वन विभाग में… जारी है जंगलराज मनमर्जी से किया करोड़ों का भुगतान

वन विभाग

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश का वन महकमा यथा काम तथा गुण के हिसाब से ही काम कर रहा है। यही वजह है की अब तो इस विभाग में तेजी से जंगल राज कायम होता जा रहा है। हालात यह है की जिलों में मनमाने तरीके से करोड़ो रुपयों का भुगतान अफसरों द्वारा चेहेते लोगों को नियमों को बलाए ताक पर रखकर कर दिया गया। यह स्थिति किसी एक जिले की नहीं है बल्कि राजधानी भोपाल सहित कई जिलों की है। भोपाल में वन विभाग के अफसरों ने मिलकर दूसरे जिले की टीपी पर एक ठेकेदार को लाखों रुपए की रेत का भुगतान कर डाला था , लेकिन इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई अब तक नही हुई  है। उधर, अब दो नए मामले सामने आए हैं। इनमें भी वन विभाग की अफसरों की कार्यशैली का खुलासा हो रहा है। इसमें शाजापुर वन मंडल के अधिकारी ने सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले सामग्री की सप्लाई न होने के बाद भी ठेकेदार फर्म को पचास लाख रूपए का भुगतान कर डाला तो वहीं ,अलीराजपुर वन मंडल में आपत्तिजनक बाउचरों का भी निराकरण होने के पहले ही करीब तीन करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया। दरअसल अलीराजपुर में पदस्थ डीएफओ कुमारी संध्या का तबादला कर उनकी जगह मयंक सिंह गुर्जर को डीएफओ पदस्थ किया गया था , लेकिन उन्होंने किसी कारण से लंबे समय तक ज्वाइन नहीं किया। इसकी वजह से वहां पर बतौर डीएफओ का प्रभार धार में पदस्थ डीएफओ गरीबदस गरबड़े को प्रभार दे दिया गया था। प्रभार मिलने के बाद उनके द्वारा विवादास्पद बाउचरों को भुगतान कर दिया गया।  पूर्व डीएफओ संध्या ने इनका भुगतान इसलिए रोक दिया था, क्योंकि उसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की आंशका व्यक्त की जा रही थी। अब इस मामले में मौजूदा डीएफओ अलीराजपुर मयंक सिंह गुर्जर भी मानते हैं की किसी पूर्व डीएफओ की आपत्ति लगाए जाने के बाद आपत्तियों का निराकरण होने के बाद ही भुगतान नहीं किया जा सकता है। हालांकि वे कहते हैं की यह भुगतान भी एसडीओ के सत्यापन के बाद ही किया गया होगा।
सेवानिवृत्त होने के पहले कर डाला 50 लाख रुपए का भुगतान
शाजापुर जिले में तो एक डीएफओ ने एक ठेकेदार फर्म को बगैर सामग्री के ही पचास लाख का भुगतान कर डाला। इस मामले का खुलासा होने के पहले ही डीएफओ सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इस मामले का खुलासा होने के बाद भी वर्तमान एपीसीसीएफ एवं पदेन सीएफ मनोज अग्रवाल गंभीरता से लेने को तैयार नही है। विभाग का कार्रवाई न करने के पीछे तर्क है की डीएफओ भुगतान करके रिटायर हो गए, अगर अब कारवाई होती है तो बेचारे एसडीओ व रेंजर पर कार्रवाई करनी पड़ेगी। यह मामला उज्जैन सर्किल के शाजापुर वन मंडल का है, जो पहले भी टीपी कांड को लेकर बेहद चर्चा में रहा है। दरअसल मामला जनवरी का है जिसका अब खुलासा हुआ है। शाजापुर वन मंडल के डीएफओ रहे जामसिंग भार्गव 31 जनवरी को रिटायर हो गए थे। रिटायरमेंट के एक पखवाड़े पहले ही भार्गव ने इस गड़बड़ी का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया था। तत्कालीन डीएफओ जामसिंह भार्गव ने टेंडर किए बिना ही टुकड़े-टुकड़े में 50 लाख के चैनलिंक खरीदी के आर्डर कर दिए थे। 31 जनवरी को उन्हें रिटायर होना था, लिहाजा उनके द्वारा  30 जनवरी को सामग्री प्राप्त किए बिना ही प्रदायकर्ता फॉर्म को 50 लाख का भुगतान कर दिया। डीएफओ ने यह भुगतान एसडीओ अंकित और रेंजर शिव कुमार मैथानी के कागजी बाउचर के आधार पर किया है। इससे यह तय है की डीएफओ के प्रभाव की वजह से एसडीओ और रेंजर ने सामग्री की सत्यापन किए बिना ही कागजों पर भुगतान के लिए बाउचर डीएफओ के समक्ष पेश कर दिए।
की जा सकती है कार्रवाई
जानकारों की माने तो सामग्री प्राप्त किए बिना इतनी बड़ी राशि का भुगतान करना, वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है। रिटायरमेंट के बाद भी संबधित अफसर पर कार्रवाई की जा सकती है। उधर, इस मामले में वन मंत्री विजय शाह का कहना है की उनके द्वारा इस मामले में पीसीसीएफ (कैम्पा) को जांच के निर्देश दिए गए हैं। जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई की जाएगी।
दोहरे ने कर दिए थे मनमाने तरीके से तबादले
गौरतलब है की वन विभाग में जिस अफसर को जब भी मौका मिलता है वह नियम कानून तोड़ने में पीछे नही रहता है इसका एक और उदाहरण है हरदा जिले का। जिले के डीएफओ नरेश कुमार दोहरे ने अपनी पदस्थापना के समय 20 अगस्त 2020 से मई 2021 के बीच 33 कर्मचारियों के तबादले ही कर डाले। जिसमें उनके द्वारा स्थानांतरण नीति वर्ष 2019-20 का पालन तक नहीं किया गया। अब इस मामले में उन्हें निलंबित किया जा चुका है।

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