
- भ्रष्टाचार और कमिशनखोरी के कारण मापदंडों के अनुसार नहीं हो रहे काम
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र को देश में सबसे विकसित राज्य बनाने के लिए प्रदेश सरकार का पूरा फोकस विकास पर है। सरकार की कोशिश है की शहर से लेकर गांव तक एक समान विकास हो। इसका असर भी दिख रहा है कि प्रदेश में विकास की गति अन्य राज्यों से कहीं अधिक है। लेकिन मप्र में अफसरों के कारण विकास कार्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं। आलम यह है कि भ्रष्टाचार और कमिशनखोरी के कारण मापदंडों के अनुसार सड़क, पुल, पुलिया और बांधों का निर्माण नहीं हो रहा है। इस कारण प्रदेश में बनने वाले सड़क, पुल, पुलिया और बांध एक बारिश भी नहीं झेल पा रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले डेढ़ दशक से मप्र में विकास की रफ्तार सबसे तेज है। लेकिन विडंबना यह है कि सरकार की नीतियों के विपरीत अफसर निर्माण कार्यों की गुणवत्ता का पालन नहीं करवा रहे हैं। इसकी वजह है भ्रष्टाचार और कमिशनखोरी। आला अफसरों से लेकर निचला अमला काली कमाई के चक्कर में घटिया निर्माण को अंजाम दे रहा है और परिणाम जनता को भोगना पड़ रहा है। हाल में फूटे कारम बांध को लेकर भ्रष्टाचार की जो कहानी सामने आई है, वह नई नहीं है। इसके पहले भी पुल-पुलिया से लेकर बांधों तक के निर्माण में भ्रष्टाचार होता रहा है, समय-समय पर पुल क्षतिग्रस्त होने विकास के नाम पर जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है।
आधे-अधूरे पड़े हैं कई निर्माण कार्य
प्रदेश में सड़क, पुल, पुलिया और बांधों के निर्माण में भ्रष्टाचार और कमिशनखोरी का आलम यह है की प्रदेश में कई निर्माण कार्य वर्षों से आधे-अधूरे पड़े हुए हैं। इनमें से एक है छिंदवाड़ा में बन रहा आरओबी। वीआईपी मार्ग स्थित टीवी सेनेटोरियम रेलवे क्रासिंग पर बन रहे आरओबी पर गर्डर लांचिंग का कार्य रेलवे व नगर निगम द्वारा किया जा चुका है। आरओबी के ऊपर सुरक्षा दीवार व स्लैब डालने का कार्य चल रहा है। इस कार्य के बाद आरओबी के ऊपर सड़क का निर्माण कार्य किया जाएगा, लेकिन उसमें अभी समय लगेगा। रेलवे के कारण पहले लेटलतीफी हुई। अब बाकी बचे कार्य में लेटलतीफी बरती जा रही है। वहीं 2007-08 में एक सर्वे एजेंसी ने कटनी नदी के पुल की जर्जर घोषित कर दिया था। कुछ दिनों के लिए इस पुल से भारी वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया, यह तो गनीमत है कि अभी तक जर्जर घोषित पुल पूरी मजबूती के साथ खड़ा है, वरना कभी भी शहर दो हिस्से में बंट जाता। 2008 से पुल निर्माण की प्रक्रिया चल रही है। निर्माण कार्य में इस तरह की लापरवाही का नमूना शायद ही प्रदेश और देश में कहीं देखने को मिले। कटनी नदी पर बनने वाला 90 मीटर का पुल 14 वर्षों में भी पूरा नहीं हो पाया है। कटनी नदी में पुल निर्माण की आधारशिला 2008 में रखी गई जो 2022 में भी पूरा नहीं हुआ।
कारम बांध ने बर्बाद कर दिया किसानों को
हाल ही में धार के कारम नदी पर बन रहे डैम के फूट के बाद जमकर बवाल मचा हुआ है। डैम फूटने के बाद प्रशासन को डैम के आसपास के 18 गांवों को खाली कराना पड़ा। इस डैम में पानी रोककर किसानों को सिंचाई के लिए पानी दिए जाने की योजना थी, लेकिन अब डैम का पूरा पानी भी बह गया और किसानों की फसल भी बर्बाद हो गई। हैरानी की बात यह है कि 305 करोड़ के कारम बांध को तीसरा ठेकेदार ही पूरा करेगा। क्योंकि कारम मध्यम सिंचाई परियोजना का ठेका दिल्ली की एएनएस कंस्ट्रक्शन कंपनी ने लिया था और अपना कमीशन निकालकर काम सहयोगी सारथी कंपनी को सौंप दिया था। इस कंपनी ने भी आगे तीसरे ठेकेदार को काम दे दिया, जिसने इस बांध का अभी तक निर्माण किया है। आगे भी यही ठेकेदार बांध का निर्माण करेगा। गौरतलब है कि धार जिले के कारम मध्यम सिंचाई परियोजना में निर्माणाधीन बांध में रिसाव की घटना के बाद मुख्य अभियंता, जल संसाधन विभाग, नर्मदा ताप्ती कछार, जल संसाधन विभाग इंदौर ने बांध निर्माण का ठेका लेने वाली दिल्ली की एएनएस कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड और पेटी कॉन्ट्रैक्ट पर 50 प्रतिशत काम करने वाली ग्वालियर की फर्म सारथी कंस्ट्रक्शन के सिविल ठेका पंजीयन निरस्त करते हुए दोनों ही कंपनियों को काली सूची में डाल दिया है। इसके बावजूद इस क्षतिग्रस्त और निर्माणाधीन बांध के अधूरे काम को आगे भी यह इन्हीं कंपनियां ही पूरा करेंगी। इन कंपनियों का यह काम तीसरा ठेकेदार कर रहा था। इसलिए आगे भी वही काम करेगा।
पहली बारिश में पुल धंसा, नहर टूटी
घटिया निर्माण कार्य और भ्रष्टाचार के दो अन्य मामले इस मानसून में सामने आए हैं। रायसेन के बेगमगंज में बीना नदी पर नवनिर्मित पुल का एक हिस्सा 3 फीट तक धंस गया है। बीना नदी पर बेगमगंज- हैदरगढ़ मार्ग ईदगाह के करीब बनाया गया पुल पहली ही बारिश में अपने निर्माण में हुई भ्रष्टाचार की कहानी बयां करने लगा। ब्रिज कारपोरेशन द्वारा ठेकेदार के माध्यम से तैयार कराए जा रहे करीब ढाई करोड़ रुपए की लागत का यह पुल विभाग को सुपुर्द करने से पहले ही एक हिस्सा धसक गया है। पहली बारिश में ही पुल के धसकने से स्पष्ट है कि निर्माण में भ्रष्टाचार किया गया है। वहीं सारथी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा टीकमगढ़ में बनाई गई हरपुरा नहर बौरी गांव के पास टूट गई। इससे किसानों की फसल बर्बाद हो गई। टीकमगढ़ जिले में तत्कालीन प्रभारी मंत्री जयंत मलैया ने 41 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली हरपुरा नहर का भूमिपूजन किया था। उधर 25 जुलाई को भोपाल को मंडीदीप से जोड़ने वाला नेशनल हाईवे 46 पर बना पुल का एक हिस्सा भी धंस गया। भोपाल को मंडीदीप से जोडऩे वाले एनएच 46 पर बना पुल पानी का बहाव नहीं झेल सका। इसके अलावा पुल के बड़े हिस्से में क्रेक पड़ गए हैं। मंडीदीप में बना ये पुल अक्टूबर 2020 में बनकर तैयार हुआ था। गौरतलब है कि 2021 में भी कई पुल बह गए थे। रतनगढ़-बसई का पुल 2010 में बना, लागत थी 5.9 करोड़, इंदरगढ़-पिछोर का पुल 2013 में बना, लागत थी 10 करोड़, दतिया सेवढ़ा पर 1982 में पुल बना लेकिन लागत का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। श्योपुर जिले में गिरधरपुर- मानपुर में 1985 में पुल बना इसका रिकॉर्ड नहीं है। श्योपुर बड़ौदा पर 2013 में पुल बना लागत आई 3.94 करोड़, भिंड के गोरई अडोखर में तो 2017 में 13.71 करोड़ से पुल बना था।
जांच में अटकी भ्रष्टाचार की कहानी: प्रदेश में लगभर हर मानसून में सड़क, पुल, पुलियों के निर्माण में किए गए भ्रष्टाचार की कहानी सामने आती है। भ्रष्टाचार की रेत, सीमेन्ट और सरिया से बने ये पुल और बांध एक बारिश भी नहीं झेल पा रहे हैं। दिलचस्प यह है कि कुछ तो विभाग को हैंडओवर होने के पहले ही ढह रहे हैं। सरकार द्वारा निर्माण के लिए जिम्मेदार अधिकारी और निर्माण एजेंसियां पर कार्रवाई के नाम पर जांच समिति बैठा दी जाती है। इन जांच समितियों की जांच भी समय पर पूरी ही नहीं होती है। इससे भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आसानी से बच भी जाते हैं। कार्रवाई भी होती है, तो छोटे अधिकारियों पर बड़े अफसर रसूख के दम पर साफ बच निकलते हैं। इस वजह से भ्रष्टाचार के मामले कम नहीं हो रहे हैं। पिछले साल भी तीन दिन की भारी बारिश में करोड़ों की लागत से बने ग्वालियर- चंबल इलाके के 6 पुल-पुलिया ढह गए थे। इनमें से 4 का निर्माण पिछले 10-11 साल में ही हुआ था। बांधों के गेट खोलने से सिंध और सीप नदी ने भारी तबाही मचाई थी। इस तबाही के बाद सरकार ने मामले की जांच के लिए कमेटी भी बनाई थी। न तो कमेटी की जांच में कुछ हुआ और न ही क्षतिग्रस्त पुल-पुलिया की अब तक मरम्मत हो पाई है। पिछले साल पुल-पुलिया वह जाने और बाढ़ से शिवपुरी, श्योपुर, दतिया, ग्वालियर, गुना, भिंड और मुरैना जिलों के 1225 गांव प्रभावित हुए थे। इसके बाद भी सरकार ने सबक नहीं लिया है।