बढते शहर: समग्र विकास चिंतन जरूरी

  • राकेश  दुबे
विकास चिंतन

आज 2 अक्टूबर है, राष्ट्र के लिए एक महत्वपूर्ण दिन  महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दिन देश के सामने समस्याओं का अम्बार लगा हुआ है। इन चुनौतियों के बीच  देश के विकास पर बात करना और विचार करना जरूरी है। अन्य विषयों के साथ  शहरी विकास पर कार्य करने की  और चिंतन की आवश्यकता है। कैसे बड़े होते हमारे शहर समग्र जीवनशैली का हिस्सा बनें।
भारत की वर्तमान जनसंख्या का लगभग 31  प्रतिशत हिस्सा शहरों में बसता है और इनका सकल घरेलू उत्पाद में 63  प्रतिशत का योगदान है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2030 तक शहरी क्षेत्रों में भारत की आबादी का 40  प्रतिशत हिस्सा रहेगा और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में उसका योगदान भी 75 प्रतिशत का होगा। इसलिए शहरी विकास के लिए अगले 25 साल की योजना तैयार करना जरूरी है, लेकिन इसमें कई चुनौतियां भी हैं। सब जानते हैं, देश के विकास के लिए शहरों की भूमिका महत्वपूर्ण है। यूं तो भारत कृषि प्रधान देश कहलाता है, क्योंकि भारत की जनसंख्या का दो तिहाई हिस्सा अभी भी गांवों में रहता है। लेकिन गांवों से खेतीबाड़ी से केवल 16  प्रतिशत जीडीपी ही आता है। ज्यादातर जीडीपी मुख्यतया सर्विस सेक्टर और इंडस्ट्रियल एक्टिविटी से आता है।   हमारे देश में कृषि से पर्याप्त खाद्यान्न की उपज हो ही जाती है। इसलिए अब देश को आगे बढ़ाने के लिए शहरों की ओर ध्यान देना बहुत जरूरी है। पहले आबादी कम हुआ करती थी। लोग छोटी-छोटी बस्तियों, गांवों में और कस्बों में रहा करते थे, लेकिन जैसे-जैसे दुनिया की आबादी में बढ़ोत्तरी होने लगी, बस्तियां गांवों में, गांव कस्बों में, कस्बे नगरों में और नगर महानगरों में बदलने  लगे। शहर विकास करते गए और एक बड़ी आबादी इस विकास में सहायक की भूमिका निभाती रही। शहरों में आबादी बढ़ने के साथ-साथ, उद्योगों का विकास, उन्नत व्यापार, लेखन कला का विकास, श्रम विभाजन और कुशल परिवहन व्यवस्था आदि कारकों ने शहरीकरण को बढ़ाने में काफी योगदान दिया है। उन्नत व्यापार शहरीकरण के आर्थिक महत्व को बताता है। व्यापार के द्वारा ही गांव से कच्चा माल और खाद्यान्न शहरों तक पहुंचता है और शहरों में बनने वाला सामान गांवों, कस्बों तक आता है। इसके अलावा शहरीकरण की प्रक्रिया में कई लोगों, मजदूरों का पलायन गांवों से शहरों की तरफ होता है। इसका बड़ा कारण ये है कि शहर लोगों को विनिर्माण और व्यवसायों के अलावा नौकरी, शिक्षा और मनोरंजन के बढ़ते अवसर भी प्रदान करते हैं। इस कारण भारतीय शहरों की स्थिति और उपयोगिता पर ध्यान देना जरूरी है।
आज शहरीकरण को भारत में आर्थिक विकास का एक प्रमुख कारक माना जाता है। भारत लगभग 2 दशकों से दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहा है।  देश की आजादी के 100 वें वर्ष अर्थात 2047 तक दुनिया की शीर्ष 3  सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत के शामिल होने की संभावना है। वर्तमान समय में देश की लगभग 3 प्रतिशत  फीसद भूमि पर ही शहरों का कब्जा है, परंतु देश वैसे विकसित नहीं हो रहा है जैसी कल्पना महात्मा गाँधी ने ‘हिन्द स्वराज’ की थी।
 आज देश के सकल घरेलू उत्पाद में 70  प्रतिशत से अधिक का योगदान शहरों का ही है। ये आंकड़ा शहरों की आर्थिक उत्पादकता के स्तर को दशार्ता है। आंकड़ों के मुताबिक जहां 1901  में भारत में शहरी क्षेत्र में महज 2.5 मिलियन लोग रहते थे, जो जनसंख्या का 10.84 प्रतिशत था। वहीं 100 साल बाद शहरी आबादी लगभग 12  गुना बढ़ गई है। 2011  की जनगणना के मुताबिक, भारत में कुल 1210.2 मिलियन आबादी में से लगभग 377.1 मिलियन आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। बीते दशक से शहरी क्षेत्रों की आबादी में 91.01 मिलियन की नेट बढ़ोतरी देखी गई है। देश की कुल आबादी की तुलना में शहरी आबादी का प्रतिशत 31.6 है। संयुक्त राष्ट्र अनुमान है कि 2050 तक 59 प्रतिशत भारत का शहरीकरण हो जाएगा, यानी भारत की आधी आबादी शहरों में निवास करेगी। अगर ऐसा हुआ तो यह एक बहुत बड़ा जनसांख्यिकीय बदलाव होगा। वायु प्रदूषण, शहरी बाढ़ और सूखा जैसी कई शहर केंद्रीय समस्याएं शहरी भारत के समग्र विकास में प्रमुख बाधाओं के रूप में तो मौजूद हैं ही, साथ ही शहरों में जमीन की कीमतें बहुत ज्यादा हैं, ट्रैफिक की समस्या है, शहरों में आज भी बहुत से लोग गंदी और मलिन बस्तियों में रहते हैं, जहां किसी भी तरह की आधारभूत सुविधाएं सुलभ नहीं हैं। शहरों में लोगों को साफ-सफाई कचरा प्रबंधन, अतिक्रमण आदि समस्याओं से जूझना पड़ता है। जब बरसात आती है तो शहरों में अक्सर जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है, जिससे अक्सर जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। बात चाहे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे बड़े शहरों की हो या छोटे शहर की हो, सभी जगह यह समस्या आम है। शहरों में पानी की समस्या सबसे बड़ा मुद्दा है।
देश का पक्ष प्रतिपक्ष ऐसे सवालों के उलझा है, जो देश को पीछे ले जाता दिखता  है, जरूरत एक सम्रग विकास कार्यकम की है। यह कार्यक्रम ही महात्मा गाँधी और शास्त्री जी के लिए श्रद्धा सुमन होगा।
– फेसबुक से साभार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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