यस एमएलए: मोहन की राह का रोड़ा बन सकती है क्षिप्रा

मोहन यादव

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। पावन और पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर बसा उज्जैन शहर प्राचीनतम शिक्षा के केन्द्र के अलावा महाकाल ज्योतिर्लिंग की वजह से विश्व प्रसिद्ध है। इसके बाद भी यह शहर अभी भी पूरी तरह से अव्यवस्थित है। इसी क्षेत्र में चिंतामण गणेश मंदिर और नवग्रह शनि मंदिर (त्रिवेणी) जैसे कई धार्मिक महत्व के स्थान भी है। जिस क्षेत्र में स्वयं महाकाल का निवास हो वहां का विधायक होना गौरव की भी बात मानी जाती है। इस इलाके से भाजपा विधायक मोहन यादव लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं। वे फिलहाल शिव सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री हैं। इस सीट को भाजपा की परंपरागत रूप से भाजपा का गढ़ माना जाता है। इसकी वजह है इस सीट पर अंतिम बार कांग्रेस की प्रत्याशी प्रीति भार्गव जीती थीं, जिसके बाद से लगातार भाजपा ही जीतती आ रही है। इसके बाद भी इस विधानसभा क्षेत्र की जनता की प्यास आसानी से नहीं बुझ पा रही है। इस बार यह सीट भाजपा के लिए कठिन मानी जा रही है। इसकी वजह है महापौर चुनाव में भाजपा प्रत्याशी का बेहद कम मतों से जीतना और जनपद अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा को हार मिलना। दरअसल इस सीट का आधा हिस्सा ग्रामीण इलाके में आता है। पार्टी की लगातार सरकार होने और बीते चार बार से भाजपा का विधायक होने की वजह से इस बार पार्टी के लिए एंटीइन्कमबैंसी भी बड़ी मुसीबत बनती दिख रही है। चार में से दो चुनाव तो खुद मोहन यादव ने ही जीते हैं।  इसके बाद भी उनके इलाके की जनता मूलभूत समस्याओं से परेशान हैं। पुराने शहर से आगे बढ़ते शहरी क्षेत्र में बड़ी संख्या में नई कालोनियां बनीं, मगर इनमें पेयजल पाइपलाइन तक नहीं डल पाई है। इसकी वजह से आधी आबादी निजी बोरिंग और कुओं से अपनी प्यास बुझाने के लिए मजबूर बनी हुई है। यही नहीं जहां पर नल की सुविधा है, वहां पर भी दो दिन में पानी मिल पा रहा है। कालोनियों में ड्रेनेज की भी समस्या के साथ ही पुराने शहर से नए शहर को जोड़ने वाले फ्रीगंज समानांतर पुल की मांग भी अब तक अधूरी पड़ी हुई है। इस बार भी यहां पर कांग्रेस के राजेन्द्र वशिष्ठ व भाजपा के मोहन यादव के बीच ही चुनावी जंग होने के आसार है।
नहीं मिला नर्मदा क्षिप्रा लिंक योजना का लाभ
उज्जैन की पुण्य सलिल शिप्रा नदी पर पिछले 20 सालों में 650 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन अब भी शिप्रा नदी की हालत बेहद गंभीर है। शिप्रा नदी का जल स्नान तो ठीक आचमन करने लायक भी नहीं हो सका है। इसकी वजह से इस शहर की बदनामी हो रही है। अगर इस योजना का सही से क्रियान्वयन होता तो शहर का पेयजल संकट भी दूर हो जाता। इसे लेकर साधु संत ही नहीं बल्कि रामघाट के पंडे पुजारी और अमजन भी भी चिंतित है।  उल्लेखनीय है कि उज्जैन की शिप्रा नदी के प्रदूषण को लेकर साधु-संत भी समय -समय पर मोर्चा खोलते रहे हैं। साधु-संतों द्वारा लगातार शिप्रा नदी के शुद्धिकरण की मांग उठाई जा रही है। शिप्रा शुद्धिकरण की बात की जाए तो पिछले 20 सालों से उज्जैन की राजनीति का यह मुद्दा प्रमुख केंद्र रहा है और बयानबाजी में कई बार मुद्दा उठ चुका है, लेकिन आज तक शिप्रा नदी की हालत दयनीय है।
यह है दावा
मौजूदा विधायक का दावा है कि माधव नगर अस्पताल डिस्पेंसरी की तरह था, लेकिन अब यहां प्रदेश का सबसे बड़ा आइसीयू बनाया गया है। 30 साल पहले उद्योग बंद हो गए थे। यहां उद्योग के लिए माहौल उपलब्ध कराते हुए उन्हें फिर शुरू कराया गया है। इससे करीब 4000 लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है। निनोरा में भी उद्योग स्थापित हुए हैं। नागझिरी में भी उद्योगों से करीब 12 हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध होगा। इसके उलट कांग्रेस नेता राजेन्द्र वशिष्ठ का दावा है कि, चुनाव के समय जो भी वादे किए गए थे, वे पूरे नहीं हुए हैं। पुराने शहर से नए शहर को जोडऩे की मांग सालों से की जा रही है। शहर पानी के लिए प्यासा है, पाइप लाइन नहीं हैं। ड्रेनेज की समस्या है। धार्मिक नगरी में श्रद्धालुओं की भावनाओं की कद्र नहीं है और देशभर से पर्व स्नान करने आने वाले लोगों को शिप्रा में गंदा और बदबूदार पानी मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में सडक़ें खराब हैं।
क्षेत्र की समस्याएं
करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी शिप्रा नदी साफ नहीं हो सकी है। कान्ह नदी का गंदा पानी अब भी इसमें मिल रहा है। यही नहीं  शहर के 15 नालों का पानी भी शिप्रा नदी में मिल रहा है। जबकि इसमें पर्व पर स्नान करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, जिन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसी तरह से  उज्जैन में शासकीय मेडिकल कालेज बनाने की घोषणा अधूरी है। उज्जैन जनपद के कई गांवों में सडक़ों की समस्या है। वर्षा के दिनों में ज्यादा दिक्कत होती है। विपक्षी दल इसे लेकर आंदोलन भी कर चुके हैं।
श्री महाकाल महालोक का वैभव
श्री महाकाल महालोक धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 351 करोड़ 55 लाख की लागत से हुए निर्माण कार्यों का लोकार्पण किया था। महालोक बनने से मंदिर परिसर आठ गुना बढ़ गया। आय करीब 70 लाख रुपये महीना हो चुकी है। इसके बाद भी हालातों में सुधार नहीं हुआ है।
यह है जातीय गणित  
अगर इस विधानसभा क्षेत्र के जातीय गणित पर नजर डालें तो इसमें करीब 45 हजार मुस्लिम मतदाता हैं, जो एकमुश्त वोट कांग्रेस के माने जाते हैं। इसके अलावा यहां पर अनुसूचित जाति के 35 हजार, राजपूत समाज के 40 बोगीसी वर्ग के 24 फीसदी और ब्राह्मण और वैश्य समाज के मतदाताओं की संख्या 15 फीसदी है।

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