- सत्येन्द्र खरे
शिक्षक के तौर पर, एक मित्र के तौर पर और एक जिंदादिल इंसान के तौर पर उनसे जो भी जुड़ा वो उनका हो गया और पीपी सर उनके हो गए। इन सभी रिश्तों में किसी के साथ भी उनका लेशमात्र का भी स्वार्थ नहीं रहा, हर किसी के लिए हर समय तत्पर रहने वाले एक बेजोड़ इंसान थे पीपी सर।
प्रो. पुष्पेंद्र पाल सिंह का निधन 7 मार्च को अलसुबह हृदयाघात से हो गया। हम छात्रों के लिए वो एक बाबा की तरह थे और हम सब उन्हें प्यार से बाबा बुलाते भी थे। बाबा, जिससे जितना चाहे ज्ञान बटोर लो, बाबा जो आपका एक अभिभावक है, बाबा जो आपके वर्तमान और भविष्य दोनों की चिंता कर रहा है। इस बाबा (पीपी सर) के हर छात्र के साथ अपने किस्से हैं, अपनी कहानियां हैं और किस्से कहानियां भी ऐसे जो शुरू हों तो खत्म होने का नाम न लें।
बाबा जो कल तक हमारी आंखों के सामने थे, हमारे मार्गदर्शक थे, आज वे हमारी यादों में अमर हो गए। बाबा का एक पसंदीदा गाना था, जिसे वे हमेशा गुनगुनाते थे- एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल। आज उनके जाने के बाद इस गाने की एक -एक लाइन उनके छात्रों के अंदर अजर अमर हो गई है।
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे बाबा के छात्र होने का भी गौरव प्राप्त हुआ और वर्तमान दायित्व पर मुझे पीपी सर के साथ काम करने का भी अविस्मरणीय अनुभव प्राप्त हुआ। दोनों अनुभव से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। एक पत्रकारिता के शिक्षक के तौर पर उन्होंने जो पहला पाठ हम छात्रों को सिखाया कि पत्रकारिता, क्लास रूम में बैठकर नहीं सीख सकते है, आपको फील्ड पर जाना होगा और पहले सेमेस्टर से ही भोपाल में होने वाली अनेकों गतिविधियों (राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, क्राइम इत्यादि ) में छात्र की रुचि के अनुसार उसे कवर करने के लिए सर भेज देते थे। देर शाम जब दूसरे डिपार्टमेंट बंद हो जाते थे तब पीपी सर की क्लास शुरू होती थी और वो बोलते थे ले आओ अपनी-अपनी कॉपी, अपनी-अपनी रिपोर्टिंग, क्या देखा क्या लिखा, बड़ी बारीकियों से हम सभी को पत्रकारिता सिखाते और सिखाने का दौर भी ऐसे नहीं चलता , बच्चों के साथ गप्पें, रात का खाना और रिपोर्टिंग की बारीकियां एक टेबल पर एक साथ होती थी । दूसरी बात जो उन्होंने सिखाई कि पूर्वाग्रह से बचो, अपने अनुभव पर आगे बढ़ो और डटे रहो। बाबा ने सिखाया कि पढ़ना और लिखना दोनों को अब अपना जीवन बना लो। सब कुछ पढ़ो और लिखो।
बाबा से एक बात और सीखी कि सभी के लिए खुले दिल से आगे आओ, जो आज के दौर पर असंभव सा लगता है लेकिन ये बात सर ने अपने आचरण से सिखाई। वे कभी एमजे के एचओडी या शिक्षक बन कर नहीं रहे, वे सभी के थे और सब उनके।
(बाबा के विद्यार्थी)