
1 युवक की नौकरी पड़ी 9,433 रूपए की
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम । देश-प्रदेश में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बन गई है। इस समस्या से युवाओं को निकालने के लिए प्रदेश सरकार कई तरह के नवाचार कर रही है। इसी तरह का एक नवाचार 2018 में किया गया था। इसके तहत युवाओं को नौकरी दिलाने के लिए एक निजी एजेंसी को काम दिया गया था। लेकिन एजेंसी भी नौकरी दिलाने में फेल हो गई। पिछले पांच साल में सरकार ने एजेंसी को 4 करोड़ 17 लाख रूपए दिए और एजेंसी केवल 4421 युवाओं को ही नौकरी दिला पाई। यानी 1 युवक की नौकरी 9,433 रूपए की पड़ी। एजेंसी की असफलता को देखते हुए उसे हटा दिया गया है।
गौरतलब है कि प्रदेश में बेरोजगारों की तादाद हर साल बढ़ती जा रही है। स्थिति यह है कि प्रदेश में बेरोजगारी बरकरार है। सरकारी विभागों में नियुक्ति और भर्ती को लेकर खींचतान की स्थिति बनी हुई है। प्रदेश के विभिन्न विभागों में 1 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। बावजूद इसके बेरोजगार युवाओं को नई नौकरियां कब मिलेंगी? इसका जवाब न तो सरकार के पास है और न ही रोजगार विभाग के अफसरों के पास।
एजेंसी ने अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं किया
जानकारी के अनुसार पांच साल पहले यानी 2018 में प्रदेश सरकार ने युवाओं को नौकरी दिलाने के लिए जिस कंपनी यशस्वी एकेडमी फॉर टैलेंट मैनेजमेंट को जिम्मेदारी सौंपी थी, उसने सरकार की अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं किया। इसलिए रोजगार आयुक्त ने कंपनी से करार समाप्त कर दिया। अब ऐसा माना जा रहा है कि पांच साल बाद दोबारा सरकार इन 15 जिलों के रोजगार दफ्तरों का संचालन खुद करेगी। कंपनी से दफ्तर हैंडओवर लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकार ने पुणे की यशस्वी एकेडमी फॉर टैलेंट मैनेजमेंट कंपनी के साथ जो करार किया था उसमें तय हुआ था , कि कंपनी 10 साल में मप्र के 11.80 लाख (5 साल में 2.70 लाख) युवाओं को नौकरी दिलाएगी। इसके लिए कंपनी को 19.50 करोड़ रु. पेमेंट होगा। लेकिन कंपनी पांच साल में सिर्फ 4421 को ही नौकरी दिला पाई।
सरकार और कंपनी आमने-सामने
प्रदेश में युवाओं को नौकरी दिलाने 15 जिलों के रोजगार कार्यालय निजी एजेंसी को सौंपे थे। इनमें भोपाल , ग्वालियर, होशंगाबाद, इंदौर, धार, खरगोन, उज्जैन, देवास, जबलपुर, कटनी, रीवा, सतना, शहडोल, सिंगरौली और सागर में रोजगार दफ्तर को प्लेसमेंट सेंटर के रूप में संचालित करने की बात कही गई थी। आयुक्त रोजगार षण्मुख प्रिया मिश्रा का कहना है कि कंपनी ने अनुबंध की शर्तों को पूरा नहीं किया। उसने 11680 को नौकरी दिलाने का रिकॉर्ड पेश किया है। थर्ड पार्टी आॅडिट में यह आंकड़ा 4 हजार ही निकला। इसलिए दूसरे साल 75 हजार युवाओं को नौकरी दिलाने की बात हम नहीं मान सकते। अब नए सिरे से युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए प्लानिंग करेंगे। कंपनी से 15 जिलों के दफ्तर वापस ले लिए गए हैं। वहीं एमपी यशस्वी एकेडमी के प्रोजेक्ट हेड सिद्धार्थ श्रीवास्तव का कहना है कि अफसरों ने रिकॉर्ड देखे बगैर बोल दिया कि जब पहले साल में रिकॉर्ड सही नहीं है तो दूसरे साल का रिकॉर्ड क्यों देखें। दफ्तर खराब थे और हैंडओवर होने में भी देर हो गई। 1 दिसंबर 2019 से प्रोजेक्ट शुरू हुआ। लॉकडाउन में नौकरी पाने वालों से न तो सैलरी स्लिप ले पाए और न उन्होंने आॅफर लेटर की कॉपी जमा की। सरकार के आदेश को कोर्ट में चुनौती देंगे।
तीन साल दफ्तर संवारने में लग गए
सरकार ने बड़ी उम्मीद और दावों के साथ यशस्वी एकेडमी फॉर टैलेंट मैनेजमेंट कंपनी को काम दिया था। खुद कंपनी अब यह मान रही है कि उसने अक्टूबर 2020 से मार्च 2021 तक सिर्फ 11680 लोगों और दूसरे साल में 75 हजार युवाओं को नौकरी दिलाई। इसमें से 55 हजार की सैलरी स्लिप भी सरकार को सौंपी दी। पहले के तीन साल उसे दफ्तर संवारने में लग गए। लेकिन सरकार ने थर्ड पार्टी से आॅडिट कराकर ये साबित कर दिया कि पांच साल में सिर्फ 4421 को ही नौकरी दिलाई गई। जबकि ये आंकड़ा सही नहीं है। सरकार से कंपनी को अब तक 4 करोड़ 17 लाख रु. का भुगतान हुआ है।