
- पीपीपी मॉडल से बिगड़े वनक्षेत्र को सुधारने का मामला अधर
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। देश में सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले प्रदेश मप्र में बिगड़े वन क्षेत्र को सुधारने के लिए सरकार ने पीपीपी मॉडल का सहारा लेने का प्लान बनाया था। लेकिन आदिवासी संगठनों के विरोध के बाद मामला अधर में चला गया है। दरअसल, प्रदेश सरकार जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, राज्य के जंगलों की परिस्थितिकी में सुधार करने और आदिवासियों की आजीविका को सुदृढ़ करने के लिए राज्य के कुल 94,689 वर्ग किमी वन क्षेत्र में से 37,420 वर्ग किमी यानी 40 प्रतिशत क्षेत्र को 30 साल के लिए निजी कंपनियों को देने जा रही थी। हालांकि मप्र सरकार के इस कदम से पर्यावरणविद् भी नाराज थे। उनका कहना है कि यह वन कानूनों के खिलाफ है, जबकि वन क्षेत्र सामुदायिक संपत्ति है और इसे किसी को देने का अधिकार सरकार को नहीं है। इसके अलावा पर्यावरणविद् की तरफ से दावा किया गया है कि यदि जंगल कोई पीपीपी मोड में लेगा, तो सबसे पहले अपना फायदा देखेगा। इसको देखते हुए फिलहाल बिगड़े वनक्षेत्र को निजी हाथों में देने का मामला अटक गया है। अब सरकार की कोशिश है कि सीएसआर फंड से बिगड़े वनों को सुधारा जाए।
आपको बता दें कि वन विभाग के द्वारा बिगड़े वनों को पीपीपी मोड में विकसित करने की योजना तैयार की गई थी। जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, राज्य के जंगलों की पारिस्थितिकी में सुधार करने और आदिवासियों की आजीविका को सुदृढ़ करने का दावा किया जा रहा है। सरकार के वन विभाग ने एक प्रस्ताव बना लिया था लेकिन विवाद के कारण मामला अधर में लटका हुआ है। आदिवासी संगठनों के विरोध के बाद यह प्रस्ताव अटक गया है। जबकि प्रस्ताव के अनुसार बिगड़े वनक्षेत्र में निजी निवेशकों को पौधारोपण करना था। पौधारोपण पर आने वाला 50 फीसदी खर्च भी निजी निवेशक का होता। इसके अलावा तीन साल में अनुबंध वाले क्षेत्र में 75 फीसदी पौधों का जीवित रहना भी जरूरी था। अगर 75 फीसदी पौधे तीन साल तक जीवित बने रहते हैं, तो ऐसे में इस अनुबंध को सफल माना जाता, लेकिन फिलहाल इस प्रस्ताव पर काम आगे नहीं हो पा रहा है।
सीएसआर नीति बनाने की तैयारी
अब वन विभाग प्रदेश के वनक्षेत्र और वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए सीएसआर नीति बनाने की तैयारी कर रहा है। प्रदेश में कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी यानी सीएसआर में वन विभाग के अंतर्गत गठित टाइगर फाउंडेशन कमेटी में धनराशि लेने का प्रावधान है, लेकिन इसके लिए अभी कोई निर्धारित नीति नहीं है। इसको देखते हुए वन विभाग इसके लिए नीति बनाने की तैयारी की जा रही है। इसका प्रस्ताव बनाकर सरकार के पास भेजा जाएगा, जिससे प्रदेश के बिगड़े वनक्षेत्र को सुधारने के लिए धनराशि जुटाई जा सके। प्रदेश में 36 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा बिगड़ा वनक्षेत्र है। वन विभाग हर साल बिगड़े वनों में हरियाली बढ़ाने करोड़ों रुपए खर्च करता है। इसके बाद भी घना वनक्षेत्र कम हो रहा है और बिगड़े वनों का क्षेत्रफल बढ़ रहा है। इसको देखते हुए निजी निवेशकों को प्रदेश के वनक्षेत्र की हरियाली बढ़ाने का जिम्मा दिए जाने का प्रस्ताव था। इसके बदले निजी निवेशकों को कार्बन क्रेडिट अधिकार दिया जाना था।
कम नहीं हो रहा ओपन वनक्षेत्र
प्रदेश में खुला वनक्षेत्र लगातार बढ़ा है। हर साल वन विभाग 4 से 5 करोड़ पौधे लगाता है। इसके बाद भी ओपन क्षेत्र कम नही हो रहा है। साल 2019 में अति सघन वनक्षेत्र 6676 वर्ग किमी का था। साल 2021 में यह वनक्षेत्र 6665 वर्ग किमी का रह गया था। यानी अति सघन वनक्षेत्र भी कम हो गया था। अब अति सघन वनक्षेत्र बढकऱ 7021.31 वर्ग किमी का हो गया है। यानी 356.31 वर्ग किमी का अति सघन वनक्षेत्र बढ़ा है। वही साल 2021 में ओपन फॉरेस्ट 36 हजार 619 वर्ग किमी का था, जो अब घटकर 36543 वर्ग किमी का रह गया है। यानी ओपन फॉरेस्ट 76 वर्ग किमी कम हुआ है। वन विभाग द्वारा 10 करोड़ से अधिक पौधे लगाए जाने के बाद ओपन फॉरेस्ट 76 वर्ग किमी कम हो पाया है। इस ओपन फॉरेस्ट में हरियाली बढ़ाने के प्रयास वन विभाग कर रहा है। हरियाली बढ़ाने शहरों में नगर वन योजना के तहत 892.14 हेक्टेयर क्षेत्र में 26 नगर वन, वाटिकाएं बन चुकी है। वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक इनके लिए भारत सरकार से 20 करोड़ 26 लाख रुपए मिले थे। इसमें से 20 करोड़ 23 लाख में नगर वन तैयार हुए हैं। ये नगर वन भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, सागर, देवास, सतना, रतलाम, सिंगरौली, कटनी, उज्जैन, इंदौर, नर्मदापुरम, सिवनी, बड़वानी, खरगौन, खंडवा, अलीराजपुर, डिंडौरी में स्थापित किए जा चुके है। जा चुके हैं। प्रदेश के अन्य शहरों में 696.28 हेक्टेयर क्षेत्र में 20 नए नगर वन स्वीकृत किए जाने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा जा रहा है।