मप्र में अगले माह शुरू होगी भगवा शल्यक्रिया!

गुजरात व कर्नाटक के बाद मप्र पार्टी हाईकमान के निशाने पर

लोकसभा

हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले होने वाले देश के तीन राज्यों मप्र, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भाजपा हाईकमान हर हाल में जीत चाहती है। इनमें मप्र बेहद अहम राज्य है। इसकी वजह है तीन राज्यों में से सिर्फ मप्र में ही भाजपा की सरकार है।  इसकी वजह से गुजरात व कर्नाटक के बाद अब ऑपरेशन भगवा के लिए मप्र का नंबर है। इस ऑपरेशन की शुरुआत अगले माह यानी की मई के दूसरे पखवाड़े में शुरु करने की पूरी तैयारी की जा रही है। इसके तहत सत्ता व संगठन में अमूलचूल परिवर्तन दिख सकता है। यही वजह है कि अभी से प्रदेश की राजनीति में कयासों का दौर शुरु हो चुका है। इसकी वजह है वे तमाम सर्वे जिनमें पार्टी की सरकार बनना मुश्किल बताई जा रही है।
गुजरात के बाद अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए दिए गए टिकटों में बड़े नेताओं के काटकर एक बड़ा संकेत दे दिया है। गुजरात के बाद कर्नाटक में अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए जिस तरह से पार्टी हाईकमान द्वारा निर्णय लिए गए हैं, उसे भी मप्र के लिए साफ एवं बड़ा संदेश माना जा रहा है। इसकी  वजह है जिन तीन राज्यों में अब चुनाव होना हैं, उनमें एकमात्र मप्र राज्य ही ऐसा है जहां पर गुजरात और कर्नाटक जैसी स्थितियां बनी हुई हैं। इनमें भी बहुत कुछ हालात कर्नाटक जैसे ही है। कर्नाटक के साथ सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट भाजपा के साथ यह है कि वहां की सरकार को हिंदुवादी सरकार माना जाता है , जबकि मप्र में ऐसा नहीं  है।
तमाम आकंलन व सर्वे के बाद कर्नाटक में भाजपा हाईकमान ने पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार के साथ 18 मौजूदा विधायकों, दो एमएलसी और दर्जनभर से अधिक पूर्व विधायकों को घर बैठा दिया है। ऐसा कर भाजपा हाईकमान ने संकेत दे दिया है कि 2023 में पार्टी का एकमात्र लक्ष्य सत्ता को हासिल करना है। दरअसल नेताओं को साधने के चक्कर में बीते आम चुनाव में भाजपा को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकारें गंवानी पड़ी थीं। इसमें भी भाजपा को सबसे बड़ा झटका मध्यप्रदेश में लगा था, जहां बहुत ही कम अंतर से उसे सरकार से बाहर बैठना पड़ गया था। कर्नाटक में माना जा रहा था कि भाजपा नेतृत्व ऐसा कोई फैसला नहीं करेगा जिससे की स्थानीय नेताओं में नाराजगी पैदा हो , लेकिन पार्टी हाईकमान ने इसकी परवाह नही की है। इस तरह के कड़े फैसले तब लिए गए हैं जबकि , दक्षिण के राज्यों में कर्नाटक ही वह राज्य है जिसमें भाजपा की सरकार बनती है। कर्नाटक विधानसभा के लिए घोषित प्रत्याशियों की सूची यह बता रही है कि अब भाजपा का लक्ष्य सत्ता हासिल करना है, नेताओं को साधे रखना नहीं। यही वो बात है, जिसे मध्यप्रदेश के लिए खास संदेश माना जा रहा है । दरअसल, मप्र में 2019 में भाजपा कांग्रेस के एक धड़े को साथ लेकर सरकार बनाते समय अपने कई बड़े नेताओं को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था । ऐसा करना उसकी संवैधानिक मजबूरी भी थी और सरकार में रहने का लालच भी। क्योंकि जिनकी मदद से उसने सत्ता हासिल की थी, उन्हें सत्ता में हिस्सा देना पहली शर्त थी। अब मप्र में इन नेताओं की वजह से भी संगठन व सरकार को मुश्किलें आ रही हैं।
देखना यह है कि श्रीमंत के साथ दलबदल कर आने वाले नेताओं में से किसके टिकट कटते हैं और किसे टिकट मिलता है। फिलहाल पार्टी के युवा और अब तक उपेक्षित रहे नेताओं को पार्टी आलाकमान के ऑपरेशन भगवा से बड़ी उम्मीदें बताई जा रही हैं। इसकी वजह से न केवल पार्टी में भाई -भतीजावाद  वाद , बल्कि परिवारवाद भी समाप्त हो जाएगा, जिससे पार्टी को इस तरह के आरोपों का सामना नहीं करना पड़ेगा और इस मामले में उसे विपक्ष पर हमला बोलने का भी मौका मिल जाएगा। इसकी वजह से युवाओं और पार्टी के नए कार्यकर्ताओं को भी मौका मिल सकेगा। फिलहाल दो दर्जन  नाम तो ऐसे हैं, जो उम्र के क्राइटएरिया की वजह से अभी से टिकट की दौड़ से बाहर बताए जा रहे हैं।
कर्नाटक की तरह संभावित है ऑपरेशन
ऐसे में कर्नाटक में जो फैसले भाजपा ने लिए हैं वे मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ा संकेत हैं। मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 126 उसके पास हैं। इनमें वे विधायक भी शामिल हैं जो मूल रूप से कांग्रेसी हैं। उन्होंने भगवा पट्टा भले ही डाल लिया है ,लेकिन तीन साल बाद भी खुद को बीजेपी के अनुरूप ढाल नहीं पाए हैं। यह बात नेतृत्व अच्छी तरह जानता है। ऐसे में चुनाव के लिए प्रत्याशियों की सूची बनाते समय उसके सामने कई चुनौतियां होंगी। यह भी तय है कि अपनी नर्सरी कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में सत्ता में बने रहने के लिए वह कुछ भी करेगी ।
तीन साल में हो चुके हैं बड़े बदलाव
राजनीतिक विज्ञानियों का का कहना है कि पिछले तीन साल में मध्यप्रदेश में भाजपा के भीतर बहुत कुछ बदला है। पुरानी पीढ़ी के कई नेताओं को घर बैठा दिया गया है। जो विधानसभा के सदस्य हैं, उन्हें मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया। वहीं, जो मंत्री हैं, उनके लिए आगे का रास्ता बंद करने की तैयारी सार्वजनिक हो चुकी है। वरिष्ठ नेताओं की अगली पीढ़ी को परिवारवाद के नाम पर आगे आने से रोकने की व्यवस्था की जा चुकी है ।
आधे चेहरे लाए जाएंगे सामने
कर्नाटक में जिस तरह से टिकट दिए गए हैं, उससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि मप्र में विधानसभा चुनाव में आधे से अधिक चेहरे नए होंगे। ऐसे में भाजपा के मौजूदा 126 विधायकों में से करीब आधों को इस बार टिकट नहीं मिलेगा। कहा जा रहा है कि इनमें से भी कई बड़े चेहरों को बदला जा सकता है। साथ ही उन नेताओं को भी विश्राम दिया जा सकता है जो अभी तक अपरिहार्य माने जाते रहे हैं। हालांकि यह आसान काम नहीं होगा। यह बात सब जानते है लेकिन, कर्नाटक को उदाहरण माना जाए तो यहां बहुत कुछ बदल जाएगा। राजनीतिक जानकारों के अनुसार एक संभावना यह भी है कि गुजरात फॉर्मूला अपनाकर मप्र में पांचवीं बार सत्ता काबिज होने की कोशिश की जाए। लेकिन ऐसा करने से पार्टी को नुकसान नहीं होगा, इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता है। क्योंकि जब पार्टी सत्ता में रहने के लिए कुछ भी कर सकती है तो उसके नेता खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए कुछ नहीं करेंगे, इसकी गारंटी देना भी मुश्किल है।

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