…अरे ये क्या! दागियों के हाथ में जेल की कमान

दागियों
  • एक सैकड़ा से अधिक जेल अधिकारियों के खिलाफ चल रही है जांच

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। 
    यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि अपराधियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने और उन्हें सुधारने का जिम्मा जिन जेल अधिकारियों पर है, उनमें से एक सैकड़ा से अधिक खुद दागदार हैं। यही कारण है कि सरकार की सख्ती के बावजूद प्रदेश की जेलों में आपराधिक गतिविधियां सामने आती रहती हैं। अभी हाल ही में सतना जेल में बंद भोपाल के बदमाश पप्पू चटका का  एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। चटका जेल  में फोन पर बात करते दिख रहा है। इस मामले में अब जेल अफसरों से सवाल-जवाब होंगे, विभागीय जांच शुरू होगी और एक दिन प्रकरण शासन स्तर पर लंबित होने की जानकारी उपलब्ध करा दी जाएगी।  दरअसल, प्रदेश की जेलों में भर्राशाही चरम पर है। इसकी वजह यह है कि जेल के सौ से अधिक अफसर पिछले दस साल से जांच में घिरे हैं। इनमें ज्यादातर के खिलाफ जेल से कैदी के फरार होने पर विभागीय जांच (डीई)चल रही है। खरीदी में गड़बड़ी और कोरोना काल के दौरान लापरवाही मिलने के भी मामले सामने आए हैं। वर्ष 2008 में केन्द्रीय जेल भोपाल से फरार हुए सिमी कैदियों के मामले में दोषी अफसरों के खिलाफ अब तक  निर्णयात्मक कार्रवाई नहीं हुई है।
    सीएम की सख्ती का भी  प्रभाव नहीं
    अभी हाल ही में अफसरों के खिलाफ जांच कार्रवाई धीमी होने और दोषी के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विभाग प्रमुखों को नसीहत दी है। सीएम पहले भी नसीहत दे चुके हैं। लेकिन उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। विभागीय जानकारी के अनुसार केन्द्रीय जेल इंदौर में फरवरी 2007 में बंदी पप्पू की मौत मामले में तत्कालीन अधीक्षक केन्द्रीय जेल इंदौर डॉ.लालजी मिश्रा के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है। इनका मामला शासन स्तर पर पेडिंग हैं। मिश्रा 31 अक्टूबर 2016 को सेवानिवृत्त चुके हैं। तत्कालीन कल्याण अधिकारी केन्द्रीय जेल ग्वालियर एमके तिवारी पर बंदी नरेश शर्मा को नियमों के विपरीत रिहा करने के मामले में जांच हुई। जेल मुख्यालय ने अक्टूबर 2017 में प्रकरण गृह विभाग को भेजा जो आज तक लंबित है जबकि तिवारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई है।
    दोषियों के खिलाफ नहीं हुई कार्रवाई
    जेल विभाग में चल रही भर्राशाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई न करके खानापूर्ति की गई है। वर्ष 2015 से लेकर अबतक 37 अफसर और कर्मचारियों के खिलाफ एक से दो वार्षिक वेतनवृद्धि रोकने, परिनिंदा तथा चेतावनी देने की कार्रवाई हुई है। इनमें प्रमुख रूप से कैलाशचंद्र तिवारी सहायक जेल अधीक्षक को निरंतर अनुपस्थित रहने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। अधीक्षक ऊषाराज, सुभाष सागर,  छोटेलाल प्रजापति, वासुदेव मांझी, आरजी पाल, राजाराम सिंह, विवेक परस्ते (सेवा से बर्खास्त), नरेन्द्र व्यास, सहायक अधीक्षक, राधेश्याम वर्मा सहायक जेल अधीक्षक, अंकित माडिल सेवा से बर्खास्त, पूजा सोनी, वैशाली सिंह, अभिषेक कुमार यादव, हर्षा धुर्वे, अर्चना मंडलोई आदि हैं। इधर, लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू और आदिम जाति कल्याण विभाग के अन्तर्गत भ्रष्टाचार, आर्थिक गडबड़ी, रिश्वत लेने और फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी हासिल करने संबंधी एक हजार से अधिक मामले हैं। शासन से अभियोजन की मंजूरी जल्द नहीं मिलने से प्रकरण पेंडिंग हैं।
    जांच हुई पर आंच भी नहीं आई
    कई मामले ऐसे हैं जिन पर जांच तो की गई लेकिन दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जेल उप अधीक्षक संतोष कुमार लडिया, डीएस अलावा अधीक्षक, मोहम्मद इसरार सेवानिवृत्त, राजेन्द्र प्रसाद मिश्रा, मंशाराम पटेल जेल उप महानिरीक्षक, अखिलेश तोमर अधीक्षक और आलोक वाजपेयी उप जेल अधीक्षक, विजय सिंह मौर्य जेल उप अधीक्षक, इंद्रदेव तिवारी जेल उप अधीक्षक, रामप्रताप वसुनिया अधीक्षक आदि की विभागीय जांच हुई पर शासन के निर्णय का इंतजार है। वहीं अधीक्षक, उप और सहायक जेल अधीक्षकों में जेआर मंडलोई, भूपेन्द्र सिंह रघुवंशी, मनोज जायसवाल, बृजेश मकवाने, अंबिका प्रसाद पटेल, सुरेश गोयल, जितेन्द्र अम्बुलकर, केके तिवारी, रफी हुसैन खान, महावीर सिंह, प्रशांत चौहान, निर्भय सिंह राठौर, रंभा चौहान, महावीर सिंह बघेल, कुलदीप सिंह ठाकुर, नारायण सिंह राणा, राज किशोर गुर्जर, हरिओम शर्मा, पन्नालाल प्रजापति, दिलीप सिंह, संतोष कुमार गणेशे, सुरेश गोयल, आरआर डांगी, विद्याभूषण प्रसाद, केके तिवारी, विनय गढ़वाल, डीडी धुर्वे, बुद्धिविलास अरख, हीरालाल परमार, हर्षा धुर्वे, जेवेन्द्र सिंह बुंदेला, भीम सिंह रावत, लीना कोष्टा और प्रहरी सौरभ कनकने, कीर्तिध्वज भार्गव, अजय यादव आदि के खिलाफ विभागीय जांच चल रही हैं।

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