सेडमैप के कार्यकारी निदेशक की लालफीताशाही

 कार्यकारी निदेशक
  • जहां ऑफिस नहीं वहां कर दी कर्मचारियों की पदस्थापना

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    शुरू से विवादों का गढ़ रहे सेडमैप एक बार फिर से विवाद में है। इस बार तो यहां के कुछ कर्मचारियों का दिल्ली, मुंबई व बैंगलुरु ट्रांसफर कर दिया गया है। जबकि न तो वह मप्र के कार्यक्षेत्र में आता है और न ही वहां उनका कोई आफिस है। इसको लेकर कर्मचारियों ने कार्यकारी निदेशक अनुराधा सिंघई के आदेश का कर्मचारियों ने विरोध शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि सेडमैप सूक्ष्म एवं लघु उद्योग के अंतर्गत आता है। इसके कर्मचारियों का कार्यक्षेत्र मप्र है। लेकिन सेडमैप के तीन प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर एसएल कोरी, एसके आचार्य व दिनेश खरे का तबादला मुंबई, दिल्ली व बेंगलुरु में किया गया है। कर्मचारियों का कहना है कि तीनों जगहों पर सेडमैप का कोई ऑफिस नहीं है। वहां नौकरी कैसे कर पाएंगे। सेमी गवर्नमेंट एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष अनिल बाजपेई एवं अर्द्ध शासकीय अधिकारी कर्मचारी सार्वजनिक उपक्रम संघ के अध्यक्ष अरुण वर्मा का कहना है कि स्थानांतरण तानाशाही रवैये को दर्शाता है। सेडमैप की कार्यकारी निदेशक को प्रदेश के बाहर स्थानांतरण का कोई अधिकार ही नहीं है। यह कर्मचारी वहां कैसे काम कर पाएंगे। बाजपेयी ने कहा कि स्थानांतरण निरस्त नहीं किए गए, तो जल्द ही हड़ताल शुरू की जाएगी।
    आदेश के सोलह साल बाद भी नियमित नहीं हुए स्थायीकर्मी
    नियमितिकरण के आदेश के सोलह साल बाद भी दैवेभो को नियमित नहीं किया गया है। मप्र कर्मचारी मंच के अध्यक्ष अशोक पांडेय ने आंदोलन की चेतावनी दी है। पांडेय का कहना है कि प्रदेश के शासकीय, अर्ध शासकीय 62 विभागों में एक लाख से अधिक पद रिक्त है। लेकिन नौकरशाही स्थाई कर्मियों व दैनिक वेतन भोगियों को नियमित नहीं कर रही है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने/10 अप्रैल 2006 को उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार के केस में सभी प्रदेशों की याचिकाओं को एक करके फैसला सुनाया था कि विभागों में 10 साल की सेवा पूरी कर चुके दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को विभाग के रिक्त पदों पर नियमित करा जाए। सरकार ने 16 मई 2007 को आदेश जारी करके 10 साल वाले दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को रिक्त पदों पर नियमित करने के आदेश सामान्य प्रशासन विभाग ने जारी किए थे। लेकिन नौकरशाही ने फिर भी दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित नहीं किया। सरकार ने 7 अगस्त 2016 में एक कैबिनेट फैसला लेकर दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को स्थाई कर्मियों के रूप में विनियमित कर दिया और इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार उन्हें नियमित नहीं किया गया। जिस कारण स्थाई कर्मियों को किसी भी प्रकार की सुविधा सरकारी कर्मचारी के समान नहीं मिल रही है। सिर्फ पांचवे वेतनमान का लाभ ही मिला है। स्थाई कर्मी एवं दैनिक वेतन भोगी अभी भी नियमित करण के लिए संघर्ष कर रहा है।

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