श्रीमंत आकांक्षी सीटों पर… भाजपा में घमासान

  • खांटी भाजपाई टिकट के लिए लगा रहे पूरा दम
  • गौरव चौहान

भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनाव में 200 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य तो तय कर दिया है, लेकिन राह में उसके अपने ही बाधा बन रहे हैं। इसी कड़ी में वे 28 सीटें पार्टी के लिए परेशानी का सबब बनती नजर आ रही हैं जहां, के पूर्व कांग्रेसी भाजपा में शामिल हो चुके हैं और उन पर उपचुनाव हो चुका है। अब इन सीटों पर खांटी भाजपाई चुनाव लडऩे के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं। इससे इन सीटों पर नए भाजपाई बनाम खांटी भाजपाई का द्वंद होने की संभावना बन रही है। गौरतलब है कि 2018 में हार के बाद 2020 में भाजपा इन्हीं 28 सीटों के बागी कांग्रेसियों के कारण सत्ता में लौटी थी। इसलिए सत्ता और संगठन की इनके प्रति सहानुभूति है। लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में उप चुनाव वाली 28 सीटों पर इस बार भाजपा के पुराने नेता भी जोर आजमाइश की मुद्रा में हैं। मार्च 2020 में हुए सियासी फेरबदल के बाद प्रदेश में कई सीटें ऐसी हैं , जहां पार्टी के पुराने वरिष्ठ नेताओं सियासी भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं। इनके अलावा पिछले चुनाव में जिन वरिष्ठ नेताओं को पराजय का सामना करना पड़ा था, वे भी मिशन 2023 के लिए अपनी जमीन तैयार करने में लगे हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस के 22 विधायकों ने पार्टी छोड़कर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इनमें सिंधिया समर्थक जिन नेताओं को हार का सामना करना पड़ा था ,उन्हें निगम-मंडलों में सरकार ने एडजस्ट कर दिया गया, लेकिन इन क्षेत्रों के पुराने भाजपाई अपने पुनर्वास के इंतजार में बने हुए हैं।
कई सीटों पर दिग्गज हैं आमने-सामने
प्रदेश में उपचुनाव वाली कई सीटें ऐसी हैं , जहां दिग्गज नेता आमने-सामने हैं। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कैलाश जोशी के पुत्र एवं पूर्व मंत्री दीपक जोशी को पिछले चुनाव में हाट पिपल्या सीट पर कांग्रेस के मनोज चौधरी से हार का सामना करना पड़ा था। बाद में चौधरी भाजपा के टिकट पर उपचुनाव में जीतकर आ गए। अब जोशी के सामने संकट है लेकिन, क्षेत्र में उनकी सक्रियता बता रही है कि इस बार वह चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं और दावेदारी जताएंगे। ग्वालियर में कांग्रेस से भाजपा में आए मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने उपचुनाव में भी अपनी जीत बरकरार रखी। यहां अब पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के सामने धर्मसंकट की स्थिति रहेगी। उन्हें पार्टी ने अभी महाराष्ट्र में सह प्रभारी का दायित्व दिया है। मुरैना में पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के सामने भी यही धर्मसंकट बना हुआ है हालांकि वहां सिंधिया समर्थक रघुराज कंसाना को हार का सामना करना पड़ा था। अब इस बार वहां भाजपा के टिकट को लेकर नए-पुराने भाजपाइयों के बीच जोर-आजमाइश रहेगी। यही स्थिति सुमावली में भी बन गई है यहां भी भाजपा के टिकट पर लड़े ऐदल सिंह कंसाना को कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाहा से हार का सामना करना पड़ा था। इनके अलावा कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां दूसरा कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा। इनमें सांची से मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी, बदनावर में राजवर्धन सिंह दत्तीगांव और बमोरी में मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया शामिल हैं। बमोरी में पुराने भाजपाई पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल चुनाव के पहले कांग्रेस में चले गए थे, चुनाव भी हार गए। इसी तरह सुरखी सीट पर गोविंद सिंह राजपूत के सामने भी फिलहाल पुराने भाजपाइयों में कोई वजनदार नेता नहीं रहा क्योंकि उपचुनाव के दौरान पूर्व विधायक पारुल साहू ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली थी। लेकिन अनूपपुर में उम्रदराज मंत्री बिसाहूलाल सिंह के सामने अगले चुनाव में उम्र के अलावा भी कई चुनौतियां हैं। गोहद, मुरैना, बड़ा मलहरा, आगर, सुवासरा, मांधाता, ग्वालियर पूर्व, डबरा, मेहगांव व दिमनी जैसी सीटों पर भाजपा के सामने प्रत्याशी चुनने के दौरान नए-पुराने भाजपाइयों की तगड़ी चुनौती बन रही है। सांवेर में राजेश सोनकर भी टिकट के लिए प्रयास कर सकते हैं। इनके अलावा दमोह में पार्टी के सामने पूर्व मंत्री जयंत मलैया, ग्वालियर में अनूप मिश्रा, बदनावर में भैरवसिंह शेखावत, सुवासरा में पाटीदार बंधु एवं सांवेर में सोनकर परिवार को साधने की चुनौतियां भी हैं। डबरा में उपचुनाव के दौरान हार का सामना करने वाली इमरती देवी इस बार फिर टिकट की दौड़ में हैं। यहां भाजपा के पुराने नेता भी सक्रियता दिखा रहे हैं।
उपचुनाव वाली सीटों पर घमासान की स्थिति
पार्टी सूत्रों का कहना है कि आंतरिक सर्वे और पंचायत चुनाव के दौरान जो फीडबैक मिला है उसमें पार्टी के आधा सैकड़ा से अधिक विधायकों की स्थिति चिंताजनक है। इनमें उपचुनाव में जीतने वाले विधायक भी हैं। ऐसे में उपचुनाव वाली 32 में से ज्यादातर सीटों पर टिकट को लेकर सबसे ज्यादा जद्दोजहद की स्थिति बनेगी। क्योंकि कई सीटों पर पुराने नेता संकेत दे चुके हैं, निकाय चुनाव में खुलेआम बगावत के दृश्य सामने आ चुके हैं इसलिए पार्टी भी यह बात जानती है कि कार्यकर्ताओं पर ज्यादा दबाव नहीं डाल सकते। यही वजह है कि राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल ने सभी 65 हजार बूथों को मजबूत और 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने की मुहिम शुरू की है। उपचुनाव वाली ग्यारह सीटों में कांग्रेस को जीत मिली थी, इनमें ग्वालियर, डबरा, बमोरी, सुरखी, सांची, सांवेर, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर पूर्व, भांडेर, करैरा, पोहरी, अशोकनगर, मुंगावली, अनूपपुर, हाटपिपल्या, बदनावर, सुवासरा, नेपानगर, मांधाता एवं दमोह शामिल है। इनमें से 22 सीटें सिंधिया के समर्थन में खाली हुई 3 अन्य बाद में रिक्त जौरा, आगर, ब्यावरा, जोबट, रैगांव और पृथ्वीपुर सीटों पर विधायकों के निधन होने से उपचुनाव की नौबत आई। यही नहीं अब तो आम आदमी पार्टी ने दोनों दलों के असंतुष्ट नेताओं पर डोरे डालना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने भी कुछ सीटों पर पार्टी छोडऩे वालों को सबक सिखाने के लिए पुराने भाजपाईयों से अपने तार जोड़ लिए हैं। ऐन मौके पर ये दोनों ही दल अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतार कर चौंकाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
भाजपा के पुराने नेता दिखा रहे दम
भाजपा का पूरा फोकस 2023 में अधिक से अधिक सीटें जीतकर सत्ता हासिल करने पर है। निकाय पंचायत चुनाव के दौरान भाजपा को कई जिलों से मैदानी स्थिति की रिपोर्ट मिल चुकी है। कांग्रेस की विधायक छोड़कर भाजपा में जो लोग आए उनमें से 3 मंत्री सहित 11 तो उपचुनाव में ही हार गए थे। लेकिन जो भाजपा के टिकट पर चुन लिए गए हैं अगले चुनाव में उनको टिकट मिलना तय है। उधर उन सभी सीटों के पुराने नेता भी अब पूरी ताकत से अपनी दावेदारी जताएंगे। भाजपा को ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस से आए नेताओं के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के पुराने नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं। दूसरी तरफ सिंधिया समर्थक भाजपा नेताओं और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच अब तक समन्वय नहीं बन पा रहा है। यही वजह है कि पार्टी ग्वालियर में 57 साल बाद पहली बार महापौर का चुनाव हार गई।

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