हाईकमान के आगे नहीं चला किसी का जोर

हाईकमान

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। जिस तरह भाजपा आलाकमान में सारे समीकरणों को ध्यान में रखते हुए डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया, ठीक उसी तर्ज पर मंत्रिमंडल का गठन भी किया गया है। यानी जातीय समीकरण, नए चेहरे और दिग्गजों पर दांव लगाकर आलाकमान ने लोकसभा चुनाव की चौसर बिछा दी है। वहीं मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों की तस्वीर बताती है कि हाईकमान के आगे किसी का जोर नहीं चला है। प्रदेश में जिन 28 मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली है, उनमें 18 कैबिनेट, छह राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और चार राज्यमंत्री शामिल हैं। नए मंत्रियों में ओबीसी का दबदबा है। 28 में से 12 मंत्री ओबीसी वर्ग से बनाए गए हैं। सामान्य वर्ग से सात, अनुसूचित जाति से पांच, अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग से भी चार मंत्री बनाए गए हैं। एमपी सरकार के मंत्रिमंडल में जातीय गणित के साथ ही क्षेत्रीय समीकरण, गुटीय संतुलन साधने की कवायद भी साफ नजर आ रही है।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 4 विधायकों तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर और एंदल सिंह कंसाना को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।  विजय शाह 5वीं बार मंत्री बने हैं, जबकि कैलाश विजयवर्गीय चौथी बार मंत्री बने हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुराने संसदीय क्षेत्र शिवपुरी, गुना, अशोकनगर से किसी भी विधायक को मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई है। सिंधिया के पुराने संसदीय गढ़ से किसी भी विधायक को नए मोहन मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। शिवपुरी, गुना, अशोकनगर जिले की 12 विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें से शिवपुरी से पांच सीटें, गुना से चार सीटें, अशोकनगर से तीन विधानसभा सीट आती हैं। इन तीन जिलों की 12 सीटों में से भाजपा यहां पर आठ सीटें जीती हैं, लेकिन इनमें से किसी भी विधायक को चुनाव जीतने के बाद मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई है। स्थानीय राजनीति के जानकारों का कहना है कि शिवपुरी, गुना, अशोकनगर जिले से पिछले कई सालों से लगातार कोई न कोई इस इलाके से मंत्री रहा है, लेकिन इस बार मोहन मंत्रिमंडल में इन तीनों जिलों से किसी भी विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया है। शिवपुरी जिले की बात करें तो वर्ष 2005 से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया लगातार यहां मंत्री रहीं। इसके अलावा वर्ष 2020 में मप्र में दलबदल के बाद हुए सत्ता परिवर्तन में पोहरी विधानसभा क्षेत्र से सिंधिया समर्थक विधायक सुरेश राठखेड़ा कांग्रेस छोडक़र जब भाजपा में आए तो उन्हें पीडीडब्ल्यू राज्य मंत्री बनाया गया था। इस तरह से शिवपुरी जिले से दो मंत्री शिवराज सरकार में रहे। इसके अलावा गुना से महेंद्र सिंह सिसोदिया और अशोकनगर से बृजेंद्र प्रताप सिंह मंत्रिमंडल में रहे ,लेकिन इस बार किसी भी विधायक को मंत्रिमंडल में शिवपुरी, गुना, अशोकनगर से जगह नहीं दी गई है। अब जगह नहीं मिलने के बाद जीतकर आए नवनिर्वाचित विधायक मायूस हैं।
क्षेत्र, वरिष्ठता साधने की कोशिश…
कई वरिष्ठ विधायक इस बार नहीं पा सके जगह मोहन मंत्रिमंडल में मालवा-निमाड़ क्षेत्र को पिछली सरकार की तुलना में भले ही एक मंत्री पद कम मिला है, लेकिन सरकार में मालवा-निमाड़ क्षेत्र विंध्य, महाकौशल और मध्य क्षेत्र की तुलना में मजबूत है। मुख्यमंत्री मोहन यादव, उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और कैबिनेट मंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय भी इंदौर से हैं। पिछली सरकार में मंत्री रहे ऊषा ठाकुर, ओमप्रकाश सखलेचा,हरदीपसिंह डंग को नए मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी है। मंत्रिमंडल में मालवा-निमाड़ क्षेत्र से नए चेहरों के साथ ही अनुभवी विधायकों को शामिल कर संगठन ने संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है। यदि मोहन कैबिनेट पर क्षेत्रवार नजर डालें, तो सबसे ज्यादा फायदे में मालवा-निमाड़ अंचल रहा है। यहां से 9 विधायक मंत्री बनाए गए हैं। इनमें तुलसीराम सिलावट, कैलाश विजयवर्गीय विजय शाह, इंदर सिंह परमार, चैतन्य कश्यप, निर्मला भूरिया, नागर सिंह चौहान, नारायण सिंह पंवार, गौतम टैटवाल। सीएम मोहन यादव और डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा भी इसी क्षेत्र से आते हैं। मध्य अंचल से 4 विधायक मंत्री बनाए गए हैं। इनमें विश्वास सारंग, कृष्णा गौर, करण सिंह वर्मा और नरेन्द्र शिवाजी पटेल। ग्वालियर अंचल से चार विधायक मंत्री बनाएं गए हैं। इनमें प्रद्युम्न सिंह तोमर, नारायण सिंह कुशवाहा, एंदल सिंह कंसाना व राकेश शुक्ला। बुंदेलखंड अंचल से अंचल से गोविंद सिंह राजपूत, धर्मेन्द्र लोधी और दिलीप अहिरवार, विंध्य क्षेत्र से राधा सिंह, दिलीप जायसवाल, प्रतिमा बागरी। इस क्षेत्र से डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल भी आते हैं। महाकौशल क्षेत्र से संपत्तियां उइके, नरसिंहपुर से प्रहलाद पटेल, राव उदय प्रताप सिंह और राकेश सिंह मंत्री बनाए गए हैं।
संतुलन साधने पर जोर
मप्र की नई सरकार पर यदि गौर करें, तो इस बार केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा पिछली सरकार की तुलना में कम हुआ है। इसी तरह पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के खास भी कैबिनेट से नदारत है। इस बार मोहन मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को भी कम संख्या में लिया गया है। पूर्व में शिवराज सरकार जब मप्र में थी तो उस समय 9 सिंधिया समर्थक मंत्री बनाए गए थे, लेकिन इस बार मोहन मंत्रिमंडल में मात्र तीन मंत्री तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर को शामिल किया गया है। इस बार सिंधिया समर्थक मंत्रियों को कम जगह दी गई है, जिसके कारण गुना, शिवपुरी, अशोकनगर के उनके समर्थकों को निराशा हाथ लगी है। गुना, शिवपुरी, अशोकनगर जिले में देखा जाए तो यहां पर दो सिंधिया समर्थक नेता मंत्री पद की दौड़ में थे, लेकिन इन्हें जगह नहीं दी गई, जिसमें अशोकनगर से जिले के मुंगावली के बृजेंद्र प्रताप सिंह और शिवपुरी जिले से कोलारस से महेंद्र यादव को मंत्रिमंडल में जगह मिलने की आशा थी, लेकिन निराशा हाथ लगी है। बताया जा रहा है कि मध्य प्रदेश में जो मंत्रिमंडल विस्तार हुआ है उसमें दिल्ली से पार्टी आलाकमान ने ही अपने निर्णय अनुसार क्षेत्र बार विधायकों को मंत्री पद दिया है। किसी भी विशेष गुट को यहां पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई, जिसके कारण ग्वालियर चंबल संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को भी ज्यादा तवज्जो नहीं मिल पाई है। राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि केंद्र स्तर से ही भाजपा में सारे निर्णय लिए गए हैं। इसलिए किसी एक विशेष को अच्छा महत्व नहीं दिया गया है। इनके अलावा जिन दिग्गज नेताओं को इस कैबिनेट में जगह नहीं मिली है, उनमें सबसे बड़ा नाम गोपाल भार्गव का है। 9 बार के विधायक भार्गव को तीन बार से ज्यादा बार मंत्री रह चुके विधायकों को मौका नहीं देने के फार्मूले के चलते बाहर का रास्ता दिखाया गया है। उन्हीं के जिले के भूपेन्द्र सिंह भी मंत्री पद नहीं पा सके हैं। शिवराज सिंह चौहान के करीबी भूपेन्द्र सिंह को भी जातीय और क्षेत्रीय संतुलन की वजह से कैबिनेट के बाहर रहना पड़ा है। चुनाव से पहले उनकी गोविंद सिंह राजपूत से सीधी टकराहट भी सामने आई थी, तब केन्द्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा था। संघ की करीबी ऊषा ठाकुर आदिवासी महिला नेत्री मीना सिंह, सिंधिया समर्थक प्रभुराम चौधरी, बृजेन्द्र सिंह यादव, हरदीप सिंह डंग, शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा से नजदीकी संबंध रखने वाले बृजेन्द्र प्रताप सिंह सिंह भी मंत्री पद पाने से वंचित रहे हैं।

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