भाजपा के डेढ़ दर्जन जिलों में गिरेगी अध्यक्षों पर गाज

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भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में हाल ही में हुए पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव के परिणामों की वजह से सत्तारुढ़ दल अब मैदानी स्तर पर कई जिलों के अध्यक्षों को बदल सकती है। बताया जा रहा है की खराब प्रदर्शन करने व गुटबाजी पर अंकुश लगाने में नाकमयाब रहने वाले करीब डेढ़ दर्जन जिलों में उनकी नाकामी को देखते हुए बदलने की गाज गिर सकती है। दरअसल कई जिलों में पार्टी प्रत्याशियों को भीतरघात का सामना करना पड़ा है जिसकी वजह से न केवल पार्टी को नुकसान हुआ है बल्कि कई जगहों पर तो नगर निगम में महापौर के अलावा पार्षद प्रत्याशियों तक को हार का सामना करना पड़ गया  है।
पार्टी ने इसके लिए जिलों की पहचान कर ली है। इनमें सिंगरौली, सीधी, सतना, ग्वालियर, भिंड, कटनी, जबलपुर, अलीराजपुर, डिंडोरी, झाबुआ, रतलाम, आगर, शाजापुर, अशोकनगर, शिवपुरी, मुरैना, बालाघाट, रीवा और नर्मदापुरम के नाम बताए जा रहे हैं। इस बात के संकेत इन जिलों के जिलाध्यक्षों को भी हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद द्वारा की गई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में दे दिए गए हैं। तय किया गया है की पार्टी के विरुद्ध काम करने वाले किसी भी पदाधिकारी को नहीं बख्शा जाएगा। बताया जा रहा है की कार्रवाई करने से पहले प्रदेश स्तर से नेताओं की एक टीम संबधित जिलों में भेजी जाएगी, जो अपने स्तर पर चुनाव के दौरान जिला अध्यक्षों के द्वारा किए गए कार्यक्रलापों की जानकारी जुटाएगा। अगर पार्टी के संकेतों को सही माने तो एक माह के अंदर ही इन जिलों को नए जिलाध्यक्ष मिल सकते हैं। प्रदेश संगठन के अलावा केन्द्रीय संगठन भी खासतौर पर ग्वालियर, सिंगरौली, मुरैना और रीवा में आए नगरीय निकाय चुनावों के परिणामों को लेकर बेहद नाराज है। बताया जा रहा है की अब तक प्रदेश संगठन के पास एक दर्जन से अधिक जिलों से शिकायतें आ चुकी हैं। इसकी वजह से ही प्रदेश के पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मौखिक जानकारी आलाकमान को भी दे दी है। बदलाव वाले जिलों में वे भी शामिल हैं जहां पर लंबे समय से जिले की कमान मौजूदा जिलाध्यक्ष के पास बनी हुई है। इनमें कई तो तय उम्र की सीमा को भी पार कर चुके  हैं। दरअसल संगठन 2023 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अभी से मजबूत संगठनात्मक जमावट कर लेना चाहता है।
हारने की मंत्री-विधायकों से ली जाएगी कैफियत
पूर्व के चुनाव में प्रदेश के सभी नगर निगमों पर जीत हासिल करने वाली पार्टी को इस बार महज 9 नगर निगमों में ही जीत मिल सकी है। इसी तरह से पार्टी को अपनी सरकार होने के बाद भी 10 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव भी हारना पड़ा है। यह हार भी उन जिलों में हुई है ,जहां पर पार्टी के विधायक और सांसद भी हैं। यही वजह है की इस हार के लिए प्रभारी मंत्री, विधायक और सांसदों से अब कैफियत ली जाएगी। बताया जा रहा है की अब इन नेताओं को प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा तलब कर हार की कैफियत लेगें। इस क्रम में तीन दिन  पहले केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से मुलाकात कर चुके हैं। उधर, ग्वालियर, मुरैना, जबलपुर, छिंदवाड़ा, रीवा, सिंगरौली और कटनी में महापौर चुनाव हारने पर क्षेत्रीय नेताओं के साथ हार की वजहों पर मंथन करेगी।  पार्टी जिला पंचायत अध्यक्ष नहीं बनने वाले दस जिलों पर भी फोकस करने जा रही है। नर्मदापुरम में विधायक सीतासरन शर्मा और जिला प्रभारी मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह के होने और अधिक पार्टी के सदस्य होने के बाद भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। इसी तरह से बृजेंद्र प्रताप सिंह के प्रभार वाले सिंगरौली भी भी पार्टी को बुरी तरह से दोहरी हार का सामना करना पड़ा है। उधर, डिंडोरी और राजगढ़ में प्रभारी मंत्री मोहन यादव पार्टी प्रत्याशी को नहीं जिता पाए हैं। छिंदवाड़ा में भी प्रभारी मंत्री कमल पटेल नगर  निगम और जिला पंचायत में बेअसर साबित हुए हैं, जबकि मंत्री गोविंद सिंह राजपूत अपने भाई हीरा सिंह को अध्यक्ष बनवाने में तो सफल रहे , लेकिन वे अपने प्रभार वाले  दमोह जिले में पार्टी को जीत नहीं दिला पाए हैं। इसी तरह से अनूपपुर में मीना सिंह और देवास में यशोधरा राजे सिंधिया प्रभारी होकर भी पार्टी की जीत जिला पंचायत चुनाव में तय नहीं करा पायी हैं।
गोगापा व निर्दलीय भी बने अध्यक्ष
हद तो यह है की प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष के एक पद पर गोगापा जैसे दल कब्जा करने में सफल रहा है जिसका वर्तमान में कोई विधायक तक नही है। इसी तरह से तीन जिलों में निर्दलीय भी जीत पाने में सफल रहे हैं। यानि की वे भाजपा नेताओं की रणनीति पर भारी पड़े हैं। इसके अलावा कई जगहों पर भले ही जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा विजयी रही है , लेकिन उपाध्यक्ष का पद किसी दूसरे दल के खाते में चला गया है। इसकी वजह से कई जगहों पर भाजपा सदस्यों को मायूस होना पड़ा है।

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