यस एमएलए: भार्गव को कोई चुनौती नहीं

गोपाल भार्गव

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। बुंदेलखंड में भाजपा के सबसे सशक्त गढ़ और दिग्गज मंत्री गोपाल भार्गव की विधानसभा सीट रहली में विकास मुद्दा नहीं है। शहर की मुख्य सडक़ों से जरा हटकर यदि ग्रामीण इलाकों में वोटर का मन टटोलें तो यहां विकास पर कोई बात नहीं करता, लेकिन एंटी इंकम्बेंसी का असर ठेठ देहाती इलाकों में जरूर नजर आ रहा है। रहली विधानसभा सीट पर पिछले 38 सालों से कद्दावर नेता गोपाल भार्गव काबिज हैं।
रहली विधानसभा सीट चार इलाकों में अलग-अलग समीकरण बनाती है। इसमें रहली, गढ़ाकोटा के साथ शाहपुर और ढाना शामिल हैं। जातिगत समीकरण वैसे तो अभी तक अर्थहीन रहे हैं, लेकिन इस चुनाव में पहली दफा अहम भूमिका निभा सकते हैं। यहां पिछले विधानसभा चुनावों में एससी-एसटी, कुर्मी, लोधी, पटेल, ब्राह्मण सहित अन्य वर्गों का भाजपा की तरफ ही झुकाव देखा गया है। समाजों के इतर यहां ब्राह्मण प्रत्याशी गोपाल भार्गव लीड करते आए हैं।
क्या बेटे को मिलेगा टिकट
माना जा रहा है कि अगर गोपाल भार्गव की जगह उनके बेटे अभिषेक भार्गव को टिकट दिया जा सकता है। गोपाल भार्गव लगातार 8 बार इस विधानसभा सीट से विधायक हैं। ऐसे में पार्टी क्या फैसला लेगी ये समय आने पर सामने आएगा।
1951 में वजूद में आई थी सीट
रहली विधानसभा सीट पहली बार 1951 में वजूद में आई थी। 1951, 1957 और 1962 के विधानसभा चुनावों में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। 1967 में जनसंघ के एनपी तिवारी ने पहली बार जीत दर्ज की। 1972 से 1980 तक यहां फिर से कब्जा रहा। 1985 के विधानसभा चुनाव में गोपाल भार्गव पहली बार यहां से चुनाव जीते। इसके बाद से लगातार 8 बार विधानसभा का चुनाव जीतते चले आ रहे हैं। मतदाता भार्गव को व्यक्तिगत तौर पर अच्छा और संवेदनशील नेता बताते हैं, पर उन्हें अधिकारियों-कर्मचारियों से शिकायत है। उनके काम नहीं हो रहे हैं। परासिया गांव के परमलाल कहते हैं कि पीएम आवास योजना में उन्हें मजदूरी नहीं मिल रही है। सचिव सरपंच नहीं सुन रहे हैं। जब विकास और भार्गव के बारे में पूछा जाता है तो वे कहते हैं कि विकास तो हुआ है, पर रोजगार और मिल जाए। तिनौआ पंचायत के विजय पटेल भी यही शिकायत करते हैं। हालांकि भार्गव के बारे में कहते हैं कि वे न होते तो इतना भी नहीं मिलता। बिंदी तिगड्डा पर दुकान चलाने वाले मुकेश पटेल कहते हैं कि भार्गव जी यहां हों या न हों, हमारे काम नहीं रुकते हैं। उनका बेटा, बहू, पत्नी काम कर देते हैं। लोक निर्माण मंत्री होने के नाते भार्गव के क्षेत्र की सडक़ चमचमा रही हैं। गढ़ाकोटा से रहली के बीच टिकटोरिया क्षेत्र में 52 हेक्टेयर में औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। इसमें बड़े उद्योग आने की उम्मीद तो नहीं है, पर स्थानीय लोग छोटे उद्योग लगाएंगे, जिससे रोजगार मिलने की उम्मीद है।
अपने-अपने दावे
विधायक और मंत्री लोक निर्माण विभाग गोपाल भार्गव का कहना है कि रहली को मैंने कभी राजनीतिक क्षेत्र नहीं, परिवार का हिस्सा माना है। सडक़ें हों या अन्य संरचनाओं का निर्माण प्राथमिकता के आधार पर किया। रोजगार के लिए युवाओं को उद्यानिकी अनुसंधान केंद्र खोला, जिससे कई बच्चों की नियुक्तियां हुईं। पटना ककरी में सौ एकड़ भूमि पर औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। 20 करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं। फर्नीचर, गारमेंट सहित अन्य क्षेत्रों में आठ-दस हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। उद्यानिकी कालेज भी खोला। पराजित कांग्रेस प्रत्याशी कमलेश साहू का कहना है कि गोपाल भार्गव ने बीड़ी के नाम पर राजनीति की और यहां से बीड़ी उद्योग खत्म हो गया। सागर के कर्रापुर में यह उद्योग चल रहा है। वे 40 साल से विधायक हैं, पर बेरोजगारी का समाधान नहीं कर पाए। बेरोजगार दूसरे जिलों और प्रदेशों में जाकर रोजी-रोटी कमाने को मजबूर हैं, जो यहां हैं तो जुआ-सट्टा खेल रहे हैं।
 1985 से लगातार बीजेपी कैंडिडेट की जीत
क्षेत्र में आगामी चुनाव को लेकर सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। हम आपको एक ऐसी विधानसभा के बारे में बता रहे हैं जहां कोई पूर्व विधायक ही नहीं है। असल में इस विधानसभा की कहानी 1985 से शुरू हुई। जब मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री गोपाल भार्गव पहली बार इस विधानसभा से चुनाव जीते और विधायक बनकर विधानसभा में पहुंचे। इसके बाद से इनका जादू ऐसा चला कि लगातार 8 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद आज भी मंत्री गोपाल भार्गव का रहली विधानसभा में सिक्का चलता है। यही कारण है कि कभी किसी पूर्व विधायक के बीच में आने का चांस ही नहीं आया। 1985 से पहले यहां से जो नेता विधायक थे, उनका निधन हो चुका है। रहली के महादेव प्रसाद हजारी, गोपाल भार्गव के पहले यहां से कांग्रेस से विधायक रहे। लेकिन 1985 में भार्गव से मिली शिकस्त के बाद वो कभी चुनाव नहीं जीत पाए तब से आज तक इस विधानसभा में केवल भार्गव विधायक हैं।
 बेरोजगारी और पलायन है बड़ी समस्या
सागर से दमोह मार्ग पर 52 किमी दूर है गढ़ाकोटा। यह रहली विधानसभा का पहला शहरी क्षेत्र है। यहां सुनार नदी पर बना पुल, दोनों तरफ लगी लाइटें, सेल्फी प्वाइंट, सडक़ के सेंट्रल बुर्ज पर पौधे, वातानुकूलित नगर पालिका भवन, स्वीमिंग पूल, स्टेडियम, सरकारी शादी हाल विकास की कहानी बयां करते हैं। यहां से 20 किमी दूर रहली की चमचमाती सडक़ और सुंदरता अपनी ओर खींचती है। प्राचीन सूर्य मंदिर और अटल सेतु विकास की कहानी कह रहे हैं। शाहपुर, धाना, पटना बुजुर्ग के साथ कुछ ग्रामों में भी ऐसा ही सौंदर्यीकरण किया है। फिर भी लोगों में एक कसक है। विधानसभा क्षेत्र में एक भी उद्योग नहीं है। बेरोजगार पलायन कर रहे।

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