फिर महिलाओं के हक पर हल्ला क्यों?

महिलाओं के हक
  • लोकसभा चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में परहेज

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। संसद में करीब 27 साल से लटके महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को सितंबर 2023 में पारित किया गया था। इसने महिलाओं के लिए एक तिहाई विधायी सीटों के आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया। हालांकि, जनगणना और परिसीमन के बाद ही इसके लागू होने की संभावना है। मतलब, 2029 से पहले ये लागू नहीं होगा। लेकिन विडंबना यह देखिए की सडक़ से लेकर संसद तक सभी राजनीतिक दल महिलाओं के हक की बात करते हैं। मगर, इरादे उतने साफ दिखते नहीं जितनी तेज आवाजें उठती हैं। वैसे तो अभी महिला आरक्षण विधेयक या नारी शक्ति वंदन अधिनियम अभी लागू नहीं हुआ है। फिर भी इस चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या बताती है कि महिला हक की बात करने वाले नेता असल में इस मुद्दे पर कितने संजीदा हैं। आजादी के बाद से लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कभी भी 12 प्रतिशत तक नहीं पहुंचा। इस असमानता का एक बड़ा कारण चुनाव लडऩे वाली महिलाओं की कम संख्या है। मप्र की बात करें तो आधी आबादी को टिकट देने में राजनीतिक दल कंजूसी बरतते हैं। वहीं प्रदेश की एक दर्जन सीटों पर महिला सांसद कभी नहीं बनीं है। प्रदेश की आधी आबादी के उत्थान को लेकर राजनीति में बातें तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। प्रदेश में केवल भाजपा ही ऐसी है जिसने 29 सीटों में से छह पर महिला उम्मीदवार उतारे हैं। कांग्रेस ने महज एक महिला को टिकट दिया था। सपा ने समझौते के तहत मिली एक मात्र सीट पर महिला प्रत्याशी उतारा था ,पर उनका नामांकन निरस्त हो गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश की 12 सीटें ऐसी है। जिन पर पहले लोकसभा चुनाव से लेकर आज तक व कोई भी महिला सांसद नहीं बन सकी। राजनीति में महिलाओं को आगे बढऩे  की बात तो सभी राजनीतिक दल करते हैं ,पर चुनाव के समय उन्हें टिकट देने से वे पीछे हटते नजर आते हैं, दरअसल सरकार अंकगणित के आधार पर बनती है। लिहाजा जीतने की संभावना वाले व्यक्ति को टिकट दिया जाता है। प्रदेश की 4 लोकसभा सीटें ऐसी हैं , जहां सबसे ज्यादा महिलाओं को प्रतिनिधित्व रहा है। इनमें इंदौर का नाम सबसे आगे है। यहां लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आठ बार चुनाव लड़ा और हर बार वो जीतीं। इसके बाद गुना ऐसी सीट है, जहां से विजयाराजे सिंधिया 6 बार सांसद चुनी गई। तीसरे नंबर पर खजुराहो सीट आती है। यहां से पूर्व सीएम उमा भारती 4 बार सांसद चुनी गई। वहीं कांग्रेस की विद्यावती चतुर्वेदी दो बार सांसद बनीं। वहीं, शहडोल लोकसभा ऐसी है, कहा। 10 महिला प्रत्याशी चुनाव लड़ चुकी हैं। ग्वालियर और भोपाल ऐसी सीटें हैं जहां तीन- तीन बार महिलाओं को सांसद बनने का मौका मिला। ग्वालियर में विजयाराजे सिंधिया एक बार तो यशोधरा राजे सिंधिया दो बार चुनाव जीतीं। वहीं भोपाल में 1957 के पहले ही चुनाव में महिला सांसद चुनी गई थीं। भिंड, सागर, विदिशा, सीधी और बैतूल ये पांच सीटें ऐसी है, जहां पर दो बार महिला सांसद चुनी गई। बालाघाट में 1957 से लेकर 1999 तक 12 लोकसभा चुनाव हुए, लेकिन कांग्रेस-भाजपा ने किसी भी महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार पुष्पा बिसेन को मैदान में उतारा था, लेकिन वो चुनाव हार गई। वहीं 2014 के चुनाव में कांग्रेस की तरफ से हिना कावरे चुनाव लड़ीं थीं। उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। इस बार भाजपा ने भारती पारधी के रूप में महिला उम्मीदवार को टिकट दिया है।
7 सीटों पर आज तक महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं
प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 7 सीटें ऐसी है, जहां आज तक भाजपा और कांग्रेस ने एक भी महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया। वहीं 5 सीटें ऐसी है, जहां महिलाओं को टिकट तो मिला, लेकिन वे सांसद नहीं चुनी गई। चार लोकसभा सीटें ऐसी भी हैं, जहां सबसे ज्यादा महिला सांसद चुनी गई। प्रदेश की 7 सीटें ऐसी हैं, जहां कभी कोई महिला सांसद नहीं चुनी गई। इनमें सीएम डॉ. मोहन यादव के गृह नगर उज्जैन लोकसभा सीट भी शामिल है। जहां आज तक भाजपा-कांग्रेस ने किसी महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया। इसके अलावा मुरैना, सतना, होशंगाबाद, देवार, खरगोन, खंडवा सीट पर भी किसी भी महिला की भाजपा-कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। सतना लोकसभा सीट पर 1967 में पहली बार चुनाव हुए। तब से लेकर अब तक कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों ने किसी भी महिला को टिकट नहीं दिया। 2024 के चुनाव में यहां भाजपा ने गणेश सिंह और कांग्रेस ने सिद्धार्थ कुशवाह को टिकट दिया है। 2009 में परिसीमन के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस-भाजपा से कोई महिला उम्मीदवार नहीं उतरी। इससे पहले यह सीट शाजापुर लोकसभा का हिस्सा थी। यहां से भाजपा के महेंद्र सिंह सोलंकी और कांग्रेस के राजेंद्र मालवीय के बीच मुकाबला है। वहीं आरक्षित सीट खरगौन में 1957 से लेकर 2019 तक के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने किसी भी महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। इन सीटों पर महिलाएं लड़ीं तो पर हिस्से में आई हार: राजगढ़, टीकमगढ़, रीवा, बालाघाट और मंडला, ये वो पांच सीटें हैं जहां भाजपा और कांग्रेस ने महिलाओं को टिकट तो दिया, लेकिन वो जीत नहीं सकीं। राजगढ़ में तो 2019 में पहली बार कोई महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ी थीं। तब कांग्रेस ने मोना सुस्तानी को चुनाव मैदान में उतारा था पर वे भाजपा के रोडमल नागर से हार गई। 

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