट तय होते हैं। उप्र से सटे होने होने के कारण यहां जातिगत समीकरण का जोर रहता है, लेकिन अब समय के साथ यहां पर भी जातिवाद के साथ विकासवाद भी हावी होता जा रहा है। इस सीट पर पटेल, ठाकुर, ब्राह्मण जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं, इसलिए कांग्रेस, भाजपा व बसपा प्रत्याशी का चयन इसी आधार पर करती है। अगर बसपा की रणनीति की बात करें तो यहां अनुसूचित जाति व जनजाति के मतदाता कम होने के कारण 2003 और 2008 में बसपा ने ठाकुर जाति के नेता को प्रत्याशी बनाया। इस रणनीति में बसपा सफल भी रही थी और दोनों चुनाव में जीत भी हासिल हुई थी।

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