अन्य विभाग के अफसर इस बार भी नहीं बन सकेंगे आईएएस

अन्य विभाग

प्रशासनिक अफसरों के साथ ही सरकार भी कर रही सौतेला व्यवहार

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में हावी अफसरशाही नहीं चाहती है कि नियमानुसार गैर प्रशासनिक सेवा के अफसर अखिल भारतीय सेवा के अफसर बन सकें। यही वजह है कि प्रदेश में बीते छह सालों से एक भी गैर प्रशासनिक सेवा का अधिकारी आईएएस नहीं बन सका है।
 इस मामले में सरकार भी आईएएस अफसरों के साथ अन्य सेवाओं के अफसरों के मामले में सौतेला व्यवहार करने में पीछे नहीं है। इसकी वजह से गैर प्रशासनिक सेवा के अफसरों में रोष देखा जा  सकता है। हालात यह है कि अब तो यह अफसर खुद को पक्षपात का शिकार होना बताने में भी पीछे नही रह रहे हैं। बीते छह सालों की ही तरह इस बार भी प्रदेश से किसी भी गैर प्रशासनिक सेवा के अफसर का नाम आईएएस संवर्ग में पदोन्नति के लिए भेजा तक नहीं गया है। प्रदेश में अंतिम बार वर्ष 2016 में चार अधिकारी मंजू शर्मा, संजय गुप्ता, शमीमउद्दीन और श्रीकांत पांडे को आइएएस अवार्ड हुआ था। इसके बाद से तो प्रदेश में गैर प्रशासनिक सेवा के किसी अधिकारी का नाम ही आईएएस अवार्ड के लिए तक नहीं भेजा गया है। इस मामले में करीब 15 माह रही कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में जरुर थोड़ी हलचल हुई थी , लेकिन तब भी आला आईएएस अफसरों ने अपने मन की करते हुए गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के नाम नही भेजे थे। दरअसल प्रदेश में आईएएस अफसर गैर प्रशासनिक सेवा के अफसरों की जगह राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों को अधिक महत्व देते हैं।
इस वर्ष भी आइएएस अवार्ड के लिए प्रदेश के हिस्से में 18 पद उपलब्ध हैं ,लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग ने इसके लिए सिर्फ राज्य प्रशासनिक सेवा के 54 अधिकारियों के नाम ही संघ लोक सेवा आयोग को भेजे हैं। इनमें भी गैर प्रशासनिक सेवा के किसी अफसर का नाम शामिल नहीं किया गया है , जिसकी वजह से इस बार भी उन्हें आईएएस बनने का मौका नहीं मिलना तय हो गया है। इस मामले में सरकार भी कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। पदोन्नति के माध्यम से आईएएस बनने वाले अधिकारियों की सेवानिवृत्ति पर उतने ही पद राज्य प्रशासनिक सेवा या गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से भरे जा सकते हैं। प्रदे्रश में यह हाल तब हैं ,जबकि वर्ष 2015 तक गैर प्रशासनिक सेवा के अफसरों को आईएएस बनने का मौका मिलता रहा है। इसके बाद राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की अधिक संख्या को देखते हुए गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को मौका देना ही पूरी तरह से बंद कर दिया गया। तीन साल पहले जब प्रदेश में कांग्रे्रेस की कमलनाथ सरकार थी, तब 2019 में तत्कालीन सामान्य प्रशासन मंत्री डा. गोविन्द सिंह ने गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को चार पद देने का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव पर कमल नाथ की सहमति के बाद भी सामान्य प्रशासन विभाग ने संघ लोक सेवा आयोग को भेजे गए प्रस्ताव में भी केवल राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के ही नाम पदोन्नति के लिए भेजे थे। यानि की बीते छह सालों से गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पक्षपात के शिकार लगातार बने हुए हैंं।
 खास बात यह है कि यह अफसर भी उसी प्रक्रिया से भर्ती होते हैं, जिससे राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी निुयक्त होते हैं। अपने संवर्ग में उच्चतम पद पर पहुंचने के बाद गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के पास पदोन्ननति को कोई रास्ता ही नहीं बचता है।  इसकी वजह से कई अधिकारियों को तो सालों तक एक ही पद पर काम करना पड़ता र्है।  उधर सामान्य प्रशासन विभाग का तर्क है कि यह अनिवार्य नहीं है कि गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के नाम आईएएस अवार्ड के लिए प्रस्तावित ही किए जाएं। इस संबंध में राज्य सरकार ही निर्णय ले सकती है।  
क्या कहते हैं पूर्व अफसर  
इस संबंध में पूर्व में आला ब्यूरोक्रेट रह चुके अफसरों का कहना है कि इस तरह के हालात अच्छे  नही हैं। गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी क्षमतावान होते हैं। उनके अनुभव का लाभ लेना चाहिए। इनका चयन तो राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की तुलना में ज्यादा कठिन होता है। राज्य से प्रस्ताव जाने के बाद संघ लोक सेवा आयोग के स्तर पर पहले छानबीन होती है और उसके बाद साक्षात्कार का सामना करना होता है। अब तो केंद्र सरकार निजी क्षेत्र से क्षमतावान लोगों का सीधे नियुक्ति दे रही है। नियमों में प्रविधान भी है। हालांकि, यह राज्य सरकार के ऊपर निर्भर करता है कि वे गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को मौका देना चाहती है या नहीं।

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