राजनीति में आयातितों की नजीर बनी मप्र भाजपा

 मप्र भाजपा

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। पहले तो दलबदल करने वाले नेताओं को भविष्य को लेकर बेहद शकांए और कुशंकाएं रहती थीं, लेकिन अब यह थोथी साबित हो रही हैं। इस मामले में मध्यप्रदेश भाजपा आयातितों के लिए नजीर बन चुकी है। इसकी वजह है दल बदल कर आने वाले नेताओं को अपने पार्टी निष्ठ कार्यकर्ताओं की तुलना में न केवल बेहतर अवसर प्रदान करती है, बल्कि सत्ता व संगठन में भी भागीदारी देने में पीछे नहीं रहती है। इसके पूर्व में तो कई उदाहरण तो हैं ही, लेकिन सबसे बड़ा उदाहरण बीते साल भाजपा में आने वाले श्रीमंत और उनके समर्थक है। मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार की पहचान अब कांग्रेस या अन्य कोई दल छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं के लिए बेहतर अवसर देने वाली पार्टी के रुप में बन चुकी है। ऐसे नेताओं के लिए मध्य प्रदेश सबसे बड़ा उदाहरण बना हुआ है।
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए श्रीमंत जहां केन्द्र में कैबिनेट में मंत्री बनाए गए तो उनके समर्थक विधायकों को प्रदेश में मंत्री पद देकर नवाजा गया। यही नहीं जो श्रीमंत समर्थक उपचुनाव हारे, उन्हें करीब एक साल देर से ही सही, निगम, मंडल, बोर्ड व प्राधिकरण में जगह देकर उनका भी पुनर्वास कर दिया गया। अब यह पूर्व विधायक भले ही मंत्री नहीं बन पाए हैं, लेकिन राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता तो बन ही गए हैं। प्रदेश में शुक्रवार को 25 नेताओं की निगम-मंडलों में नियुक्ति की गई, जिनमें नौ श्रीमंत समर्थक नेताओं को जगह दी गई है। उल्लेखनीय है कि श्रीमंत मार्च 2020 में कमलनाथ सरकार से नाराज होकर भाजपा में शामिल हो गए थे। उनके साथ तत्कालीन 19 मंत्री और विधायक भी सरकार और कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे। इसी दौरान एक अन्य विधायक बिसाहूलाल सिंह भी भाजपाई बन गए थे। वे भी अब शिव कैबिनेट में वरिष्ठ मंत्री हैं। इसके बाद भी कई अन्य कांग्रेस विधायकों ने दल बदल का भाजपा का दामन थामा। उनमें से एक हैं राहुल लोधी जो दलबदल करते ही वेयरहाउसिंग कारपोरेशन के अध्यक्ष बना दिए गए । यह बात अलग है कि वे भी उपचुनाव में खेत रहे। खास बात यह है कि इन नेताओं की वजह से उनके इलाकों में पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं तक को उपेक्षित होने का दंश झेलना पड़ रहा है।
पूर्व के भी हैं कई उदाहरण
मप्र भाजपा में इसके पहले भी इसी तरह के कई उदाहरण हैं। अगर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के समय की बात की जाए तो भाजपा ने कांग्रेस से पाला बदलने वाले भागीरथ प्रसाद को सदस्यता लेते ही भिंड लोकसभा सीट से पार्टी का टिकट थमा दिया था। इसी तरह से सागर लोकसभा सीट पर भी सपाई नेता लक्ष्मीनारायण यादव को तो कांग्रेस नेता उदय प्रताप सिंह को भी होशंगाबाद से प्रत्याशी बनाया गया था।  अगर अन्य नेताओं की बात की जाए तो कांग्रेस से भाजपा में आने वाले चौधरी राकेश चतुर्वेदी के भाई मुकेश चतुर्वेदी को भी भाजपा ने विधानसभा का टिकट दिया।  बीता चुनाव हारने के बाद अब उन्हें संगठन में बेहद अहम उपाध्यक्ष का पद दे दिया गया है। इसी तरह से बसपा से आने वाले नेताओं को भी भाजपा नेताओं की जगह पूर्व में निगम मंडलों में एडजस्ट किया जा चुका है। यह बात अलग है कि इन कदमों की वजह से पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं के हितों को हमेशा नुकसान हुआ है।
दलबदल करने वालों को ही दिए टिकट
श्रीमंत और उनके समर्थकों के अलावा तीन अन्य विधायक भी कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा में शामिल हो गए थे। जादुई आंकड़ा पक्ष में आने से शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन नवंबर में उपचुनाव आते आते 28 विधानसभा सीटें खाली हो गईं। राजनीतिक गलियारों में सिंधिया और भाजपा के बीच वादों को लेकर तरह-तरह की चर्चाओं के बीच उपचुनाव में भाजपा ने सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों को फिर से उन सभी विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी बना दिया, जहां से वह कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। इन उपचुनावों में 28 में से 19 सीटों पर भाजपा और नौ सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। जीत दर्ज करने वाले लगभग सभी श्रीमंत समर्थक विधायकों को शिवराज कैबिनेट में शामिल कर लिया गया। इनके अलावा उपचुनाव में जिन्हें सफलता नहीं मिली, उनका भी पार्टी ने पूरा ध्यान रखते हुए उन्हें भी  निगम, मंडलों में जगह दे दी।

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