
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश सरकार की सहृदयता काबिले तारीफ है। गुजरात ने भले ही मप्र को एशियन शेर देने से मना कर दिया है, लेकिन फिर भी मप्र सरकार गुजरात को बड़ा दिल दिखाते हुए दो टाईगर और चार तेंदुआ देने जा रहा है। इसके लिए हाल ही में मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक आलोक कुमार ने ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर को सहमति प्रदान कर दी है। यह टाइगर और तेंदुआ गुजरात के जामनगर भेजे जाएंगे।
इस सहमति के बाद से प्रदेश के टाइगर स्टेट को लेकर सवाल खड़ा होना शुरू हो गया है। यह दोनों ही वन्य प्राणी ऐसे समय दिए जा रहे हैं जबकि मप्र को दूसरे राज्य से टाइगर स्टेट के किताब को लेकर कड़ी चुनौती मिल रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी आलोक कुमार द्वारा बीते सप्ताह ही 13 जनवरी को सदस्य सचिव केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को पत्र लिखकर ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एवं रिहैबिलिटेशन गुजरात को दो बाघ और चार तेंदुआ देने की सहमति प्रदान की गई है। उनके इस पत्र के बाद से ही वन्य प्राणी एक्सपर्ट अफसरों द्वारा उनकी आलोचना शुरू कर दी है। इस मामले में एक वरिष्ठ अफसर का कहना है कि वन्य प्राणियों के एक्सचेंज के आधार पर ही दूसरे राज्यों के चिड़ियाघर अथवा टाइगर रिजर्व में वन्य प्राणियों को दिया जा सकता है। यह नियम केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा ही बनाए हैं। अब प्राधिकरण के अफसर अपने ही बनाए नियमों की अव्हेलना कर रहे हैं। इसकी वजह वे ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एवं रिहैबिलिटेशन सेंटर का गुजरात से संबध होना बताते हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रीय चिड़ियाघर वन विहार और टाइगर सफारी मुकुंदपुर जू एवं रेस्क्यू सेंटर सतना में रेस्क्यू कर लाए गए बाघ एवं तेंदुए की संख्या इतनी अधिक नहीं है कि टाइगर स्टेट उसका परवरिश न कर सके। पेंच नेशनल पार्क में संचालक रह चुके एक आईपीएस अफसर का तो यहां तक कहना है कि क्या मध्यप्रदेश इतना भी सक्षम नहीं रह गया ह ै कि रेस्क्यू किए गए वन्य प्राणियों की परवरिश नहीं कर सकता। जबकि बांधवगढ़ नेशनल पार्क से 7 से 8 करोड़ रूपया, कान्हा नेशनल पार्क से 12-14 करोड़ और राष्ट्रीय चिड़ियाघर वन विहार से दो से तीन करोड़ रुपए वार्षिक आय होती है। उधर एक अन्य अफसर का कहना है कि जामनगर गुजरात में स्थापित सेंटर रिलायंस ग्रुप का है, इसलिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के अधिकारी दबाव में काम कर रहे हैं।
पत्र में यह दिया गया कुमार द्वारा तर्क
प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक आलोक कुमार ने अपने पत्र में ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एवं रिहैबिलिटेशन गुजरात के पत्र का उल्लेख करते हुए लिखा है कि रेस्क्यू किए गए ऐसे बन प्राणियों जिन्हें वापस जंगल में नहीं छोड़ा जा सकता एवं मप्र में उन्हें रखने के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध नहीं होने पर उन्हें वन्य प्राणियों को सेंटर रखने को तैयार है। पत्र में यह भी लिखा है कि विगत अवधि में प्रदेश में रेस्क्यू के प्रकरणों में काफी वृद्धि हुई है। संभव है कि भविष्य में कुछ वन्य प्राणियों को स्थाई तौर पर रखने के लिए पर्याप्त जगह की कमी के कारण संस्था के सहयोग की आवश्यकता पड़े।