
- पीएचक्यू में हर माह आ रहे ऐसे 25 आवेदन…
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। ये दोनों केस महज उदाहरण हैं। पिछले 9 माह के दौरान पीएचक्यू में इस तरह के लगभग 250 से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। अधिकांश आवेदनों में कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश की सत्य प्रमाणित प्रतिलिपियां भी संलग्न हैं, लेकिन ऐसे मामलों में अब तक एक-दो आवेदकों को छोडक़र अन्य को नौकरी नहीं मिली है। इसकी सबसे बड़ी वजह है छानबीन समिति में आवेदनों पर विचार के दौरान हर पहलू की बारीकी से जांच। यही कारण है कि इनमें से अधिकांश केस में पुलिस ही आवेदक के खिलाफ ऊंची अदालत में अपील कर देती है।
बेदाग छवि के लिए की जाती है सख्ती
आरक्षकों की भर्ती से जुड़े आवेदनों में पीएचक्यू में भर्ती शाखा के डीआईजी की अध्यक्षता में एक स्क्रीनिंग कमेटी बनाई गई है। यह कमेटी ही नियुक्ति के संबंध में आने वाले कोर्ट के आदेशों के तहत आने वाले आवेदनों पर विचार करती है।
पिछले नौ माह के दौरान आए ऐसे अधिकांश मामलों में विधिक अधिकारियों सलाहकारों की मदद से कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों के खिलाफ ऊंची अदालतों में अपील की गई है। उदाहरण के लिए जिला अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट, और हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि पुलिस किसी भी दागदार युवा को फोर्स का हिस्सा नहीं बनाना चाहती। यही कारण है कि जिन इक्का-दुक्का लोगों को कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस की नौकरी मिली है, उनके पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था।
केस नंबर 1
कुलदीप बैश ग्राम सोन्हर तहसील नरवर जिला शिवपुरी ने पीएचक्यू में आवेदन देकर बताया कि उसका सिलेक्शन 2020 मे आरक्षक भर्ती परीक्षा में हुआ था। 2018 में लंबित आपराधिक मामले के कारण चरित्र सत्यापन नहीं होने के कारण उसे बाहर कर दिया गया। हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच के जस्टिस आशीष श्रोती ने आदेश में लिखा कि शासन 90 दिन के भीतर इस पर एक्शन ले।
केस नंबर 2
सीताराम रघुवंशी का नाम भी 2020 की आरक्षक भर्ती परीक्षा के सफल आवेदकों में था। उसे इंदौर जिला आवंटित किया गया, लेकिन एक प्रकरण में आरोपी होने के कारण बाहर कर दिया गया। हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने दोषमुक्त होने के बाद कुलदीप की अपील पर सुनवाई के बाद आदेश में लिखा कि आवेदक अपनी नियुक्ति के लिए पीएचक्यू में आवेदन दे। सीताराम के आवेदन पर एक्शन नहीं लिया।