3 साल में सरकारी स्कूलों में नहीं हुआ कोई अधोसंरचना विकास, मिला तीसरा ग्रेड

शिक्षा

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में शिक्षा के स्तर में तमाम सुधार के सरकारी दावों और वादों की पोल परफॉर्मेंस ग्रेड इंडेक्स ने खोल दी है।  इसमें मप्र को तीसरे दर्जे के ग्रेड में जगह दी गई है। प्रदेश की हालत यह तब है जबकि हर साल सरकारी खजाने से सैकड़ों करोड़ रुपए शिक्षा के नाम पर खर्च किए जाते हैं।
हाल ही में जारी किए गए इंडेक्स में खुलासा किया गया है कि मप्र में प्राथमिक छात्रों के लिए तय शिक्षकों के मानक तक को पूरा नहीं किया गया है, जिसकी वजह से मप्र में 30 की जगह 48 बच्चों पर एक शिक्षक है। इसमें यह भी बताया गया है कि मप्र ऐसा राज्य है, जहां के करीब सैकड़ों स्कूल तो ऐसे हैं, जिनमें एक भी शिक्षक ही नहीं हैं।
अब ऐसे स्कूलों में कैसे पढ़ाई होती होगी समझा जा सकता है। इसी तरह से ग्रामीण इलाके के  अधिकांश सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जिनमें सिर्फ एक ही शिक्षक है। उसी के जिम्मे कई कक्षाओं की पढ़ाई से लेकर स्कूल प्रबंधन तक का काम रहता है। यही वजह है कि प्रदेश का शिक्षा के क्षेत्र में बेहद खराब प्रदर्शन बना हुआ है। इसकी वजह से प्रदेश को तीसरे दर्जे के ग्रेड में रखा गया है। खास बात यह है कि इस मामले में बीते तीन सालों में कोई भी काम ही नहीं किया गया है। यही वजह है कि इसके लिए तय 16 मापदंडों में तो प्रदेश चार वर्ष पूर्व के छठवें स्थान पर ही रहने को मजबूर बना हुआ है।
इन मापदंडों में अधोसंरचना विकास, ड्रॉप आउट रेट, छात्र व शिक्षकों का अनुपात, स्कूलों में बच्चों की पहुंच शामिल है।  खास बात यह है कि प्रदेश में हर साल करीब 82 फीसदी बच्चे प्राथमिक स्तर पर ही स्कूल जाना बंद कर देते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्राथमिक स्तर पर लड़कों का नामांकन 3942871 और लड़कियों का नामांकन 3621229 था, जो हायर सकेंडरी
में आते -आते 82 फीसदी तक कम हो गए।
यह है प्रदेश के स्कूलों की हालत
प्रदेश के महानगरों में शामिल इंदौर जिले के 1040 स्कूलों में ही डेढ़ हजार शिक्षकों की कमी बनी हुई है। हालत यह है कि न्यूनतम 9 हजार शिक्षकों की जगह महज 7500 शिक्षक ही पदस्थ हैं। इसी तरह जबलपुर के करीब पांच सैकड़ा स्कूलों में तो अब तक बिजली ही नहीं पहुंच सकी है। अगर सागर शहर की बात की जाए तो संभागीय मुख्यालय पर ही वर्ग एक और वर्ग दो के तीन हजार शिक्षकों की कमी सालों से बनी हुई है। इसी तरह से दमोह जिले के 2143 स्कूलों में से आठ सौ में न बिजली है और न फर्नीचर। इसी तरह से शिवपुरी जिले के 2748 स्कूलों में से करीब पांच सौ स्कूलों की हालत तो इतनी खस्ता है कि वे कभी ढह सकते हैं। यही नहीं इस जिले के करीब साढ़े सात सौ स्कूलों में तो बिजली और फर्नीचर ही नहीं है, जबकि शिवपुरी जिले में करीब15 सौ शिक्षकों की जरुरत बनी हुई है।

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