अभिभावकों के साथ निजी स्कूल कर रहे लूट, मनमानी वसूली जा रही फीस

सरकार व प्रशासन नहीं दे रहा  है ध्यान…

भोपाल<बिच्छू डॉट कॉम। नए वित्त वर्ष का पहला माह उन अभिभावकों को बेहद भारी पड़ रहा है, जिनके बच्चे निजी स्कूलों में पड़ रहे हैं। प्रदेश में निजी स्कूलों का सत्र शुरू हुए एक पखवाड़े से अधिक का समय हो चुका है। ऐसे में अभिभावक किताबों की दुकानों व स्कूल संचालकों के गठजोड़ का तो पहले ही शिकार होकर अपनी जेब कटवा चुके हैं, ऐसे में अब उनके समाने स्कूल प्रबंधन द्वारा नई परेशानी फीस जमा कराने के रूप में खड़ी कर दी गई है। कई निजी स्कूलों द्वारा तीन माह की बतौर अग्रिम फीस जमा कराने के लिए दबाव बनाना शुरु कर दिया गया है।
अहम बता यह है कि इस दौरान भारी भरकम फीस वसूली के लिए नई-नई मदों को तलाश लिया गया है। इस तरह से कई स्कूलों ने 15 प्रतिशत तक फीस में वृद्धि कर दी है। इसके अलावा अभिभावकों से अधिक से अधिक राशि वसूली करने के लिए दो दर्जन से अधिक मदें भी बना रखी हैं। जिससे अभिभावकों को करीब 30 से 40 हजार रुपये अतिरिक्त देना पड़ते हैं। इनमें कई मदें तो ऐसी हैं जिनका छात्रों से कोई लेना देना तक नहीं होता है। अहम बात यह है कि निजी स्कूलों पर फीस पर लगाम लगाने के लिए प्रदेश में फीस अधिनियम कानून-2020 बना हुआ है, लेकिन संबंधित अफसर इस मामले में कोई कदम नहीं उठाते हैं, जिसका नुकसान अभिभावकों को उठाना पड़ता है। अहम बात यह है कि अधिकांश निजी स्कूलों की मनमानी का आलम तो यह है कि वे अपनी फीस की जानकारी तक विभाग को नहीं देते हैं। हाल यह हैं कि अब तक 323 निजी स्कूलों में से 54 ने ही फीस सहित अन्य जानकारी दी है ।
यह है नियम
फीस अधिनियम कानून-2020 के तहत निजी स्कूलों को फीस वृद्धि करने से पहले कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित जिला स्तरीय समिति को फीस, कापी-किताब व पाठ्यक्रम से संबंधित पूरी जानकारी देनी होती है,लेकिन भोपाल जिले में यह समिति सक्रिय ही नहीं दिखती है। इस पर रोक लगाने के लिए मप्र पालक महासंघ ने बीते दिन निजी स्कूलों द्वारा विभिन्न मद में लिए जा रहे 25 प्रकार के शुल्क का उल्लेख करते हुए कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर इस सत्र में रोक लगाने की मांग भी की है।
बस्ते के बोझ पर भी लगाम नहीं
बच्चों पर बस्ते का बोझ व किताबों की कमीशनखोरी पर स्कूल शिक्षा विभाग लगाम लगाने में पूरी तरह से नकारा साबित हो रहा है। भोपाल जिले में स्थिति तो बेहद खराब है। नन्हें बच्चों पर बस्ते के बोझ को लेकर अब मप्र मानवाधिकार आयोग ने जिला शिक्षा अधिकारी व लोक शिक्षण आयुक्त से प्रतिवेदन मांगा है। आयोग ने कहा है कि लोक शिक्षण द्वारा सभी डीईओ, सभी विकासखंड शिक्षा अधिकारी, सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग, सभी शासकीय व अशासकीय स्कूलों के प्राचार्य को दिशा-निर्देश जारी कर कक्षावार बस्ते के बोझ का निर्धारण किया जाए। डीईओ अपने जिले में रैंडमली स्कूलों का चयन कर प्रत्येक तीन माह में स्कूल बैग के वजन की जांच करने के निर्देश जारी करें। स्कूल शिक्षा विभाग स्कूल बैग पालिसी- 2020 का पालन नहीं करा पा रहे हैं। हर साल बस आदेश जारी कर अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। जिससे बच्चे भारी बस्ते का वजन ढोने के लिए मजबूर हैं। इतना ही नहीं प्रत्येक स्कूल को नोटिस बोर्ड एवं कक्षा कक्ष में बस्ते के वजन का चार्ट लगाना अनिवार्य है, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं किया जा रहा है।
इस तरह से की जा रही वसूली
निजी स्कूलों द्वारा हर साल प्रवेश के नाम पर अलग से प्रवेश शुल्क लिया जा रहा है । इसके साथ ही ही मेंटेंनेंस, वोकेशनल ट्रेनिंग, प्रोसेसिंग फीस, आप्शनल फीस, एडमिशन प्रोसेसिंग फीस, स्कूल मैग्जीन फीस,फिल्ड ट्रिप, मेडिकल फीस, पिकनिक फीस, डेवलपमेंट चार्ज,वार्षिक शुल्क,स्टाफ वेलफेयर फीस, काशन मनी, प्रास्पैक्टस शुल्क, डायरी, आइकार्ड, कंप्यूटर लैब, खेल शुल्क सहित कई प्रकार के शुल्क लिए जा रहे हैं। इससे अभिभावकों पर हर साल करीब 30 से 40 हजार अधिक शुल्क देना पड़ रहा है।
यह है तय वजन
बस्ते का वजन जो तय किया गया है उसके मुताबिक पहली कक्षा में 1.6 से 2.2 किलोग्राम, दूसरी में 1.6 से 2.2 किग्रा., तीसरी में 1.7 से 2.5 किग्रा., चौथी में 1.7 से 2.5 किग्रा., पांचवी में 1.7 से 2.5 किग्रा., छठवी में 2 से 3 किग्रा., सातवीं में 2 से 3 किग्रा., आठवीं में 2.5 से 4 किग्रा., नवमी में 2.5 से 4.5 किग्रा., 10वीं में 2.5 से 4.5 किग्रा. होना चाहिए। 11वीं व 12वीं में बस्ते का वजन शाला प्रबंधन समिति द्वारा विभिन्न विषय स्ट्रीम के आधार पर तय किया जाएगा।

Related Articles