मध्यप्रदेश भाजपा… कठिन सीटों पर करेगी फोकस

भाजपा

– कांग्रेस में अब ….सामूहिकता से होंगे निर्णय
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे में विधानसभा चुनावों में भले ही डेढ़ साल का सम है, लेकिन कांग्रेस व भाजपा नमें पार्टी स्तर पर अभी से चुनावी तैयारियों को तेज करने का काम जारी है। कांग्रेसने जहां संगठन में सभी महत्वपूर्ण फैसले के लिए कए समिति का गठन किया जा चुका है तो वहीं भाजपा ने भी ऐसी आधा सैकड़ा सीटों को चिहिन्त कर लिया है जो पार्टी के लिए बेहद दुरुह मानी जाती हैं। इन सीटों पर पार्टी द्वारा अभी से ही प्रभारी तैनात कर जीत की राह तलाशने की तैयारी की जा रही है। कांग्रेस में प्रदेश स्तर पर पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णय अब पार्टी के दिग्गज नेताओं द्वारा एक साथ सामूिहकता से लिए जाएंगे। इसके लिए  प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ द्वारा 22 प्रमुख नेताओं की एक समिति का गठन किया गया है। इस कमेटी की खास बात यह है कि इसमें पार्टी के सभी धड़ों के नेताओं को जगह दी गई है। इसका गठन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किया गया है। इस समिति के अध्यक्ष कमलनाथ होंगे। समिति में नाथ द्वारा अंचल के साथ ही अन्य तरह के समीकरण साधने के प्रयास किए गए हैं। यही वजह है कि इसमें राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, सुरेश पचौरी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, वरिष्ठ विधायक केपी सिंह और जीतू पटवारी और पांच बार के पूर्व विधायक रामनिवास रावत, पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह, केपी सिंह और अशोक सिंह को भी शामिल किया है। दरअसल इस समय ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस को नए सिरे से मजबूत करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। कांग्रेस सबसे अधिक खतरा इसी अंचल में महसूस कर रही है। इसकी वजह है श्रीमंत और उनके समर्थकों द्वारा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाना, जिसकी वजह से कांग्रेस को इस अंचल के जिलों में संगठन से लेकर मजबूत नए चेहरों के लिए कवायद करनी पड़ रही है।
भाजपा ने आधा सैकड़ा मुश्किल सीटों का किया चयन : उधर, भाजपा ने भी 2023 में फिर से सत्ता में वापसी के लिए अभी से काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए पार्टी द्वारा ऐसी आधा सैकड़ा सीटों का चयन किया गया है जो पार्टी के लिए बेहद मुश्किल  हैं। इन सीटों पर पार्टी अभी से चुनावी तैयारी करने जा रही है , जिससे की उन पर कमल को खिलाया जा सके। यह वे सीटें हैं , जिनमें  या तो अब तक पार्टी को जीत नहीं मिली है या फिर एकाध बार ही कमल खिल सका है। यह यीटें कांग्रेस की परंपरागत सीटें मानी जाती हैं। इसकी वजह से ही इन सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए संगठन द्वारा अभी से विशेष रणनीति बनाई जा रही है। इन सीटों पर अभी से संगठन द्वारा प्रभारी नियुक्त किए जाने की भी  तैयारी की जा रही है। भाजपा हाईकमान ने पिछले चुनाव में कांग्रेस के परफॉर्मेंस और हर सीट पर जातीय-क्षेत्रीय समीकरण को आधार बनाकर नई रणनीति बनाने को कहा है। इस कवायद के पीछे की प्रमुख वजह भी यही है। संगठन अब हर हाल में इन सीटों पर जीत दर्ज करने की मंशा रखती है, भले ही उसे टिकट बदलने से लेकर साम, दाम, दंड, भेद यानी हर संभव उपाय क्यों न करना पड़ें। गौरतलब है कि बीते चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता पा ली थी , जबकि भाजपा को  एक प्रतिशत मत अधिक मिलने के बाद भी 109 सीटों पर ही जीत मिली थी।   इसके बाद सियासी उथल-पुथल और 28 सीटों के उपचुनाव के बाद भाजपा सरकार में आ गई। इससे सबक लेते हुए ही अब भाजपा हर कदम फूंक- फूंक कर रख रही है।
पहली बार के विधायकों से दूरी: कांग्रेस ने कमेटी में पहली बार के विधायकों को जगह नहीं दी है। इसमें सिर्फ वरिष्ठ नेताओं को ही शामिल किया  है। इसकी वजह है इस समिति द्वारा ही पार्टी की प्रदेश में रीति और नीति तय की जानी है। समिति को संतुलित बनाने  और विवाद से बचने के लिए  सभी क्षत्रपों को शामिल किया गया है,  इस समिति की बैठक हर माह करने का भी तय किया गया है।  
भाजपा के लिए मुश्किल भरीं सीटें
प्रदेश में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक बहुल कुछ सीटें ऐसी हैं , जो अब भी भाजपा के लिए मुश्किल मानी जाती हैं। इनमें मुख्य रूप से भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य, लहार, सेवढ़ा, गोहद, पिछोर, राघोगढ़, चाचौड़ा, मुंगावली, देवरी, पृथ्वीपुर, राजनगर, गुन्नौर, चित्रकूट, सिंहावल, अनूपपुर, कोतमा, पुष्पराजगढ़, बरगी, जबलपुर पश्चिम, बरघाट, वारासिवनी, लांजी, डिंडौरी, बिछिया, लखनादौन, तेंदुखेड़ा, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, सौंसर, पांढुर्णा, मुलताई, बैतूल, उदयपुरा, राजगढ़, खिलचीपुर, भीकनगांव, बड़वाह, नेपानगर,  बुरहानपुर, कसरावद, खरगोन, सेंधवा, राजपुर, पानसेमल, अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, थांदला और पेटलावद, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, इंदौर-1, नागदा- खाचरौद, घट्टिया, और बड़नगर गर शामिल हैं।
चुनावी रणनीति पर काम करेगी समिति
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की अध्यक्षता में गठित की गई इस राजनीतिक मामलों की समिति प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ ही उसके एक साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी रणनीति बनाने का काम करेगी। इसके अलावा समिति संगठन को मजबूत करने से लेकर अन्य मामलों में भी निर्णय लेगी। चुनाव की तैयारियां किस तरह से की जाए। कौन- कौन से मुद्दे उठाए जाएं, जिससे की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा सके। चुनावी कैंपेन किस तरह से लाया जाए। इसके अलावा यही समिति नेताओं के चुनावी दौरे कार्यक्रम तय करने का भी काम करेगी। इसके अलावा हाल ही में एआईसीसी ने महंगाई और बेरोजगारी को लेकर राज्यों की इकाइयों को आंदोलन खड़ा करने का कार्यक्रम दिया है जिस पर किस तरह आगे बढ़ाया जाए, यह भी कमेटी तय करेगी।
इन चेहरों को दी गई जगह
कमेटी में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, सुरेश पचौरी, अजय सिंह, अरुण यादव, डा. गोविंद सिंह, केपी सिंह, आरिफ अकील, सज्जन सिंह वर्मा, डा. विजयलक्ष्मी .साधो, एनपी प्रजापति, बाला बच्चन, रामनिवास रावत, ओमकार मरकाम, जीतू पटवारी और लखन घनघोरिया शामिल हैं। इन पंद्रह सदस्यों में 10 वरिष्ठ विधायक हैं। समिति में चंद्रप्रभाष शेखर, प्रकाश जैन, अशोक सिंह, राजीव सिंह शामिल हैं। समिति में स्थायी आमंत्रित सदस्यों में राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा व राजमणि पटेल को शामिल किया गया है।

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