भोपाल में छात्र कर सकेंगे औषधीय पौधों पर अनुसंधान

औषधीय पौधों

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। वनस्पति शास्त्र में अध्ययनरत छात्रों को अब औषधीय पौधों पर अनुसंधान के लिए भटकना नहीं पड़ेगा , बल्कि उन्हें अब शहर में ही अनुसंधान की सुविधा मिल जाएगी। इसके लिए भेल स्थित बाबूलाल गौर स्नातकोत्तर महाविद्यालय में एक बॉटनिकल गार्डन तैयार करने का काम जोर शोर से जारी है। अहम बात यह है कि इस गार्डन में दालचीनी, चित्रक, वजवंती, तेजपत्र, स्पाइडर प्लांट, तुलसी, कालमेघ सहित अन्य औषधीय पौधों के पेड़ लगाए गए हैं।
इन पर ही छात्र रिसर्च कर सकेंगे। बॉटनिकल गार्डन बनाने के पीछे कॉलेज प्रबंधन का उद्देश्य यह है कि यहां पौधों की प्रजातियों की विशाल रेंज तैयार की जाए, जिससे कैंपस हरा भरा लगे और बॉटनी के विद्यार्थियों को जड़ी बूटियों पर शोध करने की सुविधा भी मिल सके। अनुसंधान के माध्यम से छात्र जान सकेंगे कि कैंसर, चमड़ी रोग और अन्य बीमारियों को दूर करने वाली जड़ी बूटियों से कैसे दवा तैयार होती है, इन पौधों में कौन-कौन से गुण पाए जाते हैंं और किन पौधों का उपयोग किस तरह के रोग में किया जाता है।
परिवार के पौधों के लिए अलग -अलग जोन
कॉलेज प्रबंधन ने बगीचे में एक ही परिवार के तहत आने वाले पौधों को एक साथ लगाने के लिए बगीचे में अलग-अलग जोन बनाए हैं। एक जोन में एक ही तरह की फैमली के पौधे लगाए जा रहे हैं। इसके अलावा बीच में औषधीय पौधों का एक चक्र बनाया गया है। जैसे चिन्त्रक जिसका बॉटनिकल नाम प्लंबैगो जेलेनिका यह प्लंबैगिनेसी फैमली से संबंधित एक औषधीय जड़ी बूटी है। वहीं दालचीनी (सिनामोमम वेरम) लॉरेल फैमिली का जोड़ीदार सदाबहार पेड़ (लॉरेसी) और इसकी छाल से  मसाला प्राप्त होता है। इसी तरह कुछ फूल वाले पौधे भी लगाए हैं। औषधीय पौधों से संबंधित बीएससी थर्ड ईयर में माइनर का एक पेपर भी भी छात्र गार्डन की मदद से आसानी से समझ सकेंगे।
शोध में भी काम आएगा
कॉलेज प्राचार्य का कहना है कि छात्रों को बीज से लेकर पौधा बनने तक की प्रक्रिया को पढ़ने के साथ ही व्यावहारिक रूप से सिखाया जा रहा है। यह सभी चीजें उन्हें आगे चलकर शोध करने में काम आएंगी। एमएससी में प्रवेश लेने के बाद छात्र दो साल तक गार्डन के माध्यम से जानकारियों मिलेंगी। दरअसल  आज के समय में बच्चे को पेड़-पौधों के बारे में जानकारी नहीं होती है। उनके आसपास पाए जाने वाले सामान्य पौधों का नाम एवं उनके उपयोग के बारे में छात्रों को नहीं होती। इसलिए बॉटनी के छात्रों को प्रयोगात्मक रूप से सिखाने के लिए इस तरह की शुरुआत की गई है।

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