बिकाऊ बनाम जनता की लड़ाई बनाने में कामयाब हुए कमलनाथ

  • अरुण पटेल
कमलनाथ

दमोह विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन द्वारा भाजपा उम्मीदवार राहुल सिंह लोधी को 17 हजार 89 मतों के भारी अंतर से पराजित करने के साथ ही यह बात साफ हो गई है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ दमोह की  चुनावी लड़ाई को बिकाऊ बनाम जनता बनाने में पूरी तरह से कामयाब हुए, उनकी बिकाऊ बनाम टिकाऊ रणनीति परवान चढ़ी और उनकी बात मतदाताओं के गले उतर गई। चुनावी जंग में बिकाऊ पर टिकाऊ बहुत ज्यादा भारी पड़ा तथा दमोह की चुनावी तासीर को देखते हुए कांग्रेस की यह जीत भारी और एकतरफा मानी जा रही है। दमोह की जीत से एक प्रकार से कांग्रेस को संजीवनी मिल गई है। पार्टी नेताओं और कार्यकतार्ओं का मनोबल जो कमलनाथ सरकार जाने के बाद से गिर रहा था और उनमें हताशा आ गई थी उसे उत्साह में परिवर्तित करने में कमलनाथ को अब अधिक मशक्कत नहीं करना होगी।भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा का प्रयास था कि हर बूथ पर भाजपा उम्मीदवार जीते ताकि कांग्रेस को धीरे से जोर का झटका दिया जा सके लेकिन मतदाताओं ने जो जनादेश दिया उसमें स्थिति पूरी तरह से उलट गई। यहां तक कि राहुल सिंह लोधी को उनके अपने बूथ पर कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन ने पटकनी दे दी। प्रचार के अंतिम चरण में केंद्रीय मंत्री दमोह के लोकसभा सदस्य प्रहलाद पटेल ने यहां तक कह डाला था कि कुछ पूतनाएँ हमारे बीच घूम रही हैं और हमें उनसे सतर्क रहना है। चुनाव परिणाम घोषित होने के पूर्व ही प्रहलाद  सिंह पटेल ने कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन को अग्रिम बधाई देते हुए कहा है कि इस चुनाव में हम जीते नहीं पर सीखे बहुत हैं। भाजपा को पूरी गंभीरता से चुनावी परिणाम की समीक्षा करना होगी और जैसा कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ने कहा है कि दमोह के स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर गहराई से असफलता के कारणों की समीक्षा करेंगे। क्या प्रहलाद सिंह  पटेल पूतनाओं की खोज कर उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करवाने में सफल रहेंगे ? जहां तक कांग्रेस की जीत का सवाल है तो उसके एकमात्र शिल्पकार कमलनाथ ही माने जाएंगे क्योंकि उन्होंने ही रणनीति बनाई और प्रत्याशी का चयन भी  किया था। इस रणनीति को नतीजों में बदलने में असली किरदार कांग्रेस विधायक रवि जोशी रहे जिनकी देखरेख में पूरी मैदानी जमावट हुई। दूसरे एक ओर जहां कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ रही थी तथा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव चुनाव प्रचार में गए। कई पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक, नेता तथा कार्यकर्ता मैदान में डटे रहे। वहीं दूसरी ओर भाजपा भितरघात को संभाल नहीं पाई और कार्यकर्ता अंदरूनी खींचतान में उलझे रहे। भाजपा के मुकाबले में मतदाताओं को खड़ा करने में पूरी तरह से कमलनाथ की रणनीति कामयाब हुई। दमोह विधानसभा की सीट भाजपा का मजबूत गढ़ मानी जाती रही है। 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस इस गढ़ में सेंध लगाने में सफल रही थी। उप- चुनाव में अपनी सीट को बचाने के लिए कमलनाथ ने जो रणनीति अपनाई, वह सफल रही। उप- चुनाव में कमलनाथ की रणनीति भाजपा बनाम मतदाता की थी। यह रणनीति 28 सीटों के विधानसभा उपचुनाव में पूरी तरह सफल नहीं रही थी लेकिन फिर भी उस समय भी ग्वालियर चंबल संभागों में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ गए कुछ मंत्री और कुछ पूर्व विधायकों को कांग्रेस के उम्मीदवारों ने पराजित कर दिया था और ग्वालियर राज महल जिस विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है उसमें भी कांग्रेस उम्मीदवार ने जीत हासिल की। यहां तक कि इमरती देवी जो 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट पर भारी भरकम मतों से जीतीं, वह भाजपा टिकट पर चुनाव हार गईं। लेकिन दमोह में रणनीति पूरी तरह से कारगर रही। दमोह सीट पर उपचुनाव कांग्रेस विधायक रहे राहुल लोधी के इस्तीफे के कारण हुआ है। उपचुनाव में राहुल लोधी भाजपा उम्मीदवार थे।
कमलनाथ का चुनावी राग
कमलनाथ भली-भांति यह जानते थे कि संसाधनों के मामले में कांग्रेस, भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती है। यही कारण है कि पहले दिन से ही उन्होंने यह चुनावी राग छेड़ दिया कि दमोह में चुनाव कांग्रेस नहीं जनता लड़ रही है। कमलनाथ की उम्मीद के मुताबिक भाजपा का चुनाव प्रचार बेहद आक्रामक था। इसके बाद भी राहुल लोधी अपने घर के पोलिंग स्टेशन पर ही 120 वोटों से पीछे रहे। दमोह उपचुनाव पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर दूसरे दिन वहां सभाएं की। कई लोक लुभावनी घोषणाएं कीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी एक दिन प्रचार के लिए पहुंचे। प्रहलाद सिंह पटेल लगातार संपर्क करते रहे और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष शर्मा ने तो एक प्रकार से डेरा ही डाल रखा था। इसके विपरीत कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ केवल तीन बार कुछ-कुछ घंटों के लिए प्रचार करने गए। दिग्विजय सिंह ने भी  दो दिन प्रचार किया। अजय टंडन, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ही करीबी माने जाते हैं। दिग्विजय सिंह ने पार्टी नेताओं के बीच एकजुटता बनाने में काफी अहम भूमिका अदा की। अजय टंडन ने चुनाव में बड़े नेताओं की सभा कराने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। उनकी रणनीति स्थानीय नेताओं के संपर्कों का उपयोग बूथ स्तर पर करने की थी। भाजपा की रणनीति भी बूथ जीतने की रहती है।

लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।

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