मप्र में कभी भी हो सकती है बिजली गुल कोयला संकट हुआ गंभीर

कोयला संकट

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां, पर बीते एक साल में दो से तीन बार ऐसे हालात बनते नजर आए
हैं जब प्रदेश के सभी सरकारी ताप विद्युत गृहों पर एक साथ पूरी तरह से ठप होने का खतरा पैदा होने लगा था। यही खतरा एक बार फिर से मंडराता नजर आने लगा है। इसकी वजह है इन बिजली घरों में पैदा हो रहा कोयले का संकट। अगर एक दो दिन में कोयला संकट दूर नहीं हुआ तो प्रदेश में कभी भी बिजली गुल होना तय माना जा रहा है। अभी हालात यह हो गई है कि दो बिजली उत्पादन यूनिटों को तो बंद तक करना पड़ गया है। एक दो दिन में कई यूनिट बंद करने की नौबत भी बनी हुई है।
इस संकट से बचने के लिए सरकारी स्तर पर  मेंटेनेंस का बहाना लिया जा रहा है। इसकी वजह से मांग और आपूर्ति में अंतर को ढंका जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश के चारों बिजली संयत्रों को हर दिन 77 हजार मीट्रिक टन कोयले की जरुरत होती है, लेकिन स्टॉक में महज 3 लाख मीट्रिक टन के करीब ही कोयला का स्टॉक रह गया है। इस हिसाब से यह स्टॉक महज चार दिन के लिए ही बचा है। अगर जल्द ही कोयले की आपूर्ति तेजी से नही हुई तो फिर प्रदेश में बिजली संकट खड़ा होना तय है। हालांकि इस मामले में सरकार का दावा है कि उसके पास जरुरत के हिसाब से पर्याप्त स्टॉक है। कोयला की भी लगातार आपूर्ति हो रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस समय प्रदेश में कोयला आधारित बिजली उत्पादन करने वाले चारों प्लांटों की क्षमता 5400 मेगावॉट की है। इनमें अभी महज 3100 मेगावॉट ही बिजली का उत्पादन हो पा रहा है। इसकी वजह से मांग व आपूर्ति में अंतर बढ़ गया है। इस अंतर को कम करने के लिए ही बिजली कंपनियों द्वारा मेंटेनेंस का बहाना लिया जा रहा है। दरअसल प्रदेश में बारिश के समय बेहद कम मात्रा में कोयले की सप्लाई की गई जिसका नतीजा यह सामने आ रहा है। कोयले की कमी की वजह से ही प्रदेश के प्रमुख थर्मल पावर प्लांट के हालात खस्ता हैं, मसलन संजय गांधी और श्रीसिंगाजी थर्मल पावर प्लांट की एक इकाई बंद हो गई हैं। इसकी वजह से अब कोयले की उपलब्धता के आधार पर ये प्लांट आधी क्षमता पर चलाए जा रहे हैं। प्रदेश में यह हाल तब हैं जबकि, रवि फसल की सिचाई की वजह से बिजली की मांग तेजी से बढ़ी है।
यह है कोयले की स्थिति
अमरकंटक थर्मल पावर प्लांट में रोजाना 4000 टन कोयले की जरूरत है, स्टॉक में है 8300 टन, उत्पादन होता है 210 मेगावॉट, फिलहाल उत्पादन हो रहा है 149 मेगावॉट, संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट में 18000 टन कोयला की रोजाना जरूरत है, 70,000 टन स्टॉक में है, बिजली बनाने की क्षमता 1340 मेगावॉट है, उत्पादन हो रहा है 477 मेगावॉट, सारणी ताप गृह में रोजाना की जरूरत 20500 टन है, स्टॉक में 38300 टन कोयला है, बिजली बनाने की क्षमता 1330 मेगावॉट है, उत्पादन हो रहा है 253 मेगावॉट, श्री सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट में 35000 टन कोयले की जरूरत है, स्टॉक है  1.90लाख टन कोयला, बिजली बनाने की क्षमता है 2700 मेगावॉट, उत्पादन हो रहा है 1708 मेगावॉट।
मंत्री का दावा  
सरकार मानती है कि कोयले के स्टॉक की थोड़ी दिक्कत है, लेकिन ये भी कहती है कि ग्राहकों को तकलीफ नहीं होगी। वहीं कांग्रेस कह रही है कि ये लापरवाही है। ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है कि हमारे प्लांट कम लोड पर चल रहे हैं, क्यों चल रहे हैं मांग में कमी है, कई प्लांट हमारे वार्षिक संधारण में जा रहे हैं, मैंटनेंस हो रहा है। मैं आज फिर कह रहा हूं कोयले का संकट है, लेकिन उसके कारण आम उपभोक्ता को परेशान नहीं होने देंगे ये हमारा सुनिश्चित वादा है।
कोयला कमी को गंभीरता से नहीं ले रही सरकार, आरोप
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार कोयले की कमी को गंभीरता से नहीं ले रही है। अगर कम समय के लिये कोयला है तो ये नौबत क्यों है। जहां तक मुझे पता है कि अगर जेनेरेटिंग यूनिट शटडाउन में चली जाती है तो चालू करने में वक्त लगता है। सरकार कह रही है कोयला उपलब्ध करा देंगे पर सवाल है कब। मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी में रोजाना खपत करीब 50 हजार मीट्रिक टन है, जबकि आपूर्ति 40 से 45 हजार मीट्रिक टन ही है। यही वजह है कि स्टॉक लगातार घट रहा है। नए साल में प्रदेश को ऊर्जा विभाग से दो सौगात मिली, पहली प्रति यूनिट बिजली 16 पैसे महंगी हो गई है, दूसरी कोयले का संकट। गनीमत है कि फिलहाल डिमांड ज्यादा नहीं है, नहीं तो बत्ती कभी भी गुल हो सकती है।
खराब गुणवत्ता से बड़ी कोयले की खपत
सूत्रों की माने तो मप्र को कम गुणवत्ता का कोयला मिल रहा है जिसकी वजह से कोयले की खपत 15 से 20 फीसदी अधिक हो रही है। इसकी वजह से सिंगाजी में 630 ग्राम कोयले की जगह एक यूनिट के लिए 760 ग्राम कोयले का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। इसी तरह अमरकंटक में 550 ग्राम की जगह 760 ग्राम, बिरसिंहपुर में 650 ग्राम की जगह 780 ग्राम कोयले की खपत हो रही है। जबकि सतपुड़ा में 650 ग्राम में ही एक यूनिट का उत्पादन हो रहा है।
यह है बिजली उत्पादन की स्थिति
इस समय 4 सरकारी बिजलीघरों की 16 यूनिट में से 7 के बंद होने की वजह से महज 9 में ही बिजली का उत्पादन हो रहा है। इसकी वजह से बीते रोज शाम को इनसे 5400 मेगावाट की जगह महज 3100 मेगावॉट का उत्पादन ही हो सका। अगर हाइडल बिजली की बात की जाए तो उसका उत्पादन 1,492 मेगावॉट रहा। बाकी 5,969 बिजली सेंट्रल सेक्टर और अन्य निजी कंपनियों से लेकर काम चलाया गया। इस दौरान प्रदेश में बिजली की मांग 11,185 मेगावाट रही।

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