- कई विधायकों ने भी शुरू की परिक्रमा
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार के अध्यादेश से यह तो तय हो गया है की अब नगर निगमों में महापौर का निर्वाचन सीधे जनता द्वारा किया जाएगा। इसके साथ ही प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों के लिए टिकट के दावदारों की भोपाल से लेकर दिल्ली तक की दौड़ शुरू हो गई है। इस दौड़ में कई विधायकों के अलावा वे नेता भी शामिल हैं जो बीते आम चुनाव में दावेदार होने के बाद भी विधायक का टिकट नहीं पा सके थे। उधर भाजपा की तरफ से अधिकांश महानगरों के विधायकों द्वारा माहापौर पद के प्रत्याशी बनने के लिए दावेदारी शुरू कर दी गई है। इनमें से कई विधायक तो मंत्री पद तक के दावेदार हैं। प्रदेश के चारों महानगरों में शामिल भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में बेहद रस्साकसी दिखनी शुरू हो गई है। दरअसल भाजपा पहले की कह चुकी है की वह विधायकों को भी महापौर के चुनाव में मैदान में उतार सकती है। इसकी वजह से भाजपा में महानगरों के अलावा कई अन्य नगर निगमों में विधायकों की दोवदारी तेजी से बढ़ती दिख रही है।
उधर, कांग्रेस पहले ही इंदौर में अपने विधायक को कई माह पहले ही अघोषित रुप से प्रत्याशी तय कर चुकी है। दावेदार अपने राजनीतिक आकाओं के यहां हाजरी देने पहुंचने लगे हैं। कोई पार्टी कार्यालय की परिक्रमा कर रहा है तो कोई राजनीतिक स्तर पर अपने समीकरण बिठाने में लग गया है। खास बात यह है की इस बार भी भाजपा व कांग्रेस के नेता अपने-अपने प्रदेश अध्यक्षों की परिक्रमा तो कर ही रहे हैं साथ ही कई अन्य प्रभावशाली नेताओं के दर पर भी दस्तक दे रहे हैं। दरअसल दावेदार चुनाव की तारीखों की घोषणा के पहले ही अपनी टिकट के लिए पूरी बिसात बिछा लेना चाहते हैं।
भोपाल-इंदौर में महापौर पड़ते रहे भारी
प्रदेश के इंदौर और भोपाल के महापौर अब तक विधायकों पर भारी पड़ते रहे हैं। इसकी वजह से इन दोनों ही शहरों में सबसे अधिक दावेदारी सामने आ रहे हैं। यही वजह है की इन दोनों शहरों में कई बड़े नेताओं की नजरे ंलगी हुई हैं। इसकी वजह है प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव में महापौर का पद व्यावहारिक रूप से विधायक से अधिक प्रभावशाली हो जाता है। इसी वजह से कांग्रेस ने इंदौर में विधायक संजय शुक्ला को टिकट दिया है। भोपाल में विधायक कृष्णा गौर का सियासी कद भी महापौर बनने के बाद ही बढ़ा था। आरक्षण के समीकरणों में यदि फिट बैठे तो कई बड़े नेता आने वाले दिनों में इस टिकट की जंग में कूदेंगे। बता दें, प्रदेश में 16 नगर निगम हैं।
किस शहर में कौन-कौन हैं दावेदार
ओबीसी महिला सीट है, जिस पर भाजपा की ओर से कृष्णा गौर, राजो मालवीय, मालती राय और सुषमा साहू सहित एक दर्जन की दावेदारी है, जबकि कांग्रेस से विभा पटेल और संतोष कंसाना की दावेदारी है। ग्वालियर महिला सीट है, जिस पर भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री माया सिंह, खुशबू गुप्ता, सुमन शर्मा, नीलिमा शिंद की तो कांग्रेस से रश्मि पंवार, रश्मि परिहार, रीमा शर्मा, कुसुम शर्मा और शोभा सिकरवार की दोवदारी है।
इसी तरह से इंदौर का महापौर पद सामान्य है। यहां पर कांग्रेस संजय शुक्ला को प्रत्याशी बना चुकी है, जबकि भाजपा की ओर से रमेश मेंदोला, सुदर्शन गुप्ता, डॉ. हिमांशु खरे, गोविंद मालू की दावेदारी है। जबलपुर भी सामान्य सीट है, जिस पर भाजपा की ओर से जितेंद्र जामदार, कमलेश अग्रवाल, राम शुक्ला, संदीप जैन और हरेंद्र जीत सिंह बब्बू दोवदारी कर रहे हैं तो कांग्रेस की ओर से जगत बहादुर सिंह अन्नू, गौरव भनोट और दिनेश यादव की दावेदारी है।
पत्नियों को देखना चाहते हैं महापौर
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में कई ऐसे नेता भी है जो खुद की जगह अपने परिजनों खासतौर पर पत्नियोंं को महापौर की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। इसकी वजह से वे अपने समर्थकों को छोड़ खुद भी टिकट के लिए सक्रिय हो गए हैं। अगर भोपाल की बात की जाए तो भाजपा में सुरजीत सिंह चौहान व कृष्ण मोहन सोनी अपनी पत्नियों के टिकट के लिए सक्रिय बने हुए हैं, जबकि कांग्रेस में पीसी शर्मा पत्नी के लिए भी टिकट चाहते हैं। यह बात अलग है की इस पद के दावेदारों में दोनों दलों के कई नेताओं के नाम शामिल हैं। माना जा रहा है की भाजपा इस बार महापौर पद के लिए नए चेहरों पर भी दांव लगा सकती है। दरअसल, महापौर पद के लिए भाजपा में कई दावेदार हैं। ज्यादा नाम होने के कारण पीढ़ी परिवर्तन फॉमूले को अपनाकर नया चेहरा भी लाया जा सकता है। ओबीसी महिला सीट होने के कारण पुराने नामों में चेहरे का संकट भी है। इस कारण नए चेहरे का दांव खेला जा सकता है।
भाजपा का फार्मूला तय
निकाय चुनाव में प्रत्याशी चयन के लिए भाजपा ने प्रारंभिक तौर पर फार्मूला बना लिया है। जिसके मुताबिक इस बार भाजपा अधिकांश नए चेहरों पर दांव लगा सकती है। इसके लिए पार्टी में तीन स्तर की व्यवस्था की गई है। जिले स्तर पर प्रभारी मंत्री के साथ चर्चा के बाद सूची बनायी जाएगी , जिसे संभाग स्तरीय चुनाव समिति को भेजा जाएगा, जिसके बाद उसे प्रदेश स्तर पर भेजा जाएगा, जहां से संगठन द्वारा स्वीकृति प्रदान कर नामों की घोषणा की जाएगी। पार्षदों के टिकट में डॉक्टर, प्रोफेसर, सीए, एडवोकेट, सामाजिक और सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वालों को प्राथमिकता देने के साथ ही आधे टिकट महिलाओं को देना भी तय कर लिया गया है। इसके साथ ही संगठन स्तर पर सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाले चेहरों की तलाश शुरू की जा रही है, जिससे उन्हें कुछ वार्डों से उतारा जा सके। यह पूरी कवायद विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर की जा रही है। इस बात पर भी जोर दिया जा रहा है कि जिस वार्ड में लगतार एक ही व्यक्ति कई बार से पार्षद है उसकी जगह अब नया चेहरा दिया जाए।