नर्सिंग कॉलेजों में मान्यता के लिए बड़ा खेला

नर्सिंग कॉलेजों
  • एक प्रिंसिपल संभाल रहे  कई  शहरों के  एक साथ  कई कॉलेज

    भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता के लिए कागजों पर ऐसा खेल खेला जा रहा है, जिसे देख सुनकर लोग हैरान-परेशान है। अभी हाल ही में ऐसा मामला सामने आया है जिसमें एक प्रिंसिपल कई-कई कॉलेजों की दूर दराज के कइ्र शहरों में एक साथ जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।  गौरतलब है की अभी हाल ही में ग्वालियर हाई कोर्ट की युगल पीठ ने 70 नर्सिंग कालेजों की मान्यता निरस्त कर दी है। दरअसल कालेज मान्यता के मानकों को पूरा ही नहीं कर रहे हैं, न खुद का भवन है, न अस्पताल है। जिन कालेजों ने अपने अस्पताल दिखाए हैं, उन अस्पतालों में डाक्टर व मरीज ही नहीं हंै। अस्पताल में जितने पलंग बताए गए, उतने निरीक्षण टीम को भी नहीं मिले। अब जो मामला सामने आया है वह और आश्चर्यजनक है। नए मामले के अनुसार प्रदेश के नर्सिंग कॉलेजों में कार्यरत प्रिंसिपल और फैकल्टी किसी सुपरमैन से कम नहीं है। हालत यह है कि एक प्रिंसिपल नौ कॉलेज संभाल रहे हैं। वे भी एक शहर में नहीं, बल्कि 900 किमी के दायरे में स्थित अलग-अलग शहरों में।
    ऐसे ही हाल फैकल्टी के भी हैं, एक ही फैकल्टी तीन-तीन कॉलेज में पढ़ा रहे हैं। हद यह है कि सभी के ओरिजिनल डॉक्यूमेंट एमपी आॅनलाईन पर उपलब्ध हैं। कॉलेजों ने फैकल्टी की संख्या पूरी दिखाने के लिए एक ही व्यक्ति के आठ से 10 रजिस्ट्रेशन कराए और नर्सिंग काउंसिल ने आंख मूंद कर उन्हें अनुमति भी दे दी, जबकि नियमानुसार यदि कोई फैकल्टी एक से अधिक कॉलेज में कार्यरत पाया जाता है तो दो लाख रुपए के जुमार्नेके अलावा  कॉलेज की मान्यता तक निरस्त करने का प्रावधान है। ी जा सकती है।
    काउंसिल की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में
    हैरानी की बात यह है कि कॉलेजों की मान्यता में निरंतर फर्जीवाड़े सामने आ रहे हैं। उसके बाद भी नर्सिंग काउंसिल कागजी खानापूर्ति के भरोसे कॉलेजों को मान्यता थमाने में लगा हुआ है।  काउंसिल ज्यादातर कॉलेजों के सरकारी रिकॉर्ड भी चेक नहीं कर रहा है। ऐसे में प्रिंसिपल के नाम में जरा हेरफेर और समान दस्तावेज लगाकर मान्यता मिल रही है।  लीना नामक प्रिंसिपल भोपाल, छतरपुर, छिंदवाड़ा (2), रायसेन, शहडोल, अनूपपुर, खंडवा एवं बड़वानी के 9 नर्सिंग कॉलेजों में पदस्थ हैं। इसमें सबसे दूरस्थ दो कॉलेजों बड़वानी और अनूपपुर की दूरी 900 किमी है। इसी तरह ज्योति आर. इंदौर, भोपाल, छिंदवाड़ा, खरगोन, शहडोल एवं सागर में प्रिंसिपल हैं। एंसी वर्गीस अनूपपुर एवं खरगोन में, गिरीश पाटीदार शिवपुर एवं खंडवा तथा संगीता पी. खरगोन, सागर व खंडवा में।
    निरीक्षण की भी खुली पोल
    नियम है की कॉलेजों की मान्यता के लिए निरीक्षण जरूरी है। एमपी आॅनलाइन पर किए गए रजिस्ट्रेशन के मुताबिक गौरव जैन इंदौर के एक कॉलेज के साथ ही झाबुआ एवं बड़वानी के तीन कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं। सुप्रिया पुरुनू इंदौर के साथ ही देवास एवं विदिशा के कॉलेजों में भी एक ही सत्र में पदस्थ हैं। जबकि इन कॉलेजों के बीच की दूरी 100 से 150 किमी की है। इसी तरह रणजीत सिंह इंदौर के ही दो कॉलेजों में पदस्थ हैं। वंदना पटेल भी इंदौर के दो कॉलेज में दर्ज हैं। सुमैया बेगम भी कागजों पर इंदौर के साथ ही खरगोन के कॉलेज में भी एक साथ ही पढ़ा रही हैं। इस संदर्भ में चिकित्सा शिक्षा कमिश्नर निशांत वरवड़े का कहना है कि इसी सत्र से फैकल्टी को आधार से लिंक कर रहे हैं। नाम में मामूली बदलाव कर एक ही व्यक्ति कई कॉलेज में पदस्थ नहीं हो सकेगा।

Related Articles