- अवधेश बजाज कहिन
नरोत्तम मिश्रा जी। आप प्रदेश के गृह मंत्री हैं। राज्य के ग्रह-नक्षत्र बिगाड़ने की कोशिश करने वालों की ग्रह दशा बिगाड़ने के लिए आप हमेशा किसी कुशल संतरी की तरह सतर्क भी रहते हैं। आपका ये रुख याद दिलाता है, दिवंगत सुषमा स्वराज जी की। उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहते हुए राष्ट्र तथा संस्कृति से जुड़े विचारों को प्रोत्साहित करने की बात कही। टेलीविजन सहित फिल्म और कंडोम तथा शराब के विज्ञापन पर रोक का यकीन दिलाया। निश्चित ही सुषमा जी ने ये सब उस विश्वास के आधार पर कहा होगा, कि उनके समर्थक यकीनन उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे।
इस विषय में आपके विचार तथा व्यवहार पर मुझे बिलकुल भी अविश्वास नहीं है। लेकिन देर तो गांठ की भांति मन, विचार एवं प्रयास की प्रक्रिया को किसी डोर की तरह भींच कर गला घोंट देती है। वही अभी आपके साथ होता दिख रहा है। आपने ‘आश्रम’ के निमार्ता-निर्देशकों को चेतावनी दी (हो सकता है कि उस मामले में कुछ कार्रवाई भी हुई हो) आपको फिर चैतन्य हो जाना पड़ा और तभी ‘मधुबन में राधिका नाचे रे’ के नाम पर फिर वही प्रयोग हुआ, जो आपको नाराज कर गया। इसके बाद भी आपका विरोध दिखा, किन्तु क्रोध का पुट शायद उसमे नहीं था, वरना, उसके बाद तो किसी मैथुन मजदूरिनी की ये हिम्मत नहीं होती कि वह अपनी ब्रा और हिन्दुओं के आराध्य भगवान के बीच किसी तरह के ताल्लुक को जताने और बताने की बात भी सोच पाती। शिवराज जी! नरोत्तम जी! ये ध्यान तो आप दोनों की ही देना होगा कि मध्यप्रदेश में ‘आश्रम’ ‘राधिका’ और इस ‘ब्रा’ वाली स्वेच्छाचारिता के नाम पर ये स्वयंभू प्रोग्रेसिव अनाचार न चल सके। फिर बात चाहे टीवी चैनल, वेब सीरीज, सीरियल या फिल्म ही की क्यों न हो। आधी आबादी के लिए पूरी शक्ति वाले भाव से मैं ओतप्रोत हूं, किंतु इस विषय पर मैं उन महिला विचारकों से असहमति रखता हूं, जो कम से कम इस विषय पर किसी मैथुन मजदूरिनी का टीवी चैनलों पर समर्थन कर रही हैं। मैं इस वकालत को उचित नहीं पाता हूं। नरोत्तम जी! ये अपने अंर्तवस्त्र को यूं हम हिन्दुओं की अगाध आस्था से जोड़ने वाली किसी नचनिया प्रवृत्ति के विरूद्ध आपको तत्काल कदम उठाने चाहिए थे। उसने जो बोला, और जिस तरह असंख्य आस्थाओं को अपने हल्केपन पर तौला, उसके लिए आपको किसी रिपोर्ट या सबूत जैसे खालिस सरकारी कर्मकांड का मोहताज नहीं होना चाहिए। उतारिये ना लोहा ऐसे एक -एक जिस्म में, जो अपने विचार और हृदय की तमाम हल्की धातुओं को यूं हिन्दू धर्म या उसकी मान्यताओं अथवा अनुयायियों को नीचा दिखाने की साजिश को आगे ले जाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
जो सार्वजनिक प्रदर्शन के ऐसे तमाम माध्यमों के प्रतिनिधि बनने में गौरव महसूस करते हैं, जो बच्चों को सेक्स के अनाचारी स्वरूप के लिए ही उन्मुख करते हों। बात रोक या कार्यवाही की केवल एक ताजा मैथुन मजदूरिनी की नहीं है। श्वेत होने के नाम पर घोर कुंठित और कलंकित वाली कई संभ्रांत नगर वधुएं आपकी विचारधारा के तंबू नीचे अपनी निर्वसन सोच को ढंक ले रही हैं। एक पायल कुछ यूं छनकती है कि वह अपने जिस्म की नग्नता को भगवा से ढकने का स्वांग कर खुद को निहाल मानती है। एक वो है, जो महात्मा गांधी के लिए अपशब्द कहकर स्वयं को एक विचारधारा की पोषक में सरापा लिपटा बताती है और फिर नाममात्र के कपड़ों के साथ हाथ में शराब का जाम लेकर वह अपनी असलियत उजागर कर देती है। ये सभी अलग-अलग लबादा ली हुई वो मैथुन मजदूरिनी हैं, जिनके खिलाफ तुरंत और सख्त से सख्त कार्रवाई बहुत आवश्यक है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना के बाद से मध्यप्रदेश और खासकर भोपाल फिल्मों की लोकेशन से लेकर शूटिंग के लिए सर्वश्रेष्ठ जगह बन गया है, निश्चित ही मुख्यमंत्री जी एवं आपको चाहिए कि फिल्मकारों को यहां आने के लिए अधिक से अधिक प्रोत्साहन, सुविधाएं और रियायत दें, किन्तु उससे पहले कुछ और भी करना बहुत जरूरी हो गया। आपकी पुलिस को बोलिए कि यहां शूट होने वाली हर टीवी सीरीज से लेकर वेब सीरीज और फिल्म आदि की कहानी से लेकर स्क्रिप्ट और तमाम बातों की पहले से जानकारी अनिवार्य रूप से और नियम के तहत ले। ताकी जब ये सामने आये कि ऐसे किसी भी निर्माण को आप की स्वीकृति मिली है, तब यह भी साफ रहे कि वह मंजूरी सख्त नैतिक शर्तों पर आधारित है, किसी मजबूरी पर नहीं।