
- 12 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के बागी बिगाड़ेंगे खेल
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में प्रत्याशियों के टिकट वितरण के बाद भाजपा और कांग्रेस में बगावत को देख तीसरे मोर्चे की बांछें खिल गई हैं। दोनों पार्टियों के कई नेताओं ने सपा, बसपा और आप का दामन थाम लिया है। इन दलबदलुओं को तीसरे मोर्चा ने हाथों-हाथ लिया है और टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। प्रदेश की 12 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बेटिकट चेहरे जीत-हार का समीकरण प्रभावित करेंगे। अगर पिछली बार की तरह करीबी मुकाबला हुआ तो ये सीटें निर्णायक साबित हो सकती हैं। कांग्रेस व भाजपा द्वारा प्रत्याशियों की घोषणा किए जाने के बाद जो विद्रोह की स्थिति बनी है, वह दोनों ही दलों की नींद हराम किए हुए हैं। हालत यह है कि एक को शांत कराने के प्रयास किए जाते हैं, तो कई और विद्रोह की स्थिति में आ जाते हैं। ऐसे में दोनों ही दलों के बड़े नेता अपने स्तर पर इस असंतोष को शांत कराने के प्रयासों में लगे हुए हैं। इसके बाद भी दावेदार नामांकन फार्म लेने और भरने तक में पीछे नहीं रह रहे हैं। कई सीटों पर तो यह हालात हैं कि दावेदार मौजूदा पार्टी के प्रत्याशी को हराने के लिए ही चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं, तो वहीं कई दावेदार दलबदल कर बसपा, सपा व आप जैसे दलों के टिकट पर ताल ठोकने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। यह वे बागी नेता हैं, जिनका अपना प्रभाव है, जिसकी वजह से पार्टी प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ना तय मानी जा रही है।
सपा-बसपा का अच्छा प्रभाव
प्रदेश में बसपा और सपा का उत्तर प्रदेश से सटे जिलों में अच्छा प्रभाव है। उनके कोर वोटर बड़े चेहरों के फॉलोअर वोटरों के साथ मिलकर बड़ी ताकत बन जाते हैं। पिछली बार बसपा ने इसी बेल्ट में दो और सपा ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी। बसपा को पिछली बार 6 प्रतिशत के लगभग और आम आदमी पार्टी को एक साल पहले हुए निकाय चुनाव में इतने ही प्रतिशत वोट मिले थे। इसलिए बागी नेताओं का आकर्षण इन पार्टियों की तरफ बढ़ा है। मुरैना के सुमावली सीट से टिकट कटने के बाद अजब सिंह कुशवाहा बागी होकर बीएसपी से मैदान में उतरने की तैयारी में थे। कांग्रेस ने 25 अक्टूबर को इस सीट से प्रत्याशी बदलते हुए उन्हें टिकट दे दिया। इससे नाराज कुलदीप सिकरवार बीएसपी में शामिल हो गए और उन्हें वहां से टिकट भी मिल गया। अटेर सीट पर भाजपा के पूर्व विधायक मुन्ना सिंह भदौरिया ने बसपा का दामन थाम लिया है। पार्टी ने उन्हें अटेर से टिकट दिया है। वे दो बार विधायक रह चुके हैं। भाजपा ने यहां से अरविंद सिंह भदौरिया और कांग्रेस ने यहां से हेमंत कटारे को प्रत्याशी बनाया है। पिछली बार भी यहां त्रिकोणीय संघर्ष हुआ था। वहीं बिजावर सीट से सपा ने कांग्रेस पार्टी छोडक़र आए मनोज यादव को टिकट दिया था। इस पर बीजेपी की पूर्व विधायक रेखा यादव ने बगावत कर दी। उन्होंने सपा का दामन थाम लिया। सपा ने झट से प्रत्याशी बदलते हुए, मनोज यादव की बजाय रेखा यादव को टिकट दे दिया। रेखा यादव कद्दावर नेता है। उनके मैदान में आने से इस सीट पर भाजपा- कांग्रेस दोनों की उम्मीदों को झटका लगा है। भाजपा ने यहां से सपा विधायक बबलू शुक्ला को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने चरण सिंह यादव को टिकट दिया है। यहां ओबीसी वोटर ही निर्णायक माने जाते हैं। अब त्रिकोणीय मुकाबले में ये सीट किसी के भी पाले में जा सकती है। जौरा सीट पर बसपा के पूर्व विधायक रहे मनीराम धाकड़ को सपा ने अपना प्रत्याशी बनाया है। मनीराम धाकड़ 2008 में 36 हजार वोट पाकर इस सीट पर जीते थे। भाजपा ने मौजूदा विधायक सूबेदार सिंह राजौधा को टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस ने यहां 1 से। से पंकज उपाध्याय को मैदान में उतारा है। धाकड़ वोट इस सीट पर बड़ी संख्या में हैं। मनीराम भाजपा-कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इनको भायी बसपा
बसपा ने ग्वालियर दक्षिण में कांग्रेस छोडक़र पार्टी में आए केदार कंसाना को टिकट दिया है। कंसाना टिकट के मजबूत दावेदार थे। कांग्रेस ने यहां से पिछली बार बागी होकर बसपा से चुनाव लड़े साहब सिंह गुर्जर को टिकट दिया है। साहब सिंह पिछली बार दूसरे नंबर पर थे। तब भाजपा के भारत सिंह कुशवाहा चुनाव जीत गए थे। कंसाना के बगावत का नुकसान एक बार फिर कांग्रेस उठा सकती है। नागौद सीट पर कांग्रेस के पूर्व विधायक और सतना के बड़े चेहरे माने जाने वाले यादवेंद्र सिंह ने टिकट कटने के बाद पार्टी छोड़ दी थी। इसके बाद बसपा ने उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा ने यहां से मौजूदा विधायक नागेंद्र सिंह, कांग्रेस ने यहां से डॉ. रश्मि पटेल को टिकट दिया है। यहां भाजपा के गगनेंद्र सिंह भी बागी हो चुके हैं। यादवेंद्र सिंह 5 बार के विधायक तो नागेंद्र सिंह 4 बार के विधायक रह चुके हैं। अभी तक इन दोनों के बीच ही यहां मुकाबला होता रहा है। लहार सीट पर भाजपा के पूर्व विधायक रसाल सिंह टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर बीएसपी में शामिल हो गए। भाजपा ने यहां से बसपा से आए अंबरीश शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। जबकि कांग्रेस से नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह मैदान में हैं। रसाल के चुनावी मैदान में होने से भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। त्योंथर सीट पर बसपा ने यहां से भाजपा के देवेंद्र सिंह को टिकट दिया है। देवेंद्र भाजपा के कद्दावर नेता थे। भाजपा ने यहां से सिद्धार्थ तिवारी को और कांग्रेस ने रमाशंकर पटेल को मैदान में उतारा है। पिछली बार भी बसपा की वजह से कांग्रेस को ये सीट गंवानी पड़ी थी। इस बार भाजपा को नुकसान की आशंका व्यक्त की जा रही है। मुरैना में भाजपा के पूर्व विधायक रुस्तम सिंह बेटे राकेश के साथ बसपा में शामिल हो गए। बसपा ने यहां से राकेश को टिकट दिया है। कांग्रेस ने यहां से पंकज उपाध्याय को मैदान में उतारा है। भाजपा ने यहां पिछली बार उपचुनाव में हार गए रघुराज कंसाना पर ही फिर भरोसा जताया है। रुस्तम के बागी होने का सीधा नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है। भिंड में भाजपा के कद्दावर नेता रहे रक्षपाल सिंह कुशवाहा ने टिकट नहीं मिलने पर पार्टी छोड़ बसपा की सदस्यता ले ली। इसका इनाम पार्टी ने उन्हें टिकट देकर दिया था, लेकिन संजीव भी टिकट नहीं मिलने पर अपनी पुरानी पार्टी में लौट गए तो पालका टिकट काट उन्हें प्रत्याशी भाजपा ने यहां से पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाहा को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को प्रत्याशी बनाया है। संजीव कुशवाहा भी यहां से चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुके हैं। ऐसे में यहां चतुष्कोणीय मुकाबले में किसी की भी लॉटरी लग सकती है।
ये आप के साथ
गुना जिले की चाचौड़ा सीट पर भाजपा की पूर्व विधायक रह चुकी ममता मीना टिकट नहीं मिलने पर आप में शामिल हो गई। आप ने उन्हें टिकट भी दे दी है। भाजपा ने यहां से प्रियंका मीणा को प्रत्याशी बनाया है। दोनों का मुकाबला इस सीट पर दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह से होगा। वहीं कालापीपल सीट पर कांग्रेस नेता चतुर्भुज तोमर ने आप की सदस्यता लेते हुए टिकट भी पा ली है। वे यहां से पिछले तीन बार से कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे। कांग्रेस ने मौजूदा विधायक पर ही भरोसा जताया है। ऐसे में उन्होंने पार्टी छोड़ दी।